नई दिल्ली। तीन बार राज्यसभा में खारिज किए जा चुके मुस्लिम महिला (शादी पर अधिकारों की सुरक्षा) विधेयक, 2019 को आखिरकार उच्च सदन ने भी मंजूरी दे दी। सरकार के पास राज्यसभा में पूर्ण बहुमत न होने के बावजूद विपक्षी दलों के बिखराव और मित्र दलों की सहायता से यह बिल पास हुआ। बिल के पक्ष में 99 और विरोध में 84 वोट पड़े। अब ये बिल कानून का रूप लेगा। पिछले सप्ताह ही इस बिल को लोकसभा ने मंजूरी दी थी। केंद्रीय मंत्री रविशंकर प्रसाद ने बिल पेश करने के दौरान कहा था कि तील तलाक 20 से ज्यादा देशों में प्रतिबंधित है, इस कानून को राजनीति के चश्मे से न देखें। अब तीन तलाक देने पर आरोपी को तीन साल की जेल होगी।
तीन तलाक बिल को सेलेक्ट कमेटी में भेजे जाने के मुद्दे पर वोटिंग हुई। नए सांसदों को सीट अलॉट न होने कारण पर्ची से वोटिंग की गई। हालांकि, यह प्रस्ताव 100-84 के अंतर से गिर गया। इसके पक्ष में 84 वोट पड़े तो न भेजे जाने के पक्ष में 100 सांसदों ने वोट किया। वोटिंग के दौरान कई सांसदों का नदारद रहना भी इसके पक्ष में गया। जदयू, अन्नाद्रमुक, टीआरएस और बसपा जैसे दल सदन में मौजूद ही नहीं थे। बता दें कि तीन तलाक बिल को विपक्ष ने शुरूआत से ही खारिज किया है। तृणमूल कांग्रेस की एक नेता ने तो कहा था कि यह अध्यादेश बिना संसदीय समीक्षा के लाया गया है इसलिए वह इसके विरोध में हैं। वहीं, बिल पर चर्चा के दौरान कांग्रेस नेता दुलाम नबी आजाद ने कहा था कि यह बिल मुस्लिम महिलाओं की शादी के अधिकार की सुरक्षा पर है, लेकिन इसका असली मकसद परिवारों को बर्बाद करना है। इस बिल के विरोध में जनता दल यूनाइटेड (जदयू) सांसद वशिष्ठ नारायण सिंह ने कहा था कि हमारी पार्टी इस बिल के समर्थन में नहीं है। उन्होंने कहा कि विधेयर पर बड़े पैमाने पर जागरूकता फैलाने की जरूरत है। इस विधेयक के विरोध में हमारी पार्टी वॉकआउट करती है।
सुप्रीम कोर्ट की संवैधानिक बेंच ने 2017 में तीन तलाक को निरस्त किया था। दो जजों ने इसे असंवैधानिक कहा था, एक जज ने इसे पाप बताया था। इसके बाद दो जजों ने इस पर संसद को कानून बनाने को कहा था। संसद में यह बिल लोकसभा से तो दो बार पास हुआ, लेकिन राज्यसभा में अटक गया। इसके बाद इसे कानूनी जामा पहनाने के लिए सरकार ने अध्यादेश का रास्ता चुना। छह महीने के अंदर इस पर संसद की मुहर लगनी जरूरी थी। तीन तलाक पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बावजूद इसका इस्तेमाल होने पर सरकार सितंबर 2018 में अध्यादेश लाई। तीन तलाक देने पर पति को तीन साल की सजा का प्रावधान रखा गया। हालांकि, किसी संभावित दुरुपयोग को देखते हुए विधेयक में अगस्त 2018 में संशोधन कर दिए गए थे। जनवरी 2019 में इस अध्यादेश की अवधि पूरी होने से पहले दिसंबर 2018 में एक बार फिर सरकार बिल को लोकसभा में नए सिरे से पेश करने पहुंची थी। 17 दिसंबर 2018 को लोकसभा में बिल पेश किया गया। हालांकि, एक बार फिर विपक्ष ने राज्यसभा में इसे पेश नहीं होने दिया और बिल को सेलेक्ट कमेटी में भेजने की मांग की जाने लगी। एक बार फिर बिल अटक गया। बता दें कि सायरा बानो केस पर फैसला सुनाते हुए साल 2017 में सुप्रीम कोर्ट ने तत्काल प्रभाव से तीन तलाक को असंवैधानिक घोषित कर दिया था। अलग-अलग धर्मों वाले 5 जजों की बेंच ने 3-2 से फैसला सुनाते हुए सरकार से तीन तलाक पर छह महीने के अंदर कानून लाने को कहा था। तीन तलाक को कई मुस्लिम देशों ने बैन कर रखा है। इन देशों का जिक्र सुप्रीम कोर्ट में ट्रिपल तलाक पर बने पैनल ने भी किया था। पैनल ने ताहिर महमूद और सैफ महमूद की किताब मुस्लिम लॉ इन इंडिया का जिक्र किया। इसमें अरब के देशों में तीन तलाक को समाप्त किए जाने की बात कही है। अल्जीरिया, मिस्र, इराक, जॉर्डन, कुवैत, लेबनान, लीबिया, मोरक्को, सूडान, सीरिया, ट्यूनीशिया, संयुक्त अरब अमीरात और यमन जैसै देशों में तीन तलाक पर प्रतिबंध है। इसके अलावा इंडोनेशिया, मलेशिया और फिलीपींस जैसे दक्षिण-पूर्व एशियाई देश तलाक के लिए सख्त कानून रखते हैं।
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