अडानी और एस्सार जैसे समूहों की बिजली कंपनियां उपकरणों की खरीद के बिलों में धांधली कर आम बिजली उपभोक्ताओँ को करोड़ों का चूना लगा रही हैं, लेकिन डीआरआई और सीबीआई की शुरुआती जांच के बावजूद इस मामले को ठंडे बस्ते में डाल दिया गया है। अब इस मामले में एक याचिका दायर कर दिल्ली हाईकोर्ट से मामले की जांच कराने की अपील की गई है। याचिका में कहा गया है कि निजी क्षेत्र की पॉवर कंपनियां विदेशों से मंगाए गए उपकरणों की कीमतें बढ़ा-चढ़ाकर बताती हैं और इसी आधार पर बिजली की कीमतों में अंधाधुंध बढ़ोत्तरी कर लोगों को चूना लगा रही हैं। दिल्ली हाईकोर्ट में दायर याचिका में कोर्ट की निगरानी में सीबीआई से जांच कराने की मांग की गई है। इस याचिका पर इसी महीने यानी 26 अक्टूबर को सुनवाई होनी है।
याचिका दायर करने वाले पूर्व ब्यूरोक्रेट और सामाजिक कार्यकर्ता हर्ष मंदर ने अदालत का ध्यान राजस्व खुफिया निदेशालय यानी डीआरआई के उस नोटिस की तरफ भी दिलाया है जो 2014 में अडानी समूह को 2015 में एस्सार समूह को और 2016 में 40 अन्य बिजली कंपनियों को भेजा गया था। डीआरआई के नोटिसों से पता चलता है कि ज्यादातर बिजली कंपनियों ने बिजली कीमतें बढ़ाने के लिए यही तरीका अपना रखा है, जिसके तहत विदेशों में स्थापित शेल कंपनियां (वे कंपनियां जो किसी और के नाम से चलती हैं, लेकिन दरअसल होती उसी समूह की हैं, जिसके लिए वे काम करती हैं) से उपकरणों की खरीदारी में उपकरणों की कीमतों को बढ़ा-चढ़ाकर पेश करती हैं। हर्ष मंदर की तरफ से अदालत में पेश वकील सरीम नवेद का कहना है कि, “इतना ही नहीं, ये कंपनियां अपने पॉवर प्लांट में जिस कोयले का इस्तेमाल करती हैं, वह भी घटिया क्वालिटी का होता है और इससे पॉवर प्लांट की क्षमता पर असर पड़ता है।” याचिका में कहा गया है कि 2014 में सीबीआई ने अडानी समूह की एक कंपनी के खिलाफ शुरुआती जांच थी, जिसके बाद आज तक इस मामले में कुछ नहीं हुआ। याचिका के मुताबिक आम बिजली उपभोक्ताओं और आम लोगों को प्रभावित करने वाले इस मामले में केंद्र सरकार ने भी कोई दिलचस्पी नहीं दिखाई।
यहां रोचक तथ्य यह है कि हर्ष मंदर ने याचिका 20 सितंबर को दायर की थी, उसके तुरंत बाद ही उनके ‘एनजीओ सेंटर फॉर इक्विटी स्टडीज़’ को आयकर विभाग का नोटिस भेजा गया और उनके संस्थान की विस्तृत पड़ताल करने की धमकी दी गई। याचिका में बताया गया है कि बिजली कंपनियों की इस धांधली से उपभोक्ताओं को अब तक 26000 करोड़ से लेकर 50000 हजार करोड़ तक का चूना लग चुका है, क्योंकि उपकरणों की कीमतों में धांधली कर सारा बढ़ा हुआ खर्च बिजली कंपनियों ने उपभोक्ताओँ से वसूला है। याचिका के मुताबिक इस मामले में इन कंपनियों के खिलाफ भारतीय दंड संहिता की धारा 419,420,468 और 471 के तहत मामला बनता है। इतना ही यह विदेशी मुद्रा प्रबंधन अधिनियम यानी फेमा और भ्रष्टाचार निरोधक अधिनियम का भी उल्लंघन है। याचिका में कहा गया है कि अगर उपकरणों की खरीद के बिलों में धांधली नहीं की गई होती तो बिजली के दाम कम से कम 2 रुपए प्रति यूनिट कम हो सकते थे। इस याचिका को एक और एनजीओ ‘कॉमन कॉज़’ और सेंटर फॉर पब्लिक इनट्रेस्ट सिटीगेशन, सीपीआईएल की तरफ से दायर मामलों के साथ जोड़ा गया है। इन दोनों एनजीओ ने कहा है कि उपकरणों की कीमत और कोयले की खरीद में धांधली पर डीआरआई का नोटिस जारी होने के 18 महीने बाद भी इस मामले में अब तक कुछ नहीं हुआ है और सीबीआई ने अभी तक कोई कदम नहीं उठाया है। याचिका के मुताबिक चूंकि सरकार इस मामले में कुछ नहीं कर रही है, जिससे सरकार को तो नुकसान हो ही रहा है, साथ ही उपभोक्ताओं को भी बढ़ी हुई बिजली कीमतें चुकाना पड़ रही हैं। ऐसे में अदालत की निगरानी में जांच की जरूरत है। याचिका में कोर्ट से अपील की गई है कि, “उद्योगों द्वारा ऐसी धांधलियों को रोकने के लिए अदालत की निगरानी में जांच की जरूरत है क्योंकि सरकार इस मुद्दे पर कुछ करती नजर नहीं आती।”
याचिका में सीबीआई या किसी रिटायर जज की अगुवाई में गठित एक विशेष जांच दल यानी एसआईटी से इस सारे मामले की जांच की अपील की गई है। याचिका में बिजली की कीमतें कम करने के निर्देश देने के साथ ही और उपकरण और कोयला मंगाने के बिलों को कस्टम विभाग के पास जमा कराते वक्त इन उपकरणों की अंतर्राष्ट्रीय बाजार में कीमतों का जिक्र करने के निर्देश देने की भी अपील की गई है। याचिका में मांग की गई है कि कोर्ट आरबीआई को यह निर्देश जारी करे कि जब भी कोई बैंक किसी ऐसी कंपनी को क्रेडिट सुविधाएं दे तो उपकरणों की अंतर्राष्ट्रीय बाजार में कीमतों की मांग करे। याचिका में दुबई, हांगकांग, लंदन और बहरीन में स्थित उन बैंकों की सूची भी दी गई है जिन्होंने ऐसी कंपनियों को क्रेडिट सुविधा दी है। साभार नवजीवन
राजीव रंजन तिवारी (संपर्कः 8922002003)
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