भुवनेश्वर। उल्कल अनुज हिन्दी पुस्तकालय,भुवनेश्वर में हिन्दी के कालजयी महाकवि गोस्वामी तुलसीदास की जयंती उनके जन्मदिन पर मनाई गई। अवसर पर रामकाव्य के मर्मज्ञ डा शंकरलाल पुरोहित की अध्यक्षता में यह आयोजन हुआ। कार्यक्रम का आरंभ भारत की पूर्व विदेश मंत्री सुषमा स्वराज को उनकी आत्मा की चिर शांति के लिए दो मिनट का मौन रखकर किया गया। गौरतलब है कि मात्र 67 वर्ष की उम्र में ही गत मंगलवार को सुषमा स्वराज का असामयिक निधन हो गया। पुस्तकालय-परिवार के उपस्थित सदस्यों ने उन्हें मृदुभाषी, मिलनसार, अच्छी व सम्मोहक वक्ता, पक्ष-प्रतिपक्ष दोनों की मित्र, ज्ञानी और एक सफल राजनीतिक इच्छा शक्तिसंपन्न सफल राजनेत्री बताया। तुलसी जयंती का आरंभ रामचरितमानस वंदना में निज धर्म पर चलना,बताती रोज रामायण, सदा शुभ आचरण करना, सिखाती रोज रामायण, से हुआ। पुस्तकालय के संगठन सचिव अशोक पाण्डेय ने बताया कि तुलसीदास का जन्म उत्तर प्रदेश के राजापुर गांव में 1532ई. में श्रावण शुक्ल सप्तमी तिथि को हुआ था। उनके बचपन का नाम रामबोला था। उनके गुरु का नाम श्री नरहरिदास था। उन्होंने अपनी पत्नी रत्नावली से प्रेरणा लेकर रामचरितममानस की रचना की थी जो आज प्रत्येक हिन्दू घरों में एक पूज्य ग्रंथ में रुप में उपलब्ध है। रश्मि धवन ने तुलसीदास की रचना-तू दयालु दीन हौं, तू दानी हौं भिखारी से.. का सस्वर वाचन कर किया। प्रकाश बेताला ने बताया कि हिन्दी साहित्य के अमर कवि गोस्वामी तुलसीदासजी का रामचरितमानस अवधी-ब्रज भाषा में लिखित आज भी विश्व का सबसे बड़ा कालजयी महाकाव्य है। उन्होंने बताया कि नारी जाति का सम्मान तो रामचरितमानस में वर्णित है-सियाराममय सब जग जानि,करौं प्रणाम जोरि जुग पानि। किशन खण्डेलवाल ने बताया कि तुलसीदासजी जैसा मैनेजमेंट गुरु आज की दुनिया में कोई नहीं है। उन्होंने बताया कि राम चाहते तो रावण के साथ यु़द्ध करने के लिए अयोध्या से सेना बुला सकते थे लेकिन कमाल का उनका मैनेजमेंट रहा मात्र राम-लक्ष्मण दो शूरवीरों द्वारा सोने की लंका का दहन किया गया साथ में लंकापति रावण का वध भी। यही नहीं, दोनों राम-लक्ष्मण युद्धक्षेत्र से सकुशल वापस भी लौटे। डा शंकरलाल पुरोहित ने बताया कि तुलसीदास की रचनाओं को उन्होंने मात्र अध्ययन ही नहीं किया है अपितु काशी आदि जगहों में जाकर उस परिवेश का भी अवलोकन किया है जिस परिवेश में तुलसीदास ने नारी के तिरस्कार के उपरांत और उसी नारी की प्रेरणा से रामचरितमानस की उन्होंने रचना की। उन्होंने यह भी बताया कि तुलसीदास हिन्दू-मुस्लिम एकता के एकमात्र संदेशवाहक महाकवि रहे जिन्होंने रहीम को अपनी कुटिया में आमंत्रितकर उन्हें गले लगाया। यह हमारी भारतीय संस्कृति की अनुपम देन है। अशोक पाण्डेय ने बताया कि रामचरितमानस सामाजिक और पारिवारिक समन्वय की एक विराट चेष्टा है जिसमें जनमत के आदर का आज भी बहुत बड़ा संदेश समाहित है। श्री शिवकुमार शर्मा ने बताया कि तुलसीदास की कवितावली और दोहावली समेत उन्होंने रामचरितमानस का भी आद्योपांत पाठ किया है। आज भी उन रचनाओं की प्रासांगिकता है।आयोजन सराहनीय रहा। अवसर पर डा शंकरलाल पुरोहित, प्रकाश बेताला, प्रेमजी अग्रवाल, शीलभद्र शास्त्री, डा आर एन ठाकुर, नारायण मतावल, किशन खण्डेलवाल, रश्मि धवन, अशोक पाण्डेय, शिवकुमार शर्मा, सीमा अग्रवाल और आर एन ठाकुर आदि उपस्थित थे। प्रस्तुति : अशोक पाण्डेय
- Blogger Comments
- Facebook Comments
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
0 comments:
Post a Comment
आपकी प्रतिक्रियाएँ क्रांति की पहल हैं, इसलिए अपनी प्रतिक्रियाएँ ज़रूर व्यक्त करें।