नई दिल्ली। शहरों में बेरोजगारी 11 महीने के उच्चतम स्तर पर पहुंच गई है। दिनों-दिन विकराल होती जा रही बेरोजगारी की इस समस्या ने अब भीषण रूप ले लिया है। 8 अक्टूबर 2017 को इसका आंकड़ा 5.8 फीसदी पहुंच गया जबकि इसके पिछले सप्ताह के अंत में ये 5 फीसदी था। इतना ही नहीं, बड़े शहरों में तो यह 8.2 फीसदी पर पहुंच चुका है। इतना ही नहीं नोटबंदी के बाद गांव लौट गए लोग भी अब वापस आने लगे हैं, क्योंकि वहां रोजगार है ही नहीं। लेकिन रोजगार की तलाश में शहरों की लेबर मार्केट में आने के बाद भी उन्हें कोई रोजगार नहीं मिल रहा। सीएमआईई ने खुद ही ट्वीट कर इन आंकड़ों को सामने रखा है।
इसी से संबंधित दूसरे आंकड़े बीएसई-सीएमआईई के सर्वे में सामने आए हैं, जो देश में बेरोजगारी के हालात पर नजर रखने के लिए किया जाता है। सर्वे के नतीजे बेहद परेशान करने वाले हैं। बीएसई-सीएमआईई इस तरह के पांच सर्वे कर चुका है और यह पांचवे सर्वे की नतीजे हैं। पहला और दूसरा सर्वे नोटबंदी से पहले जनवरी-अप्रैल 2016 और मई-अगस्त 2016 में किया गया था। सितंबर-दिसंबर 2016 में जब तीसरा सर्वे हो रहा था तो बीच में नोटबंदी का ऐलान कर दिया गया था। नोटबंदी के बाद भी दो सर्वे किए गए। हर सर्वे के बाद इसके नतीजे सार्वजनिक किए जाते हैं और उन्हें सीएमआईई और बीएसई की वेबसाइट पर अपलोड भी किया जाता है। इन सर्वे के नतीजों से तस्वीर साफ होती है कि नोटबंदी के दौरान और जीएसटी लागू होने से पहले तक बेरोजगारी की क्या हालत थी। सर्वे के आंकड़ों से यह भी पता चलता है कि कितनी लेबर फोर्स उपलब्ध है, कितनी लेबर जॉब मार्केट में है, कितने लोगों के पास रोजगार है और कितने के पास नहीं है।
सर्वे का जो तरीका है, उसके मुताबिक अगर कोई व्यक्ति बेरोजगार है, काम करना चाहता है और काम की तलाश कर रहा है, तो उसे बेरोजगार माना जाता है। लेकिन कोई बेरोजगार व्यक्ति काम तो करना चाहता है, लेकिन काम की तलाश नहीं कर रहा है, तो उसे बेरोरजगार नहीं माना जाता। इसलिए इन आंकड़ों में उन लोगों को शामिल नहीं किया जाता जो बेरोजगार होने के बावजूद बहुत से सामाजिक और अन्य कारणों से काम की तलाश में नहीं जुट पाते। सर्वे के हिसाब से काम की तलाश सिर्फ उस तरीके को माना जाता है, जिसमें कोई व्यक्ति नौकरी के लिए आवेदन दे, इंटरव्यू दे, लोगों से मिले, या कतार में लगे, तब उसे बेरोजगार मान लिया जाता है। सर्वे के तरीके बताने का मकसद यह है कि ऐसे लोग जो बेरोजगार तो हैं, लेकिन सक्रिय रूप से काम की तलाश नहीं कर रहे हैं, उनकी तादाद 70 फीसदी तक है। यानी इन्हें भी अगर इसमें जोड़ लें तो बेरोजगारी का आंकड़ा और भी ऊंचा हो सकता है। भले ही इस सर्वे से शहरी बेरोजगारी का आंकड़ा 8.2 फीसदी आया हो, लेकिन हकीकत में यह 15 फीसदी है। सर्वे में देश के 25 बड़े शहरों के आंकड़े दिए गए हैं और उनका औसत निकाला गया है। लेकिन अगर इसमें मझोले और छोटे शहरों को भी शामिल करेंगे, तो आंकड़े हैरान करने वाले सामने आ सकते हैं।
युवाओं से भाजपा ने किया था यह वादा
2014 के लोकसभा चुनाव के लिए जारी अपने घोषणापत्र में बीजेपी ने कहा था, “कांग्रेस की अगुवाई वाली यूपीए सरकार ने देश को रोजगार रहित विकास (जॉबलैस ग्रोथ) की तरफ धकेला है। अर्थव्यवस्था को नए सिरे से जिंदा रखने के लिए, बीजेपी नौकरियों के अवसर मुहैया कराने (जॉब क्रिएशन) और उद्यमिता को उच्च प्राथमिकता देगी।” इसके अलावा चुनाव प्रचार के दौरान नवंबर 2013 में आगरा में हुई एक रैली में नरेंद्र मोदी ने कहा था, “अगर बीजेपी सत्ता में आएगी तो एक करोड़ रोजगार मिलेंगे।” आपको याद होगा कि 2014 लोकसभा चुनाव के प्रचार के दौरान बीजेपी ने बेशुमार वीडियो विज्ञापन जारी किए थे, जिसमें बेरोजगारी पर भी एक था, लेकिन आज यह विज्ञापन खुद बीजेपी और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर लागू होता है। साभार नवजीवन
राजीव रंजन तिवारी (संपर्कः 8922002003)
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