भाषा सिंह
2007 में बीजेपी से बाहर आए और पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के करीबी रहे गुजरात के पूर्व मुख्यमंत्री सुरेश मेहता का मानना है कि गुजरात में बीजेपी की जमीन खिसक रही है। गुजरात के पूर्व मुख्यमंत्री और एक जमाने में बीजेपी के बौद्धिक चेहरे के तौर पर पहचाने जाने वाले सुरेश मेहता का मानना है कि गुजरात के सियासी हालात बीजेपी के अनुकूल नहीं है। इसी वजह से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह को आगामी विधानसभाचुनावों के लिए अपनी सारी ताकत झोंकनी पड़ रही है। 2007 में बीजेपी से बाहर आए सुरेश मेहता पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के करीबी रहे हैं और गुजरात में बीजेपी के भीतर नेतृत्व की लड़ाई में संकटमोचक की भूमिका निभाते रहे हैं। हाल ही में वेबसाइट ‘जनचौक’ को दिए साक्षात्कार में उन्होंने कहा कि 2002 में गुजरात के गोधरा में आपराधिक दिमाग काम कर रहा था। गुजरात के वर्तमान परिदृश्य, गोधरा और उसके बाद के गुजरात के बारे में उन्होंने नवजीवन से बातचीत की। पेश हैं उसके अंश:
सवालः गुजरात विधानसभा चुनावों का तैयारी चल रही है। इस बार बीजेपी की स्थिति को लेकर आपका क्या आंकलन है?
जवाबः लंबे अंतराल के बाद गुजरात में बीजेपी रक्षात्मक है। यह बात उसके पूरे प्रचार से जाहिर है। इसका अनुमान कई तथ्यों से लगा सकते हैं। मसलन, चुनाव आयोग को गुजरात चुनाव की तारीख घोषित करने की हिम्मत नहीं हुई। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह ने अपनी पूरी ताकत झोंक दी है। नरेंद्र मोदी दोबारा उग्र भाषा पर उतर आए हैं। जीएसटी के तहत आनन-फानन में गुजरात के मद्देनजर घोषणा की जा रही है।
सवालः क्या गुजरात में बीजेपी की जमीन भी खिसक रही है?
जवाबः लोगों की मानसिकता में बदलाव आया है। अब कितना आया है और उसका चुनाव में कितना असर पड़ेगा, यह तो मैं नहीं बता सकता, लेकिन लोग नाखुश हैं। इस बार बड़े पैमाने पर और तकरीबन सभी वर्ग और तबकों में नाराजगी है। व्यापारियों से लेकर किसानों-ग्रामीणों और शहरी मध्यवर्ग भी नाराज है। यह नाराजगी केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार और गुजरात की बीजेपी सरकार दोनों से है। यही वजह है कि नरेंद्र मोदी और अमित शाह को इतने बड़े पैमाने पर प्रचार में उतरना पड़ रहा है।
सवालः गोधरा कांड पर अभी फैसला आया जिसमें फांसी की सजा को आजीवन कारावास में तब्दील कर दिया गया है, इसका भी असर क्या चुनाव में पड़ेगा?
जवाबः गोधरा कांड हिंदू ध्रुवीकरण करने का बीजेपी के हाथ में एक हथियार है। बीजेपी को लगता है कि इसके जरिए वह अपनी सारी कारगुजारियों पर पर्दा डाल सकती है।
सवालः पने हाल ही में गोधरा कांड के बारे में कई संदेह व्यक्त किए हैं, उसके बारे में कुछ बताएं?
जवाबः संदेह तो मैं पहले भी जाहिर कर चुका हूं। गुजरात दंगों को लेकर आर के राघवन के नेतृत्व में जो एसआईटी बनी थी, उसके सामने भी मैंने बयान दिया था। यह सब गोधरा और उसके बाद की हिंसा पर तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा दिए भाषणों से जाहिर है। बाकी यूसी बनर्जी और जस्टिस कृष्णा आयोग की रिपोर्ट हमारे सामने हैं। सच पर परदा नहीं पड़ना चाहिए।
सवालः वह कौन सी बात है जो गोधरा कांड को लेकर संदेह पैदा करती हैं?
जवाबः गोधरा कांड के बाद स्थानीय प्रशासन ने मीडिया से कहा कि यह सांप्रदायिक घटना है, लेकिन उसके बाद तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी ने गोधरा में जले हुए कोच के अंदर जाकर मीडिया को कहा कि यह सुनियोजित आतंकवादी हमला था। यह जानकारी उन्हें कैसे मिली? क्या वह भड़काना चाहते थे या वाकई कहीं से उन्हें यह जानकारी मिली थी? इसके बाद उन्होंने विधानसभा में यही कहा था। ऐसा उन्होंने क्यों किया, उनका मकसद क्या था? साभार नवजीवन
‘अब नहीं बिकेगा गुजरात मॉडल, 13 साल में 33 गुना बढ़ा कर्ज’
भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) पिछले कुछ समय से अपने ही वरिष्ठ नेताओं और पूर्व नेताओं की आलोचनाओं से घिरी हुई है। अबकी बार प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और बीजेपी पर वार करने वाले कभी गुजरात की बीजेपी सरकार में मुख्यमंत्री रह चुके हैं। सुरेश मेहता अक्टूबर 1995 से सितंबर 1996 तक राज्य के मुख्यमंत्री रहे थे। लेकिन उन्हें लगता है कि आगामी गुजरात चुनाव में बीजेपी की स्थिति डांवाडोल हो सकती है। मेहता के अनुसार गुजरात की बीजेपी सरकार किसान विरोधी और कार्पोरेट हित वाले फैसले लेती रही है। समाचार वेबसाइट द वायर को दिए इंटरव्यू में सुरेश मेहता ने दावा किया कि “गुजरात में इस बार विकास का गुजरात मॉडल नहीं बिकेगा…गुजरात मॉडल केवल शब्दों की बाजीगरी है। गुजरात की जमीनी सच्चाई कुछ और ही कहानी बयाँ करती है।” नरेंद्र मोदी को जब केशुभाई पटेल की जगह गुजरात का मुख्यमंत्री बनाया गया तो मेहता उनके मंत्रिमंडल में थे। सुरेश मेहता ने द वायर से कहा, “साल 2004 में भारत के नियंत्रक और महालेखा परिक्षक (कैग) ने गुजरात की वित्तीय स्थिति की समीक्षा की थी। उस समय राज्य सरकार पर चार से छह हजार करोड़ के बीच कर्ज था। इसलिए कैग ने राज्य को आगाह किया था कि वो कर्ज की दुष्चक्र में न फंसे। लेकिन सरकार ने कैग की बात को नजरअंदाज किया। राज्य सरकार द्वारा पेश किए गये ताजा बज़ट के अनुसार साल 2017 में गुजरात पर कर्ज बढ़कर एक लाख 98 हजार करोड़ हो चुका है। ये मेरे आंकड़े नहीं हैं। ये सरकार के अपने आंकड़े हैं। जिसे फरवरी 2017 में राज्य सरकार ने गुजरात फिस्कल रिस्पांसबिलिटी एक्ट 2005 के तहत जारी बयान में घोषित किया गया।” सुरेश मेहता ने गुजरात की बीजेपी सरकार पर किसानों को मिलने वाली छूट में कमी करने का भी आरोप लगाया। मेहता ने द वायर से कहा, “…उसी दस्तावेज से पता चलता है कि गुजरात सरकार की प्राथमिकता क्या है। कृषि मद में दी जाने वाली छूट (सब्सिडी) जिसका लाभ किसानों को मिलता है वित्त वर्ष 2006-07 से लगातार कम होती जा रही है। वित्त वर्ष 2006-07 में 195 करोड़ रुपये और वित्त वर्ष 2007-08 में 408 करोड़ रुपये की छूट दी गयी थी जो वित्त वर्ष 2016-17 में घटकर 80 करोड़ रुपये रह गयी है।” मेहता ने आरोप लगाया कि गुजरात की बीजेपी सरकार किसानों की छूट कम करने के साथ ही अडानी और अंबानी जैसे कारोबारियों को फायदा पहुँचाने वाली ऊर्जा और पेट्रोकेमिकल सेक्टर में छूट बढ़ाती जा रही है। मेहता ने द वायर से कहा, “…इस (किसानों की) छूट की तुलना ऊर्जा और पेट्रोकेमिकल सेक्टर की दी जा रही छूट से करिए, जो अडानी और अंबानी चलाते हैं। वित्त वर्ष 2006-07 में इन सेक्टर को मिलने वाली 1873 करोड़ की छूट वित्त वर्ष 20-16-17 में बढ़कर 4471 करोड़ रुपये (संशोधित आंकड़े) हो गयी।” मेहता ने दावा किया कि गरीब और आम लोगों को प्रभावित करने वाला खाद्य एवं आपूर्ति का बजट भी बीजेपी सरकार ने 130 करोड़ रुपये से घटाकर 52 करोड़ रुपये कर दिया। मेहता ने आरोप लगाया कि पीएम नरेंद्र मोदी ने घोषणा की थी कि सरदार वल्लभभाई पटेल की मूर्ति स्टैच्यू ऑफ यूनिटी के लिए भी नर्मदा परियोजना फंड से पैसा दिया जा रहा है। मेहता ने दावा किया कि गुजरात के वित्त मंत्री ने विधान सभा में बताया कि नर्मदा प्रोजेक्ट फंड से तीन हजार करोड़ रुपये सरदार पटेल की मूर्ति बनाने के लिए दिए गए हैं। मेहता ने पूछा कि सरकार सिंचाई और किसानों के हित के लिए बनाए गए फंड का पैसा मूर्ति बनाने में कैसे खर्च कर सकती है? मेहता ने नरेंद्र मोदी को घेरते हुए कहा कि उनसे शीर्ष पर आने से पहले बीजेपी अलग तरह की पार्टी थी। मेहता ने द वायर से कहा कि उन्होंने नरेंद्र मोदी से साल 2002 में शुरू हुए मतभेदों के चलते ही साल 2007 बीजेपी छोड़ी थी। साभार जनसत्ता
राजीव रंजन तिवारी (संपर्कः 8922002003)
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