लखनऊ। उत्तर प्रदेश की बीजेपी सरकार ने उत्तर प्रदेश संगठित अपराध नियंत्रण अधिनियम (यूपीकोका) विधेयक विधानसभा में पेश कर दिया। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने सदन की कार्यसूची में शामिल नहीं होने के बावजूद अचानक से बुधवार को यह विधेयक सदन में पेश किया। सत्ता पक्ष की ओर से अचानक पेश किए गए इस विधेयक से विपक्ष भी थोड़ी देर के लिए सकते में आ गया। हालांकि, सदन में सभी विपक्षी दलों ने एक सुर में इस विधेयक को काला कानून करार देते हुए इसका विरोध किया। इस विधेयक पर अब गुरुवार को चर्चा होगी और फिर इसे पारित कराया जाएगा। इसके बाद उसे राज्यपाल की मंजूरी के लिए भेजा जाएगा और वहां से मंजूरी मिलते ही प्रदेश में संगठित अपराध के खिलाफ कड़ा कानून लागू हो जाएगा।
विधेयक के प्रावधानों के अनुसार किसी व्यक्ति का अकेले या संयुक्त रूप से या संगठित तौर पर किसी संगठित अपराध के सिंडिकेट के सदस्य के रूप में काम करना, हिंसा का सहारा लेना, दबाव के लिए धमकी देना, घूसखोरी, प्रलोभन या लालच के सहारे अपराध को अंजाम देना संगठित अपराध की श्रेणी में आएगा। आर्थिक लाभ, किसी दूसरे को अनुचित लाभ पहुंचाना, विद्रोह को बढ़ावा देना, आतंक फैलाना, आगजनी, बलपूर्वक या हिंसा द्वारा सरकार को उखाड़ फेंकने के लिए विस्फोटकों,आग्नेयास्त्रों, हिंसात्मक साधनों के प्रयोग से जीवन या संपत्ति को नुकसान पहुंचाना, लोक सेवा के अधिकारी को मारने या तबाह करने की धमकी देना भी इस कानून के दायरे में आएगा। इस अधिनियम के अंतर्गत पंजीकृत होने वाले अभियोग मंडलायुक्त तथा परिक्षेत्रीय पुलिस महानिरीक्षक की दो सदस्यीय समिति के अनुमोदन के बाद ही पंजीकृत होंगे। अब तक पुलिस पहले अपराधी को पकड़कर अदालत में पेश करती थी, फिर सबूत जुटाती थी। लेकिन यूपीकोका के तहत पुलिस पहले अपराधियों के खिलाफ सबूत जुटाएगी और फिर उसी के आधार पर उनकी गिरफ्तारी होगी। यानी अब अपराधी को अदालत में अपनी बेगुनाही साबित करनी होगी। इसके अलावा सरकार के खिलाफ होने वाले हिंसक प्रदर्शनों को भी इसमें शामिल किया गया है। इस विधेयक में गवाहों की सुरक्षा का ख्याल रखने की बात कही गई है। यूपीकोका के तहत आरोपी यह नहीं जान सकेगा कि किसने उसके खिलाफ गवाही दी है।
विधेयक पेश करते हुए सीएम योगी आदित्यनाथ ने कहा कि सरकार यूपीकोका के प्रस्ताव को सदन में पेश कर रही है। इस विधेयक के कानून बन जाने के बाद संगठित अपराध को रोकने में मदद मिलेगी। विधेयक पेश किए जाने के बाद नेता प्रतिपक्ष रामगोविंद चौधरी ने कहा कि सरकार पहले ही प्रदेश में अघोषित आपातकाल लगा चुकी है। चौधरी ने कहा, "यूपीकोका दरसअल उप्र में राजनीतिक विरोधियों को परेशान करने के लिए लाया जा रहा है। यह एक काला कानून है। सरकार ने अघोषित आपातकाल तो पहले ही लगा दिया था, अब इस विधेयक के आने से लिखित आपातकाल भी लग जाएगा।" उन्होंने कहा कि इस काले कानून से सरकार एक तरफ जहां राजनीतिक विरोधियों को परेशान करेगी, वहीं दूसरी ओर मीडिया की आजादी पर भी प्रतिबंध लगाने का काम करेगी। मीडिया को इससे सतर्क रहने की जरूरत है। रामगोबिंद के बाद मऊ सदर सीट से विधायक मुख्तार अंसारी ने भी यूपीकोका को काला कानून करार दिया। उन्होंने कहा कि यूपी सरकार यूपीकोका विधेयक राजनीतिक विरोधियों को परेशान करने और जेल में डालने के लिए ला रही है। इस मुद्दे को लेकर सड़क पर उतरा जाएगा। सत्र की शुरुआत से पहले ही बसपा ने इस विधेयक का विरोध किया और कहा कि यह विधेयक महाराष्ट्र के मकोका कानून की तर्ज पर बनाया गया है। बसपा के अनुसार, “यूपीकोका को गरीब, दलित और पिछड़ी जाति के लोगों के उत्पीड़न के लिए इस्तेमाल किया जाएगा और इसीलिए वह इसका विरोध कर रही है।” समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव ने भी एक दिन पहले इस विधेयक का विरोध करते हुए कहा कि यूपी सरकार विरोधियों को दबाने के लिए यह कानून लेकर आ रही है।
राज्य में मानवाधिकार पर काम करने वाले संगठन रिहाई मंच ने कहा है कि राजनीतिक विरोधियों को फंसाने के लिए बीजेपी यूपीकोका लेकर आई है। मंच के महासचिव राजीव यादव ने इस विधेयक को लोकतंत्र का गला घोंटने वाला कानून करार देते हुए कहा कि मकोका की तर्ज पर बनाया गया यह कानून मुसलमानों, दलितों और पिछड़ों के उत्पीड़न के लिए जातिगत और धार्मिक द्वेष की भावना से लाया जा रहा है। यादव ने कहा, “इसके पहले इस तरह के कानूनों का इस्तेमाल मुसलमानों , दलितों और पिछड़ों के खिलाफ किया गया है। हिंसा और नफरत फैलाकर सत्ता में आई बीजेपी सरकार लोकतांत्रिक ढंग से चलने वाले भाजपा विरोधी आंदोलनों को हिंसक करार देकर आंदोलनों का दमन करना चाहती है। राजीव यादव ने कहा कि यूपीकोका के जरिये प्रदेश सरकार लोकतंत्र के चौथे खंभे मीडिया की अभिव्यक्ति की आजादी को खत्म करना चाहती है। इसके खिलाफ पूरे प्रदेश में आंदोलन किया जाएगा। रिहाई मंच ने कहा कि जिस सरकार के मुखिया के ऊपर दर्जनों आपराधिक मुकदमें दर्ज हों उनको कानून व्यवस्था पर बात करने का नैतिक हक नही, यूपीकोका तो दूर की बात है। उन्होंने योगी सरकार पर कटाक्ष करते हुए कहा, “यूपीकोका लाने वाले योगी आदित्यनाथ को चाहिए कि वह अपने द्वारा कृत्य अपराधों की लिस्ट सदन में पेश करें। रिहाई मंच आदित्यनाथ योगी के अपराधों की सूची लेकर पूरे सूबे में जनता के बीच जाएगा।” साभार नवजीवन
राजीव रंजन तिवारी (संपर्कः 8922002003)
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