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पटना (राजीव रंजन तिवारी)। बिहार की सियासत किसी भी वक्त करवट ले सकती है। यहां एकबार फिर एंटी बीजेपी मोर्चा आकार लेता दिख रहा है। कहा जा रहा है कि मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की रणनीति सफल हो गई है। वो अपनी पूरी टीम को राजद के साथ मिक्सअप करने को तैयार हो गए हैं। यह अपने आप में बहुत बड़ा उलटफेर है।
राजद सुप्रीमो लालू प्रसाद के जन्म दिन यानी 11 जून को हुए कई घटनाक्रमों के तार को जोड़ने की कोशिश की जा रही है। कहा जा रहा है कि पूर्व मुख्यमंत्री जीतन राम मांझी से तेज प्रताप यादव की मुलाकात के बाद से ही राजनीति गरमा गई है। इस पूरे मामले में जीतन राम मांझी को बड़ा किरदार माना जा रहा है। जबकि एसा है नहीं। बिहार में घट रही घटनाओं के रिंग लीडर कोई और नहीं, नीतीश कुमार हैं। जीतन राम मांझी सिर्फ नीतीश कुमार के हनुमान हैं। सूत्र बताते हैं कि नीतीश कुमार के कहने पर ही जीतन राम मांझी और मुकेश सहनी सियासी खेला खेलने और चर्चाओं में बने रहने की रणनीति पर काम कर रहे हैं। जानकार बताते हैं कि रोज-रोज के कलह से नीतीश कुमार भी तंग हैं। वे खुद ही भाजपा को सबक सिखाना चाहते हैं। इसके लिए उन्होंने बहुत होशियारी से रणनीति बना रखी है। उन्हें पता है कि बगैर महागठबंधन के साथ के भाजपा का इलाज संभव नहीं है। इसके लिए उन्होंने सबसे पहले राजद नीत महागठबंधन को साधने की रणनीति पर काम करना शुरू किया है।
अब आप ठीक से समझिए कि नीतीश कुमार किस तरह से राजद के नेतृत्व वाले महागठबंधन के करीब जाने की कोशिश कर रहे हैं। सूत्रों का कहना है कि दिल्ली में लालू प्रसाद को पटाने का जिम्मा उपेन्द्र कुशवाहा के ऊपर है। उपेन्द्र कुशवाहा लगातार लालू प्रसाद के संपर्क में हैं और लालू के मन में नीतीश के प्रति जो भी खटास है, उसे दूर करने की रणनीति पर काम कर रहे हैं। अब आइए पटना। पटना में महागठबंधन और राजद से निकटता बढ़ाने की जिम्मेदारी जीतन राम मांझी और मुकेश सहनी के कंधे पर है। ये दोनों नेता राजद के तेजश्वी और तेज प्रताप से अपने रिश्तों को प्रगाढ़ करने में जुटे हुए हैं, साथ ही महागठबंधन खेमे में नीतीश कुमार की भी मार्केटिंग कर रहे हैं। ये तो हुई भीतर की बात। अब ऊपरी तौर भाजपा नेताओं का जवाब देने के लिए भी जदयू ने अपने कुछ नेताओं को टास्क दे रखा है। एमएलसी संजय सिंह उन्हीं नेताओं में से हैं। अब आप समझ गए होंगे कि बिहार में जो भी सियासी सरगर्मी देखने को मिल रही है, वो यूं ही नहीं। इसके पीछे सिर्फ नीतीश कुमार का दिमाग चल रहा है।
जरा इस उदाहरण को भी समझिए। 11 जून को जीतन राम मांझी के घर जाकर तेज प्रताप ने अपने पिताजी लालू प्रसाद से उनकी फोन पर बात करा दी। जीतन राम मांझी और लालू प्रसाद के बीच करीब 12 मिनट बात हुई। सूत्रों का कहना है कि इस बातचीत के दौरान मांझी ने लालू प्रसाद से नीतीश कुमार की वकालत की। यूं कहें कि मांझी ने लालू के मन से नीतीश के प्रति पैदा हुए खटास को दूर करने की कोशिश की। इसका कितना बड़ा अर्थ है, यह आप समझ सकते हैं। कुल मिलाकर कह सकते हैं कि बिहार में जो सियासी तपिश बढ़ी हुई है, उसके पीछे बहुत बड़ा गेम है।
बिहार के सीनियर जर्नलिस्ट संजय वर्मा कहते हैं कि राजनीति संभावनाओं का खेल है। यहां जितने भी सियासी खेमे हैं, सारे खेमे संभावनाएं तलाश रहे हैं। हां, इतना जरूर है कि बहुत जल्द कुछ उलटफेर होने वाला है। वह कबतक होगा, यह देखने वाली बात है।
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