पटना (संजय वर्मा)। इसे ही कहते हैं सिर मुड़ाते ओले पड़े। मेरी बात आपको अटपटी लग रही होगी। लेकिन यह सौ फीसदी सही है। संकेत यह है कि बिहार की नई सुशासन बाबू की सरकार का अभी हनीमून पीरियड भी खत्म नहीं हुआ है कि तलाक की नौबत आने लगी है। यूं कहें कि जदयू के साथ भाजपा का बेमेल गठबंधन बहुत दिनों तक चलने वाला नहीं है। मैं पहले भी बताता रहा हूं कि भाजपा का चाल, चरित्र, चेहरा हमेशा से रहस्यमयी और संदिग्ध रहा है। इसलिए अभी से यह अनुमान लगाया जाने लगा है कि भाजपा के साथ मिलकर सुशासन बाबू का साम्राज्य बहुत दिनों तक चलने वाला नहीं है।
जानकार बताते हैं कि बिहार सरकार के मुखिया यानी सुशासन बाबू आजकल कुछ अच्छा फिल नहीं कर रहे हैं। तकरीबन डेढ़ दशक से बिहार पर राज करने वाले सुशासन बाबू यानी नीतीश कुमार की पार्टी जदयू बीते विधानसभा चुनाव में तीसरे नंबर पर चली गई थी। मतलब ये कि जनता की नजर में नीतीश कुमार का राजकाज लोगों को पसंद नहीं आया। राजनीति के जानकार मानते हैं कि तीसरे नंबर पर होने के बावजूद दूसरे नंबर वाली भाजपा ने अपना समर्थन देकर उन्हें मुख्यमंत्री बना दिया। यहीं से लिखी जाती है सुशासन बाबू के सियासी पतन की पटकथा।
याद कीजिए, जबसे यह नई सरकार बनी है, तबसे ही भाजपा के नेता सरकार के कामकाज पर सवाल उठा रहे हैं। रोज कोई न कोई नया मामला सामने आ जाता है। यूं कहें कि तूझी से प्यार और तूझी से तकरार की तर्ज पर बिहार सरकार चल रही है। वैसे भाजपा के प्रति आम धारणा है कि वह जिस थाली में खाती है, उसमें छेद जरूर करती है। ठीक यही स्थिति नीतीश बाबू के साथ है। जरा ताजा मामलों पर नजर डालिए। आपको समझ में आ जाएगा कि किस तरह भाजपा नीतीश बाबू से अलग होने के लिए बेचैन है। कुछ दिन पहले भाजपा के एमएलसी टुन्ना पांडेय ने नीतीश कुमार के खिलाफ जमकर जहर उगला। जो-जो नहीं कहना चाहिए, वह सब कह डाला। भाजपा के दिल्ली से लेकर पटना तक के बड़े नेता चुपचाप टुन्ना की बातों को सुनते रहे और मंद-मंद मुस्काते रहे। जब ज्यादा बवाल मचा तो दिखाने के लिए उन्हें पार्टी से निलंबित कर दिया गया। यह निलंबन वैसा ही है जैसा हाथी के दांत दिखाने के अलग खाने के अलग। सूत्रों का दावा है कि टुन्ना पांडेय को भाजपा के कई दिग्गजों का शह प्राप्त है। ये वही भाजपा के दिग्गज हैं, जो नीतीश के साथ बैठकर सत्ता की मलाई मार हैं और टुन्ना को आगे कर सुशासन बाबू को गालियां दिलवा रहे हैं। इससे आप समझ सकते हैं कि अंदर कितना बड़ा बवाल है और सियासी तूफान मचा हुआ है।
दूसरी बात भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष संजय जायसवाल का। संजय जायसवाल ने भी खुलेआम सरकार को कठघरे में खड़ा किया है। चूंकि भाजपा के नेता अपनी आदतों से लाचार होते हैं, इसलिए उन्हें हर मामलों में साम्प्रदायिकता नजर आती है। जायसवाल ने कहा कि बिहार के सुदूर इलाकों में दलित-पीड़ित युवतियों का धर्म-परिवर्तन कर जबरन निकाह कराया जा रहा है और सरकार चुप है। संजय जायसवाल के सुर में सुर मिलाते हुए भाजपा नेता और बिहार सरकार के मंत्री जनक राम ने भी इस मुद्दे को रेखांकित किया है। जनक राम तो यहां तक कहते हैं कि उन्होंने कई जिलों के डीएम को खत लिखकर लव जिहाद में लिप्त आरोपियों के खिलाफ कार्रवाई करने को कहा है। यह सरकार के विरोध की एक बानगी है, जो राज्य स्तर पर दिखाई दे रही है। इस तरह के न जाने के कितने मामले हैं, जिन्हें लेकर भाजपा-जदयू के नेता रोज आपस में झगड़ रहे हैं। जिसकी सूचना सुशासन बाबू तक भी पहुंच रही है।
लगातार बिगड़ते हालात से सुशासन बाबू भी डिस्टर्ब हैं, लेकिन क्या करें। मजबुरी में जनता को दिखाने के लिए दांत निपोड़ना पड़ता है। आपने वह गजल तो सुनी ही होगी, तुम इतना जो मुस्करा रहे हो, क्या गम है जिसको छिपा रहे हो। नीतीश बाबू गम छिपा रहे हैं, लेकिन भाजपा है कि उन्हें सुकुन से रहने देना नहीं चाहती। लबोलुआब ये है कि भाजपा मौके की तलाश में है। वह किसी भी दिन सुशासन बाबू की कुर्सी को हिलाकर उन्हें सत्ताच्यूत कर सकती है। आप भी ठीक से समझ लीजिए।
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