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चिराग के अहंकार में डूब गई लोजपा की लुटिया

पूरी कहानी समझने के लिए चित्र पर क्लिक कर वीडियो देखें पटना (राजीव रंजन तिवारी)। गांवों में एक कहावत कही जाती है कि पूत कपूत तो का धन संचय आ पूत सपूत तो का धन संचय। मतलब ये कि पुत्र नालायक है तो उसके धन-संपति बनाने का कोई लाभ नहीं है। वह सबकुछ बर्बाद कर देगा। और यदि पुत्र अच्छा है, होशियार है तो भी उसके लिए धन-संपति इकट्ठे करने की जरूरत नहीं है। क्यों वक्त आने पर वह खुद ही कर लेगा। मुझे यह बात क्यों कहनी पड़ी। आप समझ ही गए होंगे। पिर भी बता देता हूं। आज का पूरा किस्सा चिराग पासवान पर आधारित है। रामविलास पासवान ने चिराग को बहुत बड़ी विरासत दी थी, लेकिन वो उसे संभाल नहीं सके। चिराग को राजनीतिक रूप से कौन बरबाद करना चाहता है। चिराग को सियासी तौर पर क्यों तबाह किया जा रहा है। बिहार विधानसभा चुनाव में पराजय के बाद पार्टी संभल पाती उससे पहले ही एलजेपी के छह में से पांच सांसदों ने अलग होने का मन बना लिया है। इतना बड़ा सियासी गेम रातोंरात तो हो नहीं सकता। यह सब कैसे हुआ, क्यों हुआ और किसने किया। इन सवालों का जवाब ढूंढना जरूरी है। बीते वर्ष लोजपा के संस्थापक अध्यक्ष रामविलास पासवान के निधन के बाद यह उम्मीद जगी थी कि उनके पुत्र चिराग पासवान बहुत सुंदर ढंग से बड़ी सियासी विरासत को संभाल पाएंगे। लेकिन वह निर्मूल साबित हुआ। चिराग पासवान पूरी तरह फेल हो गए। चिराग पासवान ने सबसे बड़ी गलती एनडीए में रहकर नीतीश कुमार के खिलाफ मोर्चा खोलकर की। यह सियासी अदावत कोई साधारण नहीं थी। बिहार में इस वक्त नीतीश कुमार से ताकतवर कोई नहीं है। इसलिए चिराग की यह गलती भारी पड़ गई। सूत्र बताते हैं चिराग को सबक सिखाने के लिए नीतीश के इशारे पर ही जदयू की कूटनीतिक टीम ने काम शुरू किया। पहले एक विधायक को तोड़कर पार्टी में शामिल कराया और अब छह में से पांच सांसदों को तोड़कर कभी न खत्म होने वाला दर्द चिराग को दे दिया है। फिलहाल चिराग के सामने बहुत बड़ी चुनौती है। उन्हें कम से कम अब तो यह मान ही लेना चाहिए कि उन्होंने राजनीति का ककहरा भले अपने पिता रामबिलास पासवान से सीखी हो, पर उस पर अमल नहीं किया और ना ही उसे अपने व्यवहार में ला पाए। जानकार मानते हैं कि इस दुर्दशा के लिए चिराग खुद ही जिम्मेदार हैं। उन पर बड़ा आरोप यह है कि वह अहंकारी, घमंडी और बदतमीज हैं। राजनीति में आगे बढ़ने के लिए सबसे पहले विनम्रता की सीढ़ी पर कदम आगे बढ़ाना होता है, जो उन्होंने सीखी ही नहीं है। नतीजा आज सबके सामने है। चिराग के पास राजनीतिक कौशल को छोड़कर किसी चीज की कमी नहीं है। उन्हें चाहिए कि राजनीतिक कौशल को सीखें और नए सिरे से आगे बढ़ने की कोशिश करें।
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