बीबीसी संवाददाता
चंडीगढ़। हरियाणा में 10 लोकसभा सीटें हैं. शायद संख्या कम लगे मगर ये राज्य राष्ट्रीय स्तर पर कितना महत्व रखता है ये नरेंद्र मोदी से लेकर प्रियंका गांधी की यहां हुई रैलियों से भी पता चलता है. राज्य में 12 मई को हरियाणा के एक करोड़ 74 लाख वोटर मतदान करेंगे. हरियाणा में इस वक्त बीजेपी नेताओं के भाषणों में मोदी और राष्ट्रवाद का ज़िक्र ज़्यादा सुनाई दे रहा है. वहीं कांग्रेस नेताओं के भाषणों में मोदी विरोध और बीजेपी के भाईचारा बिगाड़ने के आरोप और न्याय योजना की बात ज़्यादा है. हरियाणा के 2014 विधानसभा चुनाव के बाद मुख्यमंत्री पद के लिए मनोहर लाल खट्टर के नाम की घोषणा हुई. बहुत से लोगों के लिए ये चौंकाने वाला नाम था. बीजेपी के राष्ट्रीय नेतृत्व ने इशारा दे दिया था कि पिछले 18 सालों से जाट नेताओं का प्रतिनिधित्व देख रहे राज्य में किसी गैर-जाट नेता को मुक़ाबले में खड़ा करके ही अलग राजनीति खड़ी की जा सकती है. 2016 में जाट आंदोलन में हुई हिंसा के बाद से हरियाणा की राजनीति जाट बनाम गैर-जाट हो गई. इस बार के लोकसभा चुनाव में ये एक मुद्दा है. रोहतक, सोनीपत, भिवानी-महेंद्रगढ़ में ये मुद्दा अपना प्रभाव दिखा रहा है.
इन लोकसभा क्षेत्रों में मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर भी ज़्यादा फोकस कर रहे हैं और लगातार उम्मीदवार के सपोर्ट के लिए रैलियां कर रहे हैं. हरियाणा की दो सीटों रोहतक और सोनीपत पर कांग्रेस काफ़ी मज़बूत नज़र आ रही है. इन दोनों सीटों पर पिता-पुत्र जोड़ी भूपेंद्र सिंह हुड्डा और दीपेंद्र सिंह हुड्डा लड़ रहे हैं. पूर्व मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा ने जाट हार्टलैंड की दो प्रमुख सीटों - रोहतक और सोनीपत की टिकटें झटक कर दिखा दिया था कि वे जाटलैंड पर किसी और को कब्ज़ा नहीं करने देंगे. उन्होंने करनाल से विधानसभा के पूर्व स्पीकर एवं मौजूदा विधायक कुलदीप शर्मा और कुरूक्षेत्र से पूर्व मंत्री निर्मल सिंह को भी टिकट दिला कर दिखा दिया कि कांग्रेस हाई कमान पर उनका किस कदर प्रभाव है. कुलदीप शर्मा और निर्मल सिंह दोनों ही हुड्डा के बेहद नज़दीकी माने जाते हैं. भूपेंद्र सिंह हुड्डा के मुक़ाबले बीजेपी ने रमेश कौशिक को उतारा है. हरियाणा के चुनावों में 30 फीसदी जाट और लगभग 25 फीसदी ब्राह्मण वोट निर्णायक भूमिका में हैं. 2014 लोकसभा में मोदी लहर के बावजूद दीपेंद्र सिंह हुड्डा अपनी सीट बचा ले गए थे. रोहतक से लगातार तीन बार के सांसद दीपेंद्र अपने काम और शराफत का हवाला देकर वोट मांग रहे हैं. बीजेपी ने रोहतक सीट से अरविंद शर्मा को टिकट दिया है जो कांग्रेस से ही बीजेपी में आए हैं. करनाल में वे कांग्रेस की सीट पर सांसद रह चुके हैं.
कभी चौधरी बंसीलाल का मजबूत गढ़ माने जाने वाले भिवानी ज़िले में बंसीलाल की पोती श्रुति चौधरी 2009 में इस सीट से सांसद चुनी गईं थी. लेकिन 2014 में यहां धर्मवीर सिंह ने बड़े अंतर से जीत दर्ज की थी और एक बार फिर से बीजेपी ने उन पर भरोसा जताया है. श्रुति चौधरी तीसरे नंबर पर रही थीं. भिवानी-महेंद्रगढ़ को संयुक्त लोकसभा सीट बनाए जाने से इस सीट के नतीजों को भांपना अब पहले जितना आसान नहीं रह गया है. भिवानी ज़िले में जाट मतदाता ज़्यादा हैं तो महेंद्रगढ़ में सबसे ज़्यादा तादाद यादव मतदाताओं की है. लेकिन इस बार भाजपा और कांग्रेस ने जाट उम्मीवारों पर भरोसा जताया है और इंडियन नेशनल लोकदल (इनेलोद) और उससे टूटकर वजूद में आई जननायक जनता पार्टी (जेजेपी) दोनों ने ही यादव उम्मीदवारों को मैदान में उतारा है. इससे इस सीट के समीकरण बुरी तरह उलझे हुए नजर आ रहे हैं. हरियाणा की राजनीति के जानकारों का मानना है कि जेजेपी की स्वाति यादव और इनेलोद के बलवान सिंह मुख्य मुकाबले से बाहर हैं और दोनों एक दूसरे से आगे रहने की होड़ में परस्पर एक दूसरे के वोट ही ज्यादा काट रहे हैं. इनेलोद 2014 में यहां दूसरे स्थान पर रही थी और इस बार दोनों पार्टियों के वोटर अलग होने का फ़ायदा कांग्रेस या बीजेपी किसी को भी हो सकता है. इस पूरे इलाके में मतदाताओं का ध्रुवीकरण मोदी विरोध या मोदी समर्थन को लेकर होता लग रहा है. हालांकि हर सीट पर बीजेपी के उम्मीदवार नरेंद्र मोदी के नाम पर वोट मांग रहे हैं और राष्ट्रीय मुद्दों पर ज़्यादा ज़ोर दे रहे हैं. सिरसा सीट कांग्रेस के प्रदेशाध्यक्ष डॉक्टर अशोक तंवर को एक बार फिर से मैदान में उतारे जाने के कारण प्रदेश भर के लोगों का ध्यान जरूर खींच रही है, लेकिन और किसी उम्मीदवार की चर्चा सिरसा से बाहर नहीं सुनाई दे रही. अशोक तंवर ने भूपेंद्र सिंह हुड्डा को अपने पक्ष में जनसभाएं करने के लिए तैयार करके जाट समुदाय में बड़ी सेंध लगाने में सफलता हासिल की है. जाटों के वोट यहां पांच लाख से ज्यादा हैं. इस सीट पर बीजेपी से सुनीता दुग्गल उम्मीदवार हैं. हिसार सीट इस बार दिलचस्प बनी हुई है. हरियाणा के तीन बड़े राजनीतिक घराने इस बार चुनाव मैदान में हैं. पूर्व उप-प्रधानमंत्री देवीलाल के परपोते दुष्यंत चौटाला अपनी सीट बचाने के लिए मैदान में हैं. वहीं भजन लाल के पोते भव्य बिश्नोई इस बार चुनाव लड़ रहे हैं. हरियाणा के प्रमुख नेता सर चौधरी छोटूराम के वंशज एवं केंद्रीय इस्पात मंत्री चौधरी बीरेंद्र सिंह के बेटे बृजेंद्र सिंह भी बीजेपी का टिकट लेकर मुक़ाबले में हैं. यहां मुख्य मुक़ाबला कांग्रेस के भव्य बिश्नोई और नवगठित 'जननायक जनता पार्टी' के दुष्यंत चौटाला के बीच ही दिखाई दे रहा है. पिछले लगभग दो दशकों के दौरान भजन लाल और देवीलाल के परिवार कई मर्तबा 'चुनावी-जंग' में आमने सामने हो चुके हैं. दोनों ही परिवार कभी जीत तो कभी हार का मुंह देखते रहे हैं. मतदाताओं ने कभी भजनलाल परिवार को सिर माथे पर बैठाया तो कभी देवीलाल परिवार के सिर पर जीत का सेहरा बांधा. पिछली बार दुष्यंत चौटाला ने भजनलाल के बेटे कुलदीप बिश्नोई को लगभग 32 हजार वोटों से हराया था.
हिसार लोकसभा सीट पर कभी भी किसी एक पार्टी का वर्चस्व नहीं रहा. यहां के मतदाताओं की पसंद समय के साथ बदलती रही है. गुड़गांव लोकसभा सीट से भाजपा प्रत्याशी राव इंद्रजीत सिंह छठी बार चुनाव लड़ रहे हैं और पिछले पांच चुनावों में उन्होंने चार बार जीत दर्ज की है. बीजेपी की टिकट पर वह दूसरी बार चुनाव लड़ने जा रहे हैं. गुड़गांव से वे तीसरी बार चुनाव लड़ रहे हैं और उनका वोट प्रतिशत भी पिछले दो चुनावों से बढ़ रहा है. फरीदाबाद में भी बीजेपी ने अपने सांसद कृष्ण पाल गुर्जर को फिर से कांग्रेस के अवतार सिंह भड़ाना के ख़िलाफ़ उतारा है. इस सीट पर आखिरी वक्त में कांग्रेस ने ललित नागर का टिकट काटकर अवतार भड़ाना को टिकट दिया था. इससे कांग्रेस कार्यकर्ताओं में नाराज़गी भी थी. इसलिए यहां बीजेपी बेहतर स्थिति में दिख रही है. हरियाणा के गठन से लेकर अब तक यहां से केवल पांच महिलाएं ही संसद तक पहुंच पाई हैं. इस बार के लोकसभा चुनाव में 11 महिलाएं मैदान में हैं. इन 11 में से सात तो निर्दलीय ही चुनाव लड़ रही हैं. साभार बीबीसीराजनीति के जानकार मानते हैं कि कांग्रेस प्रत्याशी कुलदीप शर्मा का करनाल सीट से जीत पक्की है। दरअसल, वहां ब्राह्मण मतदाताओं की संख्या ज्यादा है और लोगों में भाजपा की केन्द्र व राज्य सरकार के प्रति गुस्सा भी दिख रहा है। कहा जा रहा है कि इसी गुस्से का लाभ कांग्रेस उम्मीदवार कुलदीप शर्मा को मिल सकता है।
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