भुवनेश्वर। श्री पुरी धाम के गोवर्द्धन पीठ के 145वें पीठाधीश्वर जगतगुरु स्वामी निश्चलानन्दजी सरस्वती महाराज द्वारा भुवनेश्वर कीस स्थित वाणीक्षेत्र जगन्नाथ मंदिर के प्रथम सार्वजनिक कैरा आध्यात्मिक पुस्तकालय का लोकार्पण अनेक संत-महात्माओं, साधु-संतों और आध्यात्मिक पुरुषों आदि की उपस्थिति में हुआ। मौके पर संत बाबा रामनारायण दास, कीट-कीस के प्रतिष्ठा और लोकसभा सांसद प्रो अच्युत सामंत, कीस डीम्ड विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो हरेकृष्ण सतपथी, भुवनेश्वर खण्डगिरि स्थित स्वामी शिवानंद आश्रम के स्वामी शिवच्चिदानंद, स्वामी जगन्नाथानन्द, गोवर्द्धन मठ पुरी के मनोज रथ, मातृ प्रसाद मिश्रा समेत गोवर्द्धन पीठ के आनन्दवाहिनी और आदित्यवाहिनी के अनेक सदस्यगण उपस्थित थे। जगतगुरु द्वारा वाणीक्षेत्र के नये गुण्डीचा मंदिर की स्थाई भूमि पर बननेवाले नये गुण्डीचा मंदिर का शिलान्यास भी हुआ। आयोजित धर्म सभा को संबोधित करते हुए जगतगुरु ने कहा कि कीस वाणी क्षेत्र जगन्नाथ मंदिर में उनके द्वारा लोकार्पित सार्वजनिक कैरा आध्यात्मिक पुस्तकालय में सिर्फ वैसे ज्ञान-विज्ञान, अर्थशास्त्र, नीतिशास्त्र, कला, दर्शन शास्त्र, धर्म, ज्ञान-विज्ञान और आध्यात्म के सद्ग्रंथ रखे जायें जिनके पठन और अध्ययन से युवाओं और पाठकों के मन में सात्विकता का विकास हो क्योंकि आज पूरे विश्व में लगभग चार प्रतिशत लोग ही आध्यात्मिक जीवन जी रहे हैं। शेष 96 प्रतिशत लोगों का जीवन तामसी जीवन है,भौतिक जीवन हैै। गुरुदेव बताया कि उनका यह मानना है कि संस्थापक कीट-कीस प्रो अच्युत सामंत एक सरल, सहृदय, बड़े ही आत्मीय, संवेदनशील, मृदुल और परोपकारी नेक इन्सान हैं, अगर उन्होंने यह ग्रंथालय उनके निवेदन पर खोला है तो अवश्य ही उनके मन में सात्विक विचार आये हैं। जगतगुरु ने अपने संदेश में यह कहा कि सुसंस्कृत, सुशिक्षित, सुरक्षित, समृद्ध, सेवापरायण और स्वस्थ व्यक्ति तथा समाज की संरचना में विश्व की मेधा-शक्ति, रक्षा-शक्ति और वाणिज्य सह श्रम-शक्ति का विनिवेश हो। उनके अनुसार शिक्षा और कला में अंतर है। शिक्षा विचार-विनिमय है जबकि कला मूक अभिव्यक्ति है। यह सार्वजनिक कैरा आध्यात्मिक पुस्तकालय पाठकों के मन में आध्यात्मिका और सात्विकता का प्रचार-प्रसार करेगा ऐसा उनका दृष्टिकोण है। गौरतलब है कि 2015 में परमपाद स्वामी निश्चलानन्दजी सरस्वती महाराज के निर्देशानुसार ही प्रो अच्युत सामंत ने सार्वजनिक कैरा आध्यात्मिक पुस्तकाल की स्थापना की। जगतगुरु का स्वागत और मान-सम्मान प्रो अच्युत सामंत ने अटूट भक्ति, आस्था, विश्वास और सत्यनिष्ठा के साथ किया।
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