नई दिल्ली। गुड्स एवं सर्विस टैक्स यानी जीएसटी लागू होने के तीन महीने बाद वित्त मंत्री अरुण जेटली ने जीएसटी स्लैब में कटौती के संकेत दिए हैं. जेटली ने कहा है कि राजस्व बढ़ने पर जीएसटी रेट कम किए जा सकते हैं. देश में जीएसटी एक जुलाई से लागू हुआ है और फ़िलहाल 5, 12, 18 और 28 फ़ीसद टैक्स के स्लैब हैं. तीन महीने के बाद सरकार की ओर से स्लैब में कटौती के संकेत आना क्या ज़ाहिर करता है? क्या ज़ोरशोर से जीएसटी लागू करने वाली सरकार नतीजों को लेकर बैकफुट पर है? बीबीसी संवाददाता आदर्श राठौर ने आर्थिक मामलों के वरिष्ठ पत्रकार प्रांजल शर्मा से यही सवाल किया. पढ़िए उनकी राय:
अगर आप देश में टैक्स का पूरा ढांचा देखें तो जीएसटी के आने से दो बड़े बुनियादी बदलाव हुए हैं. एक तो ये कि लाखों कारोबारी, जो पहले टैक्स नहीं देते थे, वो टैक्स के दायरे में आ गए हैं. दूसरा बदलाव ये है कि टैक्स भरने का जो तरीका था, वो बुनियादी तौर पर पूरी तरह से बदल गया है. इन दोनों बदलावों के कारण लाखों लोगों को काफ़ी दिक़्क़त हो रही है. इसकी वजह से उन्हें ऐसे तरीक़े अपनाने पड़ रहे हैं जो उन्होंने अपनी पूरे कारोबारी जीवन में नहीं अपनाए थे. ये समझना भी ज़रूरी है कि जीएसटी जिस रूप में आना चाहिए था, वैसे लागू नहीं हो पाया. इसकी वजह ये है कि अलग-अलग राज्यों की ओर से दबाव थे. ऐसे में अलग-अलग स्लैब रेट बने और पेचीदगियां बढ़ती चली गईं. अब जीएसटी के दायरे में आने वाले कारोबारियों को दर्द महसूस हो रहा है. उनकी ओर से दिक़्क़तों की शिकायत बढ़ती जा रही है. मुझे लगता है कि वित्त मंत्री का ये बयान कारोबारियों को ये बताने के लिए आया है कि ये बदलाव तो ज़रूरी है लेकिन हम आपका दर्द भी समझते हैं और उसे कम करना चाहते हैं. हालिया वर्षों में अर्थनीति में कई बदलाव हुए हैं, उन सबका असर एक साथ दिखने लगा है. बीते कुछ सालों में बैंकों ने ऐसी परियोजनाओं को क़र्ज़ दिया था, जिनका काम आगे नहीं बढ़ा. इनमें से कुछ ऐसे लोगों को क़र्ज़ दिया गया जिनकी हैसियत नहीं थी कि वो बड़े-बड़े प्रोजेक्ट को पूरा कर सकें.
वहीं नोटबंदी के कारण कारोबारियों ने खर्च कम कर दिया है. बीते कुछ महीनों से इनका असर एक साथ नज़र आ रहा है. इसके प्रभाव से सरकार चिंतित है. ऐसा नहीं है कि इस प्रभाव की कल्पना न की गई हो. ऐसी आशंका जाहिर की गई थी. सरकार को इसकी जानकारी थी. अब जब इसका खामियाजा सब भुगत रहे हैं तो सरकार राहत देने की बात कर रही है. मेरा मानना है कि ये दौर छोटे वक्त के लिए है. अर्थनीति के जानकारों की भी राय है कि अगले कुछ महीनों में ये स्थिति बदल जाएगी. साभार बीबीसी
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