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मोदी का ‘विकास’ नहीं, योगी का ‘हिंदुत्व’ है गुजरात में बीजेपी और संघ का दांव

गुजरात मॉडल को बचाने के लिए बीजेपी ने योगी को उतारा?
विनय कुमार 
नई दिल्ली। ‘हिंदू हृदय सम्राट’ की उपाधि के साथ नरेंद्र मोदी ने 12 साल तक गुजरात पर राज किया और इसी दम पर उन्हें बीजेपी और आरएसएस ने 2014 के लोकसभा चुनाव में प्रधानमंत्री पद का चेहरा बनाया। लेकिन विविधताओं वाले देश में सिर्फ कट्टर हिंदुत्व का प्रयोग इच्छित नतीजे नहीं देता, इसलिए हिंदुत्व में विकास की चाशनी घोलकर मोदी को विकास पुरुष के तौर पर पेश किया गया। लेकिन ‘विकास के पगला जाने’ और आलोचकों के तीखे प्रहारों के बीच बीजेपी और संघ दोनों ही सकते में आ गए हैं। दिक्कत यह है कि विकास के मुद्दे पर न सिर्फ बीजेपी के वरिष्ठ नेता उंगली उठा रहे हैं. बल्कि संघ के भीतर से भी ओलचनात्मक टिप्पणियां आ रही हैं, खासतौर पर बेरोजगारी और किसानों के मुद्दे पर। भले ही लोकसभा के चुनाव अभी 19-20 महीने दूर हों, लेकिन उस प्रयोगशाला में तो इसी साल चुनाव होने हैं, जहां से कट्टर हिंदुत्व से उपजे कथित विकास की सीढ़ियां चढ़कर नरेंद्र मोदी सत्ता के सिंहासन तक पहुंचे हैं। ऐसे में मोदी दिवाली के मौके पर रामायण के बजाए महाभारत के कुछ चरित्रों का उद्धरण करते हैं, तो इसका यही मतलब है कि समझ तो उन्हें भी नहीं आ रहा कि ‘पगलाए विकास’ को काबू में कैसे करें? बीजेपी और संघ के भी हाथ पांव फूले हैं। ऐसे में बीजेपी ने फिर से अपने उसी फार्मूले को अपनाने की कवायद शुरु कर दी है, जो उसके हिसाब से अचूक है। यानी कट्टर हिंदुत्व कार्ड और ध्रुवीकरण। इन दोनों के लिए उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ से बेहतर कौन हो सकता था। इसीलिए संघ की हामी मिलते ही बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह योगी को ऐसे इलाकों में भी शोकेस कर रहे हैं, जहां उसका कोई आधार ही नहीं है। गोरखपुर में ऑक्सीजन की कमी के चलते बच्चों की मौत की खबरें अभी थमी भी नहीं थीं कि योगी आदित्यनाथ केरल में यूपी की स्वास्थ्य सेवाओं का बखान करते नजर आए। पार्टी और इसके अध्यक्ष अमित शाह ने केरल में बीजेपी की ‘जनरक्षा यात्रा’ की अगुवाई योगी से ही करवाई। और जब गुजरात में कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी ने ‘विकास’ की धज्जियां उड़ा दीं, और राहुल की सभाओं में उमड़ी भीड़ ने बीजेपी के हाथ-पांव फुला दिए, तो फिर से कट्टर हिंदुत्व कार्ड का इस्तेमाल करते हुए योगी आदित्यनाथ को ही मैदान में उतारा गया। वैसे योगी आदित्यनाथ उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री के रूप में अपने छह महीने के कार्यकाल में अपने फैसलों को लेकर कई बार विवाद में रह चुके हैं। इन विवादों के बावजूद बीजेपी ने योगी आदित्यनाथ को पहले केरल की जनरक्षा यात्रा में भेजा और अब गुजरात विधान सभा चुनाव के मद्देनजर स्टार प्रचारक बना दिया है। माना जा रहा है कि आने वाले दिनों में हिमाचल प्रदेश में भी बीजेपी की ओर से योगी स्टार प्रचारक रहेंगे। इससे यह सवाल उठता है कि आखिर क्या बीजेपी इन दिनों पीएम मोदी के बजाए ‘योगी मॉडल’ को आगे बढ़ा रही है? योगी आदित्यनाथ उस गुजरात में पार्टी का चेहरा बनकर उतरे हैं, जो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और पार्टी अध्यक्ष अमित शाह का गृह राज्य है। जहां गुजरात विकास मॉडल को जनता के सामने रखकर नरेंद्र मोदी प्रधानमंत्री की कुर्सी तक पहुंचे है। अब तक प्रधानमंत्री मोदी को पार्टी में सबसे बड़ा और इकलौता चेहरा माना जा रहा था। उनके गृह राज्य में योगी आदित्यनाथ को स्टार प्रचारक की भूमिका देकर कहीं उनको प्रधानमंत्री मोदी के विकल्प के रूप में तैयार तो नहीं किया जा रहा है। कहीं ऐसा तो नहीं कि संघ और पार्टी ने भी मान लिया है कि ‘विकास पागल हो गया है’, और मोदी के चेहरे से अब जीत नहीं मिलने वाली। जब केरल में बीजेपी ने ‘जनरक्षा यात्रा’ शुरू की थी तो वहां भी योगी बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह के साथ थे। यानी अगर कहा जाए कि बीजेपी सोचे-समझे और सधे हुए तरीके से राष्ट्रीय स्तर पर उनकी राजनीतिक कार्यशैली को आगे बढ़ा रही है तो ज़्यादा ग़लत नहीं होगा। बीजेपी ही नहीं आरएसएस को भी लगता है कि अभी मौजूदा हालात में मोदी का विकास मॉडल चल नहीं पा रहा है। नोटबंदी, जीएसटी जैसे बड़े फैसलों ने अर्थव्यवस्था की कमर तोड़ दी है। देश की जनता अब मोदी के फैसलों पर भी सवाल उठाने लगी है। बात करें गुजरात की तो गुजरात के व्यापारी भी जीएसटी की वजह से खासे परेशान है। हालात ये है कि कल तक बीजेपी का ‘ट्रोल गैंग’ भी अब दुबका हुआ है। आखिर योगी को लेकर संघ और बीजेपी दोनों इतने उत्साहित क्यों हैंं? दरअसल योगी आदित्यनाथ ने उत्तर प्रदेश में कई ऐसे फैसले लिए है जो आरएसएस और हिंदुत्व के मॉडल को आगे बढ़ा रहे हैं। इनमें अयोध्या के सरयू तट पर भगवान राम की विशालकाय प्रतिमा स्थापित करने से लेकर बीते दिनों बूचड़खाने बंद करना, मदरसों में 15 अगस्त को वीडियो ग्राफी कराना और पंडित दीनदयाल उपाध्याय जन्म शताब्दी के वर्ष के मौके पर बसों को भगवा रंग देना भी शामिल है। योगी आदित्यनाथ ने इसके अलावा सरकारी स्वास्थ्य केंद्रों ने अस्पताल की चादरों का रंग भी भगवा कर दिया है। उत्तर प्रदेश के सबसे बड़े शिक्षा संस्थान वीर बहादुर सिंह पूर्वांचल विश्वविद्यालय में रामकथा अमृतवर्षा का आयोजन किया गया था। यानी योगी आदित्यनाथ ने अपने कार्यकाल में हिंदुत्व के एजेंडे को बखूबी बढ़ाया है। जो आरएसएस का एजेंडा है। कहीं यहीं कारण तो नहीं है कि अब आरएसएस भी गुजरात मॉडल के अपेक्षा योगी आदित्यानाथ के मॉडल को तवज्जो दे रही है। क्या अब ये माना जाए कि योगी आदित्यनाथ को पीएम मोदी के विकल्प के रुप में तैयार किया जा रहा है। साभार नवजीवन
गुजरात मॉडल को बचाने के लिए बीजेपी ने योगी को उतारा? 
विजय सिंह परमार, बीबीसी गुजराती के लिए लिखा है कि क्या उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री और हिन्दुत्व का चेहरा कहे जाने वाले योगी आदित्यनाथ गुजरात चुनावों में बीजेपी की मदद कर पाएंगे? बीजेपी ने एक अक्टूबर से शुरू हुई गुजरात गौरव यात्रा में योगी आदित्यनाथ को प्रचार के लिए उतारा है. यह यात्रा सरदार वल्ल्भभाई पटेल के जन्मस्थान करमसद से शुरू हुई थी. योगी ने परडी टाउन, चिखली और दक्षिण गुजरात के दूसरे हिस्सों में शुक्रवार को जनसभाओं को संबोधित किया. शनिवार को प्रचार के लिए योगी कच्छ ज़िले में जाएंगे. विश्लेषकों का कहना है कि हिंदुत्व का एजेंडा लेकर आगे बढ़ना बीजेपी की मजबूरी है ताकि दक्षिण गुजरात में अपना पुराना वोट बैंक वापस हासिल कर पाए. सूरत के वरिष्ठ पत्रकार फ़यसल बकीली कहते हैं, ''जब योगी को यूपी का सीएम बनाया गया, वह देश में मोदी के बाद दूसरे सबसे लोकप्रिय नेता थे. लेकिन योगी बीजेपी के लिए हिंदू चेहरा बने रहे. देश को अभी भी इंतज़ार है कि योगी अपने कार्यकाल में प्रदेश में कौन से विकास कार्य करते हैं. बीजेपी ने अब तक दो यात्राएं निकाली हैं- आदिवासी यात्रा और अब गौरव यात्रा. दोनों यात्राओं में बीजेपी को ख़ास रिस्पॉन्स नहीं मिला जिसके बाद अब पार्टी ने हिंदुत्व के चेहरे का रुख किया. इसके अलावा दक्षिण गुजरात में बहुत से उत्तर भारतीय भी रहते हैं. एक अनुमान के मुताबिक, दक्षिण गुजरात में 15 लाख से ज़्यादा उत्तर भारतीय (ख़ासकर उत्तर प्रदेश और बिहार) रहते हैं. योगी सूरत में शुक्रवार को उद्योगपतियों से मुलाक़ात करेंगे इनमें उत्तर भारत के बिजनेसमैन भी शामिल हैं. परडी और वलसाड में उनकी जनसभाओं को ज़्यादा रिस्पॉन्स नहीं मिला. जिन लोगों ने रैली में हिस्सा लिया उनमें से अधिकतर टिकट चाहने वाले हैं जो शक्ति प्रदर्शन करने की कोशिश में हैं लेकिन देश के सबसे बड़े राज्य के मुख्यमंत्री जिस तरह सभाएं कर रहे हैं उससे सब दिखता है.'' वलसाड में योगी के रोड शो के दौरान सड़कों पर बहुत कम लोग दिखे. फ़यसल बकीली कहते हैं कि ये दिलचस्प है कि वलसाड ने देश के शासक तय किए हैं. उन्होंने कहा, ''बीते तीन दशकों से ऐसा हो रहा है कि जिस पार्टी का सांसद वलसाड से चुनाव जीतता है केंद्र में उसकी सरकार बनती है. अगर बीजेपी वलसाड में लड़खड़ाडी है तो उसके लिए यह चिंता की बात होगी.'' बकीली यह भी कहते हैं कि अगर बीजेपी अपने विकास कार्यों को सामने रखना चाहती है तो वह छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री रमन सिंह या मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान तो उतार सकती थी जिन्होंने लंबे समय से अपने राज्यों में कुछ बेहतर काम किए हैं लेकिन बीजेपी ने योगी को उतारा और इससे साफ़ दिखता है कि वह किधर झुक रही है. राजकोट के वरिष्ठ पत्रकार किरित सिंह ज़ाला कहते हैं, ''पहले चरण में, गुजरात गौरव यात्रा को सौराष्ट्र क्षेत्र में ज़्यादा अच्छी प्रतिक्रिया नहीं मिली, जो कि उसका पारंपरिक वोट क्षेत्र है. यहां पार्टी को पाटीदारों के गुस्से का सामना करना पड़ा जो ओबीसी कैटेगरी में नौकरियों में आरक्षण देने की मांग कर रहे हैं. किसान भी फसल बीमा और नर्मदा के पानी को लेकर सरकार से नाराज़ हैं.'' ज़ाला ने यह भी कहा ''सौराष्ट्र क्षेत्र में विरोध प्रदर्शनों की वजह से बीजेपी की यात्रा कुछ गांवों में घुस भी नहीं पाई. बीजेपी के लिए सौराष्ट्र में यह अच्छा संकेत नहीं है क्योंकि ये उसका पारंपरिक वोट बैंक रहा है.'' वह कहते हैं ''मुश्किल ये है कि ये वही पाटीदार हैं जिन्होंने नरेंद्र मोदी के गुजरात मॉडल का जमकर गुणगान किया था और बीजेपी का वोट बैंक बढ़ाया था. अब, वे खुलेआम गुजरात मॉडल की आलोचना कर रहे हैं और 'गौरव यात्रा' को 'कौरव यात्रा' कह रहे हैं.'' राजनीतिक मामलों पर नज़र रखने वाले लोग कहते हैं कि जो बीजेपी पहले हमलावर रुख अपनाती थी अब वह बचाव के मोड में है और उन्हें हर हाल में मोदी के गुजरात मॉडल का बचाव करना ही है. साभार बीबीसी
राजीव रंजन तिवारी (संपर्कः 8922002003)
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