नवाबगंज (जानकी शरण)। उत्तर प्रदेश में होने जा रहे नगर निकाय चुनावों में प्रमुख राजनीतिक दलों के बीच अध्यक्ष पद की उम्मीदवारी को लेकर शुरू हुआ विवाद थमने का नाम नहीं ले रहा है। गोंडा जिले की नवाबगंज नगर पालिका सीट पर अध्यक्ष पद के लिए सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी के सांसद और उत्तर प्रदेश में वरिष्ठ कैबिनेट मंत्री एक ओर जहां आमने-सामने आ गए हैं, वहीं दूसरी ओर कर्नलगंज नगर पालिका सीट पर नामांकन की अंतिम तारीख बीत जाने के बावजूद पार्टी अधिकृत प्रत्याशी घोषित नहीं कर सकी है। नगर पंचायत खरगूपुर में भी पार्टी के अधिकृत उम्मीदवार के खिलाफ पूर्व अध्यक्ष ने नामांकन करके मुश्किलें पैदा कर दी हैं। मुख्य विपक्षी दल समाजवादी पार्टी ने गोण्डा नगर पालिका से रविवार को बारी-बारी से तीन नामों का ऐलान किया। दिन भर की उठापटक के बाद देर शाम जब पूर्व पालिकाध्यक्ष की पत्नी के नाम का ऐलान किया गया, तब तक निर्वाचक रजिस्ट्रीकरण अधिकारी ने उनका नाम मतदाता सूची से खारिज कर दिया।
भारतीय जनता पार्टी ने अध्यक्ष पद का टिकट न मिलने से निराश कार्यकर्ताओं की संभावित बगावत को ध्यान में रखते हुए नाम फाइनल करने में यथासंभव विलम्ब किया। स्थिति यहां तक है कि सोमवार को नामांकन की समय-सीमा समाप्त होने तक पार्टी कर्नलगंज नगर पालिका से अध्यक्ष पद के लिए किसी का नाम तय नहीं कर सकी। गोण्डा नगर पालिका से पार्टी ने माया शुक्ला को प्रत्याशी घोषित किया। यहां टिकट के करीब आधा दर्जन दावेदार थे और सभी को किसी न किसी मजबूत नेता का वरदहस्त प्राप्त था किन्तु संघ के पुराने कार्यकर्ता अरुण कुमार शुक्ल की पत्नी को टिकट देकर पार्टी ने तमाम दिग्गजों को झटका दे दिया। माया शुक्ला ने आज कचहरी पहुंचकर प्रदेश के समाज कल्याण मंत्री रमापति शास्त्री व कई विधायकों की उपस्थिति में नामांकन पत्र भरा। लगातार चार बार नगर पंचायत खरगूपुर के अध्यक्ष रहे राजीव रस्तोगी इस बार गोण्डा नगर पालिका से अध्यक्ष पद के प्रवल दावेदार थे। इसके साथ ही यहां से टिकट न मिलने पर वह खरगूपुर से अपनी पुरानी सीट बरकरार रखना चाहते थे किन्तु पार्टी ने उन्हें दोनों जगहों से निराश किया। इसलिए उन्होंने आज खरगूपुर नगर पंचायत से पार्टी द्वारा घोषित प्रत्याशी के विरुद्ध स्वतंत्र प्रत्याशी के रूप में नामांकन कर दिया।
नवाबगंज नगर पालिका को लेकर पार्टी में जबरदस्त टकराव की स्थिति है। दरअसल, नवाबगंज भारतीय जनता पार्टी के सांसद बृजभूषण शरण सिंह और उत्तर प्रदेश में वरिष्ठ कैबिनेट मंत्री रमापति शास्त्री का गृह क्षेत्र है। दोनों की प्रतिष्ठा इस सीट से जुड़ी है किन्तु यहां भी पार्टी दोनों नेताओं की सहमति से प्रत्याशी घोषित नहीं कर सकी। परिणाम यह हुआ कि पार्टी के फैसले से नाराज कैसरगंज के सांसद व भारतीय कुश्ती संघ के अध्यक्ष बृजभूषण शरण सिंह ने पार्टी प्रत्याशी के खिलाफ अपना प्रत्याशी मैदान में उतार दिया है। उन्होंने अपने प्रत्याशी के समर्थन में चुनावी सभा करने का भी ऐलान कर दिया है। भाजपा ने यहां से निवर्तमान अध्यक्ष अंजू सिंह को उम्मीदवार घोषित किया है। वह इससे पूर्व सपा और बसपा शासन काल में भी इन दलों के अच्छे तालमेल से अध्यक्ष रह चुकी हैं। उन्हें टिकट दिलाने में रमापति शास्त्री की भूमिका मानी जा रही है। इससे नाराज सांसद ने अपने एक करीबी डाक्टर सत्येंद्र बहादुर सिंह को मैदान में उतार दिया है। उन्होंने अपने प्रत्याशी की चुनावी कमान भी अपने छोटे पुत्र करन भूषण शरण सिंह को सौंप दी है। समय-समय पर पार्टी नेतृत्व को चुनौती देने वाले सांसद के इस कदम से उनके और पार्टी के बीच तल्खी और बढ़ गई है। इस बीच रविवार को गोण्डा नगर पालिका अध्यक्ष पद के लिए बार-बार नामों में परिवर्तन करने वाली समाजवादी पार्टी को उस समय खास निराश होना पड़ा, जब देर शाम पार्टी द्वारा घोषित उम्मीदवार का नाम ही निर्वाचक नामावली से खारिज कर दिया गया। दरअसल, सपा ने राजनीतिक समीकरणों को साधने के उद्देश्य से पहले कायस्थ समाज पर दांव लगाया और पार्टी के पुराने कार्यकर्ता जेपी श्रीवास्तव की मां का नाम आगे बढ़ाया। इसके बाद व्यापारी समाज को लुभाने के उद्देश्य से मनीष अग्रवाल की पत्नी का नाम घोषित किया। थोड़ी देर बाद पूर्व विधायक दीप नारायन पाण्डेय के सुपुत्र विवेक पाण्डेय की पत्नी का नाम चलने लगा। देर शाम मुलायम सिंह यादव के करीबी समझे जाने वाले पूर्व पालिकाध्यक्ष कमरुद्दीन एडवोकेट की पत्नी सकीना बेगम का नाम घोषित किया। उनके खेमे में जश्न शुरू ही हुआ था कि उच्च न्यायालय के निर्देशों के क्रम में सुनवाई करते हुए सहायक निर्वाचक रजिस्ट्रीकरण अधिकारी/उप जिलाधिकारी सदर अर्चना वर्मा ने सकीना बेगम का नाम मतदाता सूची से खारिज कर दिया।
दरअसल, नगर के मोहल्ला इमामबाड़ा निवासी मोहम्मद जकी ने उच्च न्यायालय में एक याचिका दायर करके नगर पालिका के पूर्व अध्यक्ष कमरुद्दीन की पत्नी सकीना बेगम का नाम दो स्थानों ग्राम पंचायत गिर्द गोंडा ग्रामीण व नगर पालिका परिषद के नगरीय क्षेत्र के मतदाता सूची में दर्ज होने का आरोप लगाते हुए एक स्थान से विलोपित किये जाने की मांग की थी। उन्होंने न्यायालय को बताया था कि सकीना बेगम पत्नी कमरुद्दीन का नाम नगर पालिका परिषद के निर्वाचक नामावली 2017 के अन्तिम प्रकाशन में वार्ड नम्बर 20, जिगरगंज के भाग सख्या 92 के क्रमांक 435 पर दर्ज है। इसके अलावा ग्राम पंचायत गिर्द गोंडा के भाग संख्या 73, वार्ड 11 के क्रमांक 7272 पर भी दर्ज है। इतना ही नहीं, क्षेत्र पंचायत निर्वाचन 2016 के झंझरी क्षेत्र पंचायत के वार्ड 89 फिरोजपुर के क्रमांक 69 पर भी सकीना का नाम दर्ज है। न्यायालय ने प्रकरण की सुनवाई करते हुए जिलाधिकारी को नामांकन प्रक्रिया से पूर्व निस्तारण का आदेश दिया था। जिलाधिकारी के निर्देश पर प्रकरण की सुनवाई करते हुए सहायक निर्वाचक रजिस्ट्रीकरण अधिकारी/उप जिलाधिकारी सदर अर्चना वर्मा ने रविवार की देर शाम उनका नाम नगर पालिका के निर्वाचक नामावली से हटा दिया। इससे उनके चुनाव लड़ने की संभावना क्षीण हो गई है। अब उन्होंने अपनी विवाहिता पुत्री उज्मा रसीद को नामांकन कराया है। पार्टी की ओर से वह उज्मा प्रत्याशी होंगी। साभार जनसत्ता
चुनाव से पहले सहयोगी दलों ने बढ़ाई बीजेपी की मुश्किलें
उत्तर प्रदेश में निकाय चुनाव से ठीक पहले बीजेपी के दो प्रमुख सहयोगी दलों ने उसकी मुश्किलें बढ़ा दी हैं। राज्य में पूर्ण बहुमत की सरकार बनाने के बाद निकाय चुनाव का सामना कर रही बीजेपी पर जीत का भारी दबाव है। लेकिन केंद्रीय मंत्री अनुप्रिया पटेल के अपना दल और उत्तर प्रदेश सरकार में कैबिनेट मंत्री ओमप्रकाश राजभर की पार्टी ने कड़ा रुख अख्तियार कर बीजेपी की मुश्किलें बढ़ा दी हैं। सुहैलदेव भारतीय समाज पार्टी के अध्यक्ष ओमप्रकाश राजभर ने निकाय चुनाव को देखते हुए दबाव की राजनीति शुरू कर दी है। इसी के तहत राजभर की पार्टी 15वें स्थापना दिवस पर पांच नवंबर को लखनऊ के रमाबाई अंबेडकर मैदान में महारैली कर अपनी शक्ति का एहसास कराने के प्रयास में जुट गई, लेकिन चुनाव आयोग ने उनकी उम्मीदों पर पानी फेर दिया। आयोग के निर्देश के बाद अंबेडकर मैदान में होने वाली महारैली स्थगित हो गई है। बीजेपी और ओमप्रकाश राजभर के बीच विवाद की शुरुआत गाजीपुर के जिलाधिकारी के स्थानांतरण को लेकर हुई थी। तब राजभर ने मुख्यमंत्री योगी से मुलाकात कर जिलाधिकारी संजय खत्री की शिकायत की थी। उन्होंने कहा था कि उनके कार्यकर्ताओं की नहीं सुनी जा रही है। यदि ऐसा ही रहा तो उन्हें कड़ा फैसला लेने के लिए मजबूर होना पड़ेगा। हालांकि, बाद में जिलाधिकारी का वहां से स्थानांतरण कर दिया गया था। उस विवाद के बाद अब ओमप्रकाश राजभर ने निकाय चुनाव में सीटों के बंटवारे को लेकर बीजेपी पर दबाव बनाना शुरू कर दिया है। राजभर ने कहा, "बीजेपी प्रभारी सुनील बंसल से मेरी तीन दिन पहले बात हुई है। अगर बात बन जाती है तो बहुत अच्छा। वरना, हमारी पार्टी अकेले चुनाव लड़ेगी।" इधर, राजभर का मामला अभी थमा भी नहीं था कि बीजेपी के एक अन्य सहयोगी अपना दल (सोनेलाल) ने निकाय चुनाव नहीं लड़ने का फैसला किया है। लेकिन दिलचस्प बात यह है कि अपना दल बीजेपी के उम्मीदवारों का समर्थन भी नहीं करेगा। निकाय चुनाव में अलग राह पकड़ने के बाद भी पार्टी ने कहा है कि केंद्र और राज्य सरकार में गठबंधन बना रहेगा। बीजेपी सूत्रों के अनुसार, दोनों सहयोगी दलों के साथ निकाय चुनाव में सीटों को लेकर मामला काफी जटिल हो गया था। केंद्रीय मंत्री अनुप्रिया पटेल से भी पार्टी की कई दौर की बातचीत हुई, लेकिन इसका हल नहीं निकल पाया। इसके बाद अनुप्रिया पटेल की पार्टी ने खुद को निकाय चुनाव से अलग करने का फैसला कर लिया। अपना दल (सोनेलाल) के प्रवक्ता वृजेन्द्र सिंह ने बताया, "पार्टी ने स्थानीय निकाय चुनाव नहीं लड़ने का फैसला किया है। इस चुनाव में पार्टी किसी को भी समर्थन नहीं करेगी। पार्टी के नेता और कार्यकर्ता अपने विवेक से मतदान कर सकते हैं। पार्टी के इस फैसले से केंद्र और राज्य सरकार में गठबंधन पर कोई असर नहीं पड़ेगा।" निकाय चुनाव में सहयोगी दलों के अलग रुख को लेकर राज्य सरकार में कैबिनेट मंत्री और सरकार के प्रवक्ता सिद्घार्थनाथ सिंह ने कहा कि यह कोई बड़ा मुद्दा नहीं है और पार्टी के वरिष्ठ लोग एक साथ बैठकर इसका हल निकाल लेंगे। साभार नवजीवन
राजीव रंजन तिवारी (संपर्कः 8922002003)
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