बीजेपी का छिपा हुआ इरादा सामने आ गया है। केंद्रीय मंत्री अनंत कुमार हेगड़े ने कहा है कि मोदी सरकार जल्द ही संविधान में बदलाव करेगी। उन्होंने विशेष तौर पर जोर देते हुए कहा कि बीजेपी संविधान में बदलाव करने के लिए ही सत्ता में आई है और बहुत जल्द ऐसा करेगी। यह विचार संविधान के निर्माण के समय से ही आरएसएस के एजेंडे का हिस्सा रहा है। आरएसएस भारत को एक हिंदू राष्ट्र में परिवर्तित करना चाहता है। लेकिन आरएसएस के इस षड़यंत्र की राह में दो बड़ी बाधाएं हैं। पहला, खुद संविधान, जिसके बारे में आरएसएस दावा है कि यह भारत के सभ्यतागत मूल्यों का प्रतिनिधित्व नहीं करता है। दूसरा, हमारा संविधान भारत को एक आधुनिक और धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र बनाता है, जिसमें इसके सभी नागरिकों को बराबर के अधिकार दिए गए हैं, चाहे वे किसी भी धर्म, जाति और पंथ के मानने वाले हों। सभी के लिए समान अधिकार के साथ आधुनिक और धर्मनिरपेक्ष राज्य के ये दोनों आदर्श हिंदू राष्ट्र की अवधारणा के खिलाफ हैं। हिंदू राष्ट्र, मनुवाद का ही एक थोड़ा आधुनिक विचार है, जिसमें नागरिकों को समानता के अधिकार की अनुमति नहीं है। मनु के सिद्धांतों के अनुसार, भारतीय सभ्यता जाति के अनुक्रम पर आधारित है, जिसमें स्वयं हिंदुओं की एक बड़ी आबादी को ही समानता से वंचित रखा गया है। स्वाभाविक तौर पर ऐसा राज्य आधुनिक और उन गैर-हिंदुओं के खिलाफ होगा, जिन्हें भारतीय संविधान अल्पसंख्यक मानता है।
अगर आप पीछे मुड़कर देखें कि पिछले तीन वर्षों के मोदी शासन के दौरान आरएसएस के विभिन्न संगठन क्या कर रहे थे, तो आपको एक ऐसा पैटर्न मिलेगा, जो आरएसएस के हिंदू राष्ट्र की विचारधारा को जाहिर करता है। उदाहरण के लिए, गुजरात के उना की घटना, जहां मनुवादी सोच में दलित माने जाने वाले समुदाय के लोगों को गायों का चमड़ा निकालने के लिए सार्वजनिक तौर पर पीटा गया; गाय के प्रति ऐसी श्रद्धा कि मवेशियों का व्यापार करने वालों की भी भीड़ द्वारा हत्या की जा रही है; बिना किसी वजह के हिंदू राष्ट्र की प्रशंसा करने के लिए स्कूली पाठ्य पुस्तकों में बदलाव; प्रधानमंत्री सार्वजनिक तौर पर योग का इस तरह समर्थन कर रहे हैं जैसे यह सभी रोगों का रामबाण इलाज है; और अंततः उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री के रूप में एक योगी की नियुक्ति - ये सभी हिंदू राष्ट्र के स्पष्ट लक्षण हैं। विडंबना यह है कि बेहद समझदारी से रची गईं ये सभी घटनाएं भारतीय संविधान की आत्मा और अर्थ के खिलाफ हैं। इसलिए हेगड़े ने संविधान के बारे में जो भी कहा है वह बिल्कुल भी कोई नया विचार नहीं है। उदाहरण के तौर पर, 2 अक्टूबर 2017 को नेशनल हेरल्ड को दिए एक साक्षात्कार में आरएसएस के एक प्रखर विचारक केएन गोविंदाचार्य ने स्वीकार किया था कि 'हिंदुत्व सेना भारत के संविधान को फिर से लिखने की योजना पर खामोशी के साथ काम कर रही है।” आरएसएस के किसी भी व्यक्ति की तरह उन्हें ''धर्मनिरपेक्षता और समाजवाद'' जैसे शब्दों पर गंभीर आपत्तियां हैं। गोविंदाचार्य ने कहा था, "भारत में धर्मनिरपेक्षता का क्या अर्थ है? इसका मतलब है हिंदुओं का विरोध और मुस्लिमों या अन्य अल्पसंख्यकों का तुष्टीकरण।” उनको ‘मानव अधिकार’ जैसी अवधारणा से भी गंभीर आपत्ति है।
मानवाधिकारों, धर्मनिरपेक्षता और समाजवाद का सिद्धांत अनिवार्य रूप से एक आधुनिक राज्य का मूलभूत सिद्धांत है, जबकि आरएसएस भारत को प्राचीन भारत के लोकाचारों में ढालना चाहता है, जो कि इसके विचार में एक जाति आधारित हिंदू राष्ट्र है, जिसमें गैर-हिंदू अल्पसंख्यकों को कोई अधिकार प्राप्त नहीं होना चाहिए। क्या ऐसा संवैधानिक विचार भारत के लिए सही है? सबसे पहले, इस तरह के विचार प्राचीन और रूढ़ीवादी हैं और ये भारत को आगे की बजाय प्राचीन काल में ले जाएंगे। दूसरी बात, भारत एक लंबे औपनिवेशिक संघर्ष की वजह से पहले ही एक आधुनिक लोकतांत्रिक राज्य के तौर पर विकसित हो चुका है। भारत का इतिहास पुनर्जागरण से होकर गुजरने वाला रहा है, जहां इसने लोकतांत्रिक राजनीति, समानता और मानवाधिकार आदि जैसे पश्चिमी मूल्यों को आत्मसात किया है। अब इन मूल्यों को बदलने का अर्थ वापस इतिहास में लौटना होगा। अपने स्वतंत्रता संग्राम के दौरान ही भारत ने एक आधुनिक और धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र में विकसित होने के लिए सर्वसम्मति विकसित कर लिया था। भारत का संविधान अनिवार्य तौर पर उसी आम सहमति को दर्शाता है, जिसे संघ अब बदलना चाहता है। हेगड़े का बयान उसी दिशा में सोच समझकर उठाया गया एक कदम है। वास्तव में हेगड़े आरएसएस का एक मुखौटा हैं, जिसे यह परखने की जिम्मेदारी दी गई है कि भारतीय संविधान में बदलाव की आरएसएस की कोशिश को भारत की राजनीतिक व्यवस्था किस हद तक स्वीकार करने के लिए तैयार है। यह परीक्षण करने के लिए कार्य सौंपा गया है। हेगड़े एक केंद्रीय मंत्री हैं, जो कर्नाटक में संघ की आवाज हैं और अपने गृह राज्य में कट्टर हिंदुत्व का पालन करते आ रहे हैं। वह संघ के इरादे को जाहिर कर रहे हैं और उसकी इच्छा को लागू करने के लिए एक रास्ता तैयार कर रहे हैं।
इसलिए, यह आधुनिक और धर्मनिरपेक्ष भारतीय प्रतिष्ठानों के लिए खड़े होने और भारतीय संविधान पर सरकार से अपना पक्ष स्पष्ट करने की मांग का समय है। अपने दल के लिए चुनावी जीत की उम्मीद में गैर-हिंदुत्ववादी पार्टियों को नरम-हिंदूत्व की राजनीति पर अपना दांव नहीं लगाना चाहिए। अगर संविधान में बदलाव होता है, तो फिर धर्मनिरपेक्ष राजनीति और नेताओं के लिए कोई गुंजाइश नहीं बचेगी। इसलिए, हेगड़े जैसे लोगों से लड़ने और भारतीय संविधान की रक्षा करने की तत्काल जरूरत है, जो कि भारत को एक गौरवशाली आधुनिक राज्य बनाता है। वरना हम आरएसएस के आदर्शों वाला हिंदू पाकिस्तान बन जाएंगे। साभार नवजीवन
राजीव रंजन तिवारी (संपर्कः 8922002003)
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