नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार (10 जनवरी, 2017) को इस तरह की आलोचनाओं पर नाराजगी जाहिर की कि वह सरकार चलाने का प्रयास कर रहा है। कोर्ट ने कहा कि यदि कार्यपालिका द्वारा अपना काम नहीं करने की ओर ध्यान खींचा जाए तो न्यायपालिका पर आरोप लगाए जाते हैं। न्यायमूर्ति मदन बी लोकूर और न्यायमूर्ति दीपक गुप्ता की पीठ ने इस तरह की तल्ख टिप्पणियां देश में शहरी बेघरों को आवास मुहैया कराने से संबंधित मामले की सुनवाई के दौरान की। पीठ ने सुनवाई के दौरान उत्तर प्रदेश सरकार को आड़े हाथ लिया और कहा, ‘ऐसा लगता है कि आपका तंत्र विफल हो गया है।’ पीठ ने कहा, ‘यदि आप लोग काम नहीं कर सकते हैं तो ऐसा कहिए कि आप ऐसा नहीं कर सके। हम कार्यपालिका नहीं हैं। आप अपना काम नहीं करते हैं और जब हम कुछ कहते हैं तो देश में सभी यह कहकर हमारी आलोचना करते हैं कि हम सरकार और देश चलाने का प्रयास कर रहे हैं।’ सुप्रीम कोर्ट ने आगे कहा कि दीनदयाल अंत्योदय योजना-राष्ट्रीय शहरी आजीविका मिशन योजना 2014 से चल रही है परंतु उत्तर प्रदेश सरकार ने लगभग कुछ नहीं किया है।
पीठ ने उत्तर प्रदेश सरकार की ओर से पेश अतिरिक्त सालिसीटर जनरल तुषार मेहता से कहा कि प्राधिकारियों को यह ध्यान रखना चाहिए कि यह मामला मनुष्यों से संबंधित है। पीठ ने कहा, ‘ऐसी कुछ चीजे हैं। हम उन लोगों के बारे में बात कर रहे हैं जिनके पास रहने की कोई जगह नहीं है। और ऐसे लोगों को जिंदा रहने के लिए कोई स्थान तो देना ही होगा।’ मेहता ने कहा कि राज्य सरकार स्थिति के प्रति सजग है और शहरी बेघरों को बसेरा उपलब्ध कराने के लिए अथक प्रयास कर रही है। पीठ शहरी बेघरों और राष्ट्रीय शहरी आजीविका मिशन योजना पर अमल से संबंधित मामले से निबटने के लिए राज्य स्तर पर समितियां गठित करने के सुझाव पर भी विचार कर रही है। केन्द्र ने न्यायालय को सुझाव दिया कि इन मुद्दों से निबटने के लिए वह प्रत्येक राज्य में दो सदस्यीय समिति गठित कर सकता है। अदालत ने केन्द्र सरकार को राज्य सरकारों के साथ तालमेल करके समिति के लिए अधिकारी के नामों के सुझाव देने को कहा। न्यायालय ने याचिकाकर्ता से भी कहा कि उसे भी सिविल सोसायटी से एक एक व्यक्ति के नाम का सुझाव देना चाहिए। अदालत ने दो सप्ताह के भीतर आवश्यक कदम उठाने का निर्देश देते हुए इस मामले की सुनवाई आठ फरवरी के लिए स्थगित कर दी है। इस बीच, याचिकाकर्ता के वकील प्रशांत भूषण ने कहा कि उत्तर प्रदेश में यह बहुत बड़ा काम है क्योंकि वहां एक लाख अस्सी हजार बसेरों की आवश्यकता है और अभी करीब सात हजार ही बने हैं। साभार जनसत्ता
राजीव रंजन तिवारी (संपर्कः 8922002003)
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