नई दिल्ली (शकील अख़्तर, बीबीसी उर्दू संवाददाता)। माह जुलाई में यह स्टोरी बीबीसी हिन्दी में प्रकाशित हुई थी। आबादी के हिसाब से भारत के सबसे बड़े राज्य उत्तर प्रदेश में पिछले दिनों राज्य का वार्षिक बजट पेश किया गया. इस बजट में राज्य के धार्मिक और सांस्कृतिक नगरों को बढ़ावा देने के लिए 'हमारी सांस्कृतिक विरासत' के नाम से एक अलग कोष आवंटित किया गया है. लेकिन राज्य की सबसे महत्वपूर्ण सांस्कृतिक और पर्यटन इमारत ताजमहल को इसमें शामिल नहीं किया गया. आगरा का ताजमहल भारत के मुगल बादशाह शाहजहां ने बनवाया था. मुख्यमंत्री आदित्यनाथ ताजमहल को 'गैर भारतीय' मानते हैं और उनके विचार में यह इमारत भारत की अतीत की संस्कृति को प्रतिबिंबित नहीं करती क्योंकि इसे 'आक्रमणकारियों' ने बनवाया था. इस बजट में अयोध्या, वाराणसी, मथुरा और चित्रकूट जैसे हिंदू धर्म के महत्वपूर्ण केन्द्रों के विकास के लिए कई योजनाओं की घोषणा की गई है. ताजमहल और कुछ अन्य इमारतों और मकबरों को सांस्कृतिक विरासत परियोजना से अलग रखा गया है. आलोचकों ने योगी सरकार के इस फैसले को हिंदुत्व के एजेंडे से प्रभावित निर्णय करार दिया है और उनकी आलोचना की है.
सरकार ने अयोध्या, वाराणसी और मथुरा में सांस्कृतिक केन्द्रों के निर्माण और शहर के ढांचे में सुधार के लिए 2000 हज़ार करोड़ रूपये से अधिक की राशि स्वीकृत की है. कुछ इतिहासकारों का कहना है कि उत्तर प्रदेश में सांस्कृतिक विरासत को केवल हिन्दू धर्म से पहचान की कोशिश राज्य की साझी विरासत की वास्तविकता से बिल्कुल उलट है. उनका कहना है कि सरकार को सभी धर्मों की मिलीजुली संस्कृति को बढ़ावा देना चाहिए. कई विशेषज्ञों का मानना है कि ताजमहल को नज़रअंदाज़ करने से पर्यटन से होने वाली आय को नुकसान पहुंचेगा. आगरा में तीन विश्व विरासत ऐतिहासिक इमारतें हैं. उनकी देखभाल और पर्यटन विकास के लिए उपयुक्त बजट की ज़रूरत है. इसके विपरीत अगर इसे नज़रअंदाज किया गया तो इससे पर्यटन गतिविधियों को गंभीर नुकसान पहुंचेगा. उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री आदित्यनाथ अतीत में कई बार 'प्यार की इस महान कृति' से अपनी घृणा व्यक्त कर चुके हैं. अभी हाल में उन्होंने कहा था कि अब जब किसी देश के प्रमुख भारत के दौरे पर आते हैं तो उन्हें ताजमहल का नमूना उपहार नहीं दिया जाता क्योंकि वो गैर भारतीय है और देश को प्रतिबिंबित नहीं करता.
योगी आदित्यनाथ ने कहा कि अब महत्वपूर्ण हस्तियों को हिन्दुओं की धार्मिक पुस्तक गीता भेंट दी जाती है. आदित्यनाथ एक हिंदू साधु हैं और हिंदुत्व आंदोलन से बहुत समय से जुड़े हुए हैं. वे पांच बार संसद के लिए निर्वाचित हो चुके हैं और राज्य का मुख्यमंत्री बनने से पहले वह मुसलमानों के ख़िलाफ़ अपने नफ़रती बयानों के लिए मशहूर रहे. योगी हिंदुत्व के इस बुनियादी दर्शन में विश्वास रखते हैं कि भारत केवल अंग्रेजों के जमाने में ही गुलाम नहीं था बल्कि हिंदू यहां एक हज़ार साल पहले यानी मुस्लिम राजाओं के शासन के समय से गुलाम हैं. वह अफगानिस्तान, ईरान और मध्य एशिया से आए इन राजाओं को हमलावर और लुटेरा बताते हैं और सदियों तक इस देश में रहने और यहां की संस्कृति और मिट्टी में रच बस जाने के बावजूद उन्हें विदेशी हमलावर ही मानते हैं. ताजमहल के निर्माता शाहजहां के पूर्वज उनसे सौ बरस पहले भारत आए थे. इस सौ बरस में उनकी कई पीढ़ियां भारत में परवान चढ़ीं. शाहजहां एक भारतीय राजा था. वह अपनी तैमूर और मंगोलियाई पृष्ठभूमि के साथ भारत की पहचान से भी पूरी तरह जुड़ा था. आधुनिक भारत को अंग्रेजों ने तैयार किया और उसे एक आधुनिक राष्ट्र राज्य की शक्ल दी.
हिंदुत्व के अनुयायियों की अवधारणा है कि हिन्दू, बौद्ध, जैन और सिख धर्मों में विश्वास रखने वाले ही मूल भारतीय हैं. मुस्लिम या ईसाई चाहे वह भारत में ही पैदा हुए हैं, वे अपने धार्मिक विश्वास की तरह मूल भारतीय नहीं हैं. इस सिद्धांत को सही साबित करने के लिए हिंदुत्व के पैरोकार इस थ्योरी को भी स्वीकार करने के लिए तैयार नहीं हैं कि आर्य नस्ल के लोग विभिन्न समूहों में चार हजार साल पहले मध्य एशिया से होते हुए भारत आए थे. सभी मुस्लिम राजाओं को हमलावर और मुसलमानों को गैर भारतीय करार देने के लिए वे इस तर्क पर जोर देते हैं कि आर्य यहीं भारत के ही थे. कई विश्लेषकों का मानना है कि 'हमलावर थ्योरी' हिंदू राष्ट्रवाद का एक बहुत बड़ा हथियार है. यह मुसलमानों और ईसाइयों के ख़िलाफ़ आम हिंदुओं को एकजुट करने में काफ़ी मददगार है. राष्ट्रवाद की नई लहर में मुगल बादशाह और उनकी यादें भी नफ़रतों की चपेट में हैं. दिल्ली में औरंगजेब नाम की सड़क का नाम बदल दिया गया है.
पाठ्य पुस्तकों में राजा अकबर के नाम के साथ 'महान' लिखा जाता था, वह हटा लिया गया है. अकबर से युद्ध लड़ने वाले राजपूत राजा राणा प्रताप को अब 'महान' कहा जाता है. उत्तर प्रदेश सरकार अब राज्य के एक शहर मुगलसराय का नाम बदलने वाली है क्योंकि इसमें मुगल नाम लगा हुआ है. ताजमहल भी एक समय से नफ़रतों की चपेट में है. चूंकि यह विश्व धरोहर में शुमार है, इसलिए इससे कारण विवाद ज़्यादा जोर नहीं पकड़ सका. लेकिन अब केंद्र और राज्य दोनों जगह हिंदुत्व समर्थक सरकारें सत्ता में हैं, इसलिए राष्ट्रवाद की मौजूदा लहर में वह दिन दूर नहीं जब आगामी चर्चा मुस्लिम शासकों और उनके स्मारकों पर हो. साभार बीबीसी
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