नई दिल्ली। अर्थशास्त्र के क्षेत्र में नोबेल पुरस्कार जीतने वाले अभिजीत बनर्जी पर देश गौरवान्वित महसूस कर रहा है। उन्हें हर तरफ से बधाइयां मिल रही हैं। देश के लोग अभिजीत को नोबेल पुरस्कार मिलने पर फूले नहीं समा रहे हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी अभिजीत बनर्जी को बधाई दी है। पीएम मोदी ने ट्वीट किया कि अर्थव्यवस्था के क्षेत्र में नोबेल पुरस्कार जीतने पर मैं अभिजीत बनर्जी को बधाई देता हूं। उन्होंने गरीबी उन्मूलन की दिशा में महत्वपूर्ण योगदान दिया है। कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी ने भी अभिजीत बनर्जी को शुभकामनाएं दी हैं। आपको बता दें कि अभिजीत बनर्जी उन प्रमुख अर्थशास्त्रियों में शामिल थे, जिन्होंने मोदी सरकार के नोटबंदी के फैसले का विरोध किया था। उस वक्त बनर्जी ने कहा था कि नोटबंदी से शुरूआत में जिस नुकसान का अंदाजा लगाया गया था, वो असल में उससे भी ज्यादा होगा। हार्वर्ड यूनिवर्सिटी की नम्रता काला के साथ संयुक्त तौर पर लिखे गए पेपर में उन्होंने नोटबंदी की आलोचना की थी। संयुक्त रूप से लिखे गए पेपर में उन्होंने कहा था कि इसका सबसे ज्यादा नुकसान असंगठित क्षेत्र को होगा, जहां से कम से कम 85 फीसदी लोगों को रोजगार मिलता है। भारतीय-अमेरिकी अर्थशास्त्री अभिजीत बनर्जी को इस साल का अर्थशास्त्र का नोबेल पुरस्कार दिया गया है। यह पुरस्कार उन्हें उनकी पत्नी एस्थर डल्फो और माइकल क्रेमर के साथ संयुक्त रूप से दिया गया है। अभिजीत और 46 वर्षीय डल्फो एकसाथ ही एमआईटी में अर्थशास्त्र पढ़ाते हैं जबकि क्रेमर हार्वर्ड विश्वविद्यालय में प्रोफेसर हैं। डल्फो फ्रांस की रहने वाली हैं और उनकी शुरूआती पढ़ाई पेरिस में हुई है। नोबेल पुरस्कार देने वाली रॉयल स्वीडिश एकेडमी आॅफ साइंसेज ने अपने बयान में कहा है कि 2019 के अर्थशास्त्र पुरस्कार के इन विजेताओं ने ऐसे शोध किए जो वैश्विक गरीबी से लड़ने की हमारी क्षमता में काफी सुधार करता है। इस बयान में आगे कहा गया है कि सिर्फ दो दशकों में इनके नए शोध ने अर्थशास्त्र के विकास को बदल दिया है जो अब रिसर्च का एक उत्कृष्ट क्षेत्र है। अमेरिकी नागरिक 58 वर्षीय अभिजीत बनर्जी ने साल 1981 में कलकत्ता विश्वविद्यालय के प्रेसिडेंसी कॉलेज से विज्ञान में स्नातक किया। इसके बाद उन्होंने 1983 में दिल्ली की जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय से अर्थशास्त्र में एमए किया। बनर्जी ने 1988 में हार्वर्ड यूनिवर्सिटी से पीएचडी की। उनके पीएचडी का विषय सूचना अर्थशास्त्र में निंबध था। उनके पिता दीपक बनर्जी प्रेसिडेंसी कॉलेज में अर्थशास्त्र के प्रोफेसर थे जबकि उनकी मां निर्मला बनर्जी सेंटर फॉर स्टडीज इन सोशल साइंसेज, कलकत्ता में अर्थशास्त्र की प्रोफेसर थीं। पीएचडी करने के बाद बनर्जी कई जगह फेलो रहे और उन्हें अनगिनत सम्मान मिले। साथ ही वह अध्यापन और रिसर्च का अपना काम करते रहे। उन्होंने 1988 में प्रिंस्टन विश्वविद्यालय में पढ़ाना शुरू किया। 1992 में उन्होंने हार्वर्ड विश्वविद्यालय में भी पढ़ाया। इसके बाद 1993 में उन्होंने एमआईटी में पढ़ाना और शोध कार्य शुरू किया जहां पर वह अभी तक अध्यापन और रिसर्च का काम कर रहे हैं। इसी दौरान 2003 में उन्होंने एमआईटी में अब्दुल लतीफ जमील पोवर्टी एक्शन लैब की शुरूआत की और वह इसके डायरेक्टर बने। यह लैब उन्होंने एस्थर डल्फो और सेंथिल मुल्लईनाथन के साथ शुरू की। यह लैब एक वैश्विक शोध केंद्र है जो गरीबी कम करने की नीतियों पर काम करती है। यह लैब एक नेटवर्क का काम भी करती है जिससे दुनिया के विश्वविद्यालयों के 181 प्रोफेसर जुड़े हुए हैं। 2003 में ही बनर्जी को अर्थशास्त्र का फोर्ड फाउंडेशन इंटरनेशनल प्रोफेसर बनाया गया। अभिजीत बनर्जी की अर्थशास्त्र के कई क्षेत्रों में रुचि है जिसमें से चार अहम हैं। पहला आर्थिक विकास, दूसरा सूचना सिद्धांत, तीसरा आय वितरण का सिद्धांत और चौथा मैक्रो इकोनॉमिक्स है। बनर्जी अब तक पांच किताबें लिख चुके हैं और छठी किताब आने वाली है जिसका नाम 'व्हाट द इकोनॉमिक्स नीड नाउ' है। इसके अलावा उनकी एक किताब गोल्डमैन सैक्स बिजनेस बुक आॅफ द ईयर का खिताब जीत चुकी है। बहरहाल, भारतीय-अमेरिकी अभिजीत बनर्जी को मिले इस नोबेल पुरस्कार से देश का शान बढ़ा है। देश के बौद्धिक वर्ग में खुशी की लहर है।
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