नई दिल्ली (शरद गुप्ता, वरिष्ठ पत्रकार, बीबीसी हिंदी के लिए)। उत्तर प्रदेश सरकार दशहरे के जश्न में डूबी है. मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ पिछले तीन दिनों से गोरखपुर की गोरखनाथ पीठ में डेरा डाले हैं. आख़िर वे इस पीठ के मुख्य महंत भी तो हैं. वह मंदिर में रोज पहले की भांति हवन और पूजा कर रहे हैं. गुरुवार को उन्होंने सप्तमी पूजन किया. शुक्रवार को महागौरी का. कन्या पूजन और बटुक पूजन के बाद वे मंदिर स्थित अपने कक्ष में ध्यान लगाने चले गए. इसके बाद वे शनिवार को दशहरे के जुलूस में शामिल हुए और मानसरोवर पहुंच कर राम, सीता, शिव और हनुमान का पूजन भी किया. वहां पर वे संतों और लोगों को भोजन कराने के बाद ही अपना नौ दिन का व्रत तोड़ेंगे. उनका कहना है नवरात्रि के दौरान शास्त्रों में बताए तरीके से महाकाली, महालक्ष्मी और महासरस्वती का पूजन करने से मनुष्य को हर तरीके की शक्ति और सिद्धि प्राप्त होती है.
साथ ही सरकार ने दीवाली की भव्य आयोजन की तैयारियां अभी से शुरू कर दी हैं. मुख्यमंत्री सहित आधे से ज़्यादा कैबिनेट 18 अक्टूबर को भगवान राम के वनवास से अयोध्या वापस लौटने के प्रकरण को अत्यंत धूमधाम से मनाने जा रही है. इस मौके पर अयोध्या को दुल्हन की तरह सजाया जाएगा. रामलीला में राम, सीता और लक्ष्मण की भूमिका निभा रहे कलाकारों का वैसे ही स्वागत किया जाएगा जैसे राम के अयोध्या वापस लौटने पर रामायण में वर्णित है. शुक्रवार को योगी ने स्पष्ट संकेत दिए कि राम जन्मभूमि मंदिर का मामला भले ही अदालत में लंबित हो लेकिन वह एक भव्य राम मंदिर के निर्माण के लिए कटिबद्ध हैं. वहीं योगी सरकार में ऊर्जा मंत्री सिद्धार्थ नाथ सिंह ने इलाहाबाद में दशहरे के मौके पर कहा कि 2019 से पहले अयोध्या में राम जन्मभूमि मंदिर के निर्माण का कार्य ज़रूर शुरू हो जाएगा. 2019 में लोकसभा चुनाव भी होंगे. क्या यह भारतीय जनता पार्टी के प्रखर हिंदुत्व एजेंडे की ओर वापस लौटने के संकेत हैं या फिर आदित्यनाथ यह सब कर अपने पिछले छह महीने के कार्यकाल की नाकामियों पर पर्दा डालने की कोशिश कर रहे हैं? पिछले छह महीनों में योगी ने न तो कोई बड़ा प्रोजेक्ट शुरू किया है, न ही कोई नई योजना लाने की चर्चा. इस दौरान योगी का जोर सिर्फ़ और सिर्फ़ अलग-अलग तरह की रोक लगाने पर रहा है. कभी गौवध पर रोक तो कभी एंटी रोमियो स्क्वायड बनाकर छेड़छाड़ पर रोक तो कभी अवैध खनन पर रोक. ऐसा नहीं की ये प्रतिबंध प्रदेश के हितों के ख़िलाफ़ है लेकिन इतना ज़रूर है कि इन प्रतिबंधों से कट्टर हिंदूवादी संगठनों को बढ़ावा मिला है. गोवध पर रोक से दलितों और अल्पसंख्यकों पर शक के बिना पर कई हमले किए गए. कई जानें तक चली गई.
एंटी रोमियो स्क्वायड की गतिविधियों में सरकार और पुलिस से कहीं ज़्यादा भूमिका हिंदूवादी संगठनों की युवा इकाइयों की रही है. वहीं अवैध खनन पर रोक लगाने से प्रदेश में भवन निर्माण की प्रक्रिया लगभग थम गई है. ऐसे में जबकि जीडीपी नीचे जा रही हो, प्रदेश में आर्थिक और व्यापारिक गतिविधियां लगभग ठप सी पड़ गई हैं. चुनाव के दौरान किए वायदों में से किसानों की कर्ज़ माफ़ी के फ़ैसले के अलावा किसी भी योजना पर अमल शुरू नहीं हुआ है. और इस फ़ैसले के लिए भी केंद्र सरकार ने किसी भी तरीके की आर्थिक सहायता देने से इंकार कर दिया है. हालांकि यह बात अलग है यह वायदा चुनाव प्रचार के दौरान खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने किया था. ऐसे में ज़ाहिर है लोग योगी के छह माह के कार्यकाल की तुलना उनके पूर्ववर्ती मुख्यमंत्री अखिलेश यादव के कार्यकाल से कर रहे हैं जिन्होंने आगरा लखनऊ एक्सप्रेस वे लखनऊ में मेट्रो और गोमती रिवर फ्रंट जैसे बड़े प्रोजेक्ट रिकॉर्ड समय में पूरे किए. लखनऊ में एक बड़ी लॉ फर्म चला रहे अनंत प्रकाश तिवारी कहते हैं योगी को उनकी पार्टी के लोग ही काम नहीं करने दे रहे. उन्हें न तो मनपसंद मंत्री चुनने की आज़ादी है और न ही मनपसंद अधिकारी. शुरुआती कुछ महीने तक उन्हें उसी मुख्य सचिव के साथ काम करना पड़ा जो अखिलेश यादव के जमाने में भी इसी पद पर था. उस पर रिवर फ्रंट जैसे प्रोजेक्ट पर अनुमानित लागत से कई हज़ार गुना ज़्यादा पैसे ख़र्च करने का आरोप खुद योगी ने लगाया था. जो मुख्य सचिव होने के साथ-साथ वित्त सचिव का भी प्रभार संभाले था. इस तरह योगी आदित्यनाथ यदि इसी वजह से मीडिया में थे तो वह या तो गौशाला में जाकर गायों को चारा खिलाने या फिर अपने ही चुनाव क्षेत्र गोरखपुर में सैकड़ों बच्चों की जापानी इंसेफेलाइटिस के इलाज के दौरान हुई ऑक्सीजन की कमी से हुई मौतों के कारण.
उन्होंने मेडिकल कॉलेज के डॉक्टरों से लेकर ऑक्सीजन सप्लाई करने वाली तक सभी की गिरफ़्तारी कराकर कड़ा रुख अपनाने के संकेत दिए लेकिन घटना पर राष्ट्रीय बदनामी हो जाने के बाद. इसी तरह बनारस हिंदू विश्वविद्यालय में छात्राओं के साथ हो रही छेड़छाड़ का मामला भी राष्ट्रीय चर्चा का विषय बन गया. वह भी ऐसे समय जब प्रधानमंत्री का बनारस दौरा चल रहा था. इसके अगले दिन हुई भाजपा की राष्ट्रीय कार्यकारिणी के दौरान केंद्रीय परिवहन मंत्री नितिन गडकरी के ज़रिए मीडिया को यह बताया गया कि मोदी ही नहीं पार्टी अध्यक्ष अमित शाह ने भी इस मामले पर योगी आदित्यनाथ से जवाब तलब किया है. योगी के क़रीबी माने जाने वाले एक भाजपा नेता का सवाल था कि जब बनारस हिंदू विश्वविद्यालय केंद्र के अधीन है, उसका सारा पैसा केंद्र से आता है, कुलपति की नियुक्ति केंद्र करता है, प्रदेश सरकार का उस पर किसी तरीके का कोई अधिकार नहीं है, तो ऐसे में योगी से जवाब तलब करना बेमानी था.
नरेन्द्र मोदी की पहली पसंद नहीं थे योगी आदित्यनाथ
क्या यह जानबूझकर जनता के बीच योगी आदित्यनाथ को एक नाकारा मुख्यमंत्री साबित करने का प्रयास है? योगी आदित्यनाथ न तो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की पसंद थे और ना ही अमित शाह की. उन्होंने तो मिलकर इस पद के लिए मनोज सिन्हा का नाम फ़ाइनल किया था. उन्हें तो अंतिम क्षणों में संघ के दबाव में और अधिकतर विधायकों की पसंद के रूप में योगी आदित्यनाथ को बतौर मुख्यमंत्री स्वीकार करना पड़ा था. हमेशा की पहली पसंद उस समय प्रदेश भाजपा अध्यक्ष रहे केशव प्रसाद मौर्य थे जिन्हें अंततः उन्होंने उप मुख्यमंत्री बनवाया. उनकी जगह हाल ही में महेंद्र पांडे को प्रदेश अध्यक्ष बनाया गया है. इस दौरान अमित शाह ने प्रदेश के अपने दौरों के दौरान बतौर सुपर मुख्यमंत्री, ना सिर्फ सरकार के कामकाज की समीक्षा की है बल्कि कई अवसरों पर सार्वजनिक रूप से योगी के मुकाबले मौर्य को तरजीह देकर पार्टी कार्यकर्ताओं को स्पष्ट संकेत भी दिए हैं. ऐसे में योगी को ख़ुद को सिद्ध करने के लिए कड़ी मेहनत की ज़रूरत है. और वे कर भी रहे हैं. उनके करीबी भाजपा नेताओं के मुताबिक वे रोजाना 19 से 20 घंटे काम कर रहे हैं. लेकिन न तो मंत्रियों और न ही अधिकारियों का सहयोग मिल रहा है. यही वजह है कि वह लोगों का ध्यान दशहरा, दीवाली, राम पूजन, राम जन्मभूमि मंदिर जैसे विषयों की ओर आकर्षित कर रहे हैं. राम मंदिर आंदोलन की शुरुआत उनके गुरु अवैद्यनाथ और उनके गुरु महंत दिग्विजयनाथ ने की थी. स्पष्ट है कि या तो 2019 से पहले योगी आदित्यनाथ को गद्दी छोड़नी पड़ेगी या फिर राम जन्मभूमि मंदिर जैसे विषयों पर ही अगला चुनाव लड़ा जाएगा.
मुस्लिम छात्र से बोलीं डीपीएस टीचर, 'योगी सरकार है, बच कर रहो'
कानपुर से बीबीसी हिंदी के लिए रोहित घोष लिखते हैं कि कानपुर के दिल्ली पब्लिक स्कूल में 11वीं क्लास के आत्महत्या की कोशिश करने वाले छात्र के परिवार ने कुछ चौंकाने वाले दावे किए हैं. छात्र पर स्कूल में बंदूक ले जाने का आरोप था, जिससे दुखी होकर छात्र ने नींद की गोलियां खाकर फ़िनाइल पिया और कलाई की नस काट ली. अस्पताल में इलाज के बाद छात्र फतेहपुर अपने घर लौट गया है. छात्र की मां नज़राना बेग़म ने बीबीसी से फोन पर बताया, ''मेरे बेटे ने दो महीने पहले ही कानपुर के डीपीएस में दाख़िला लिया था. वो अपनी मौसी के यहां रहते हुए पढ़ रहा था. स्कूल के कुछ टीचर्स ने मेरे बेटे को बहुत बुरी तरह प्रताड़ित किया. उन्होंने उसके बैग की तलाशी और ये तक कह दिया कि वो बंदूक लेकर स्कूल आया है.'' छात्र की मौसेरी बहन आयतन भी डीपीएस कल्याणपुर में पढ़ती हैं. आयतन ने बताया, ''मेरे भाई को रोज स्कूल में परेशान किया जाता था. बैग में बंदूक के शक़ में उसकी तलाशी ली गई. उसने पूछा कि क्या मैं कोई आतंकवादी हूं. जवाब में टीचर ने कहा- रजिस्टर खो गया है. वो टीचर दसवीं क्लास को पढ़ाती हैं और मेरा भाई 11वीं में हैं. वो चोरी का आरोप कैसे लगा सकती हैं.'' आयतन ने आरोप लगाया, ''स्कूल के टीचर्स मेरे भाई को अक्सर ताना मारते थे कि अब उत्तर प्रदेश में योगी की सरकार है और वो बच के रहे.'' इस घटना के बाद छात्र के परिवार ने कानपुर के स्वरूपनगर थाने में शिकायत दर्ज करवाई है. स्वरूपनगर इलाक़े में तैनात डीएसपी मनोज गुप्ता ने बीबीसी को बताया, "हमारे संज्ञान में आया है कि दिल्ली पब्लिक स्कूल के एक छात्र ने ख़ुदकुशी करने की कोशिश की है." साभार बीबीसी
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