नई दिल्ली (रितेश सिन्हा)। पार्टी विद डिफरेंस इन दिनों कई मोर्चों पर घिरी हुई है। नोटबंदी के बाद रिजर्व बैंक के ताजातरीन आंकड़ों ने मोदी सरकार की नींद उड़ा रखी है। जिस प्रकार से केंद्र सरकार के तीन साल की उपलब्धियों का गुणगान किया गया था, उसकी धुंधली तस्वीर भी अब सामने आने लगी है। बीते वर्षों में देश को सुशासन का पाठ पढ़ाने और भ्रष्टाचारमुक्त सरकार देने की प्रयास में प्रधानमंत्री तो तेजी से सीढ़ियां चढ़ते चले गए, मगर उनके सिपाहसलार नाकाम साबित हुए। हालात ऐसे बन चुके हैं कि मोदी-शाह के लिटमस टेस्ट में अधिकांश फिसड्डी ही साबित हुए हैं। उधर, संघ भी कई मंत्रियों की कारगुजारियों से खफा है।
पीएम मोदी ने कहा था कि न खाऊंगा और न खाने दूंगा, मगर उनके नाक के नीचे, उनके मातहत मंत्रीमंडल के सहयोगी इसे महज जुमला मानकर अपना दायित्व निभाने की आड़ में भ्रष्टाचार का खुला कारोबार कर रहे हैं। कलराज मिश्र और गिरिराज सिंह के इस्तीफे की एक बड़ी वजह उनके विभाग में हुए हजारों करोड़ के घोटालों में लिप्त होना माना जा रहा है। एक-एक करके मंत्रियों को उनकी कारगुजारियों को दिखाकर पीएमओ इस्तीफा देने पर मजबूर कर रहा है। यही वजह है कि इस्तीफे की झड़ी लगी है। छोटा हो या बड़ा महकमा, हर मंत्री संशय की स्थिति में है। भारतीय जनता पार्टी के यूपी में जड़ें सींचने में कलराज का अभूतपूर्व योगदान है। मृदुभाषी कलराज बहुत सरल और सहज व्यक्तित्व के धनी हैं। उनको क्रोध करते बहुत कम लोगों ने देखा होगा। संगठन के इस पुरोधा का यह विरोधाभास है कि उनके नेतृत्व में कर रहे, हो रहे घोटालों और अनियमितता की आंच उन पर आ गई है। मौका मिलते ही कलराज के काले राज का पर्दाफाश हो गया है। संगठन में दी गई लंबी सेवाओं को देखते हुए भाजपा-आरएसएस में कलराज के चाहने वाले उन्हें गर्वनर बनाने की संस्तुति कर रहे हैं। नई निजाम के राजकाज में नई परिपाटी चल पड़ी है। दागियों को या तो संगठन में भेज दो या फिर सांवैधानिक पद का तमगा दे दो।
सूक्ष्म लघु एवं मध्यम उद्यम मंत्रालय में इतना बड़ा घोटाला और इतनी बड़ी अनियमितताएं आबाधित रूप से हो रही थी जो कलराज मिश्र और गिरिराज सिंह को ले डूबी है। इसके पूर्व बड़बोले गिरिराज के घर पर कई करोड़ की बरामदगी भी हुई थी तबसे उन पर पीएमओ निगाहें गड़ाए था। वो कागदृष्टि के शिकार हो गए। एक के बाद एक घोटालों का इस विभाग में सामने आना बिना मंत्री के पूर्वानुमति के संभव नहीं है। ऐसा नहीं है कि ये दोनों मंत्री ही पूरी सरकार में भ्रष्ट हैं। भाजपा में इसकी एक लंबी फेहरिस्त है जिसका अगली कड़ी विजय गोयल को माना जा रहा है। सुधीर मुनगंतीवार भी महाराष्ट्र में भ्रष्टाचारी के रूप में एक बड़ी पहचान बनाए हुए है। कलराज मिश्रा की छुट्टी इसलिए की गई क्योंकि सीबीआई के पास उनके मंत्रालय के हो रहे घपले की जांच की अनुशंसा की गई। 25 अगस्त को केंद्रीय सतर्कता आयोग ने पत्र के माध्यम से सीबीआई जांच की अनुशंसा की। विदित हो कि यह पहला मामला नहीं है। कुछ दिनों पूर्व सूक्ष्म लघु एवं मध्यम मंत्रालय के कई अधिकारियों को सीबीआई ने रिश्वत लेते रंगे हाथों पकड़ा था जिससे मंत्रालय की अच्छी-खासी किरकिरी हुई थी। इसी क्रम में सीबीआई मंत्रालय के सबसे मलाईदार विभाग टूल रूम के घपलों की भी जांच कर रही है। मंत्री और विकास आयुक्त के तालमेल के बिना किसी भी घपले को अंजाम नहीं दिया जा सकता है। इसे इत्तेफाक कहें या फिर कुछ और मगर जिस दिन कलराज मिश्रा ने अपने पद से इस्तीफा दिया, उसी दिन मंत्री के खासमखास रहे विकास आयुक्त सुरेंद्र नाथ त्रिपाठी का भी स्थानांतरण कर दिया गया। परंपरा के विपरीत उन्हें पदोन्नति की बजाए कृषि मंत्रालय में अवर सचिव वित्तीय सलाहकार के पद पर भेजा गया। ऐसा करके केंद्र सरकार ने मामला की लीपापोती करने और उनको बचाने का काम किया।
उनके अलावा विभाग के कई अधिकारियों पर अनुचित दवाब डालकर घपले पर पर्दा डालने का कुत्सित प्रयास किया गया। इसकी भनक मिलते ही केंद्रीय सतर्कता आयोग ने 25 अगस्त 2017 को एक पत्र लिखकर विभाग को आगाह भी किया कि न तो पुराने फर्जी बिलों को नष्ट किया जाए और न ही निकासी के किसी पुराने बिल को प्रस्तुत किया जाए। गौरतलब है कि यूपीए के कार्यकाल में एमएसएमई की कार्यक्षमता और कुशलता बढ़ाने के लिए आउटसोर्सिंग करने का निर्णय लिया गया था। आउटसोर्सिंग के नाम पर फर्जीवाड़ा किया जा रहा है। सरकारी नियमों को ताक पर रखकर जिस तरीके से आर्थिक लेन-देन की बात सामने आई है, उससे भी मंत्रालय की कार्यशैली पर सवालिया निशान खड़े कर दिए हैं। आउटसोर्सिंग को लेकर गाजियाबाद स्थित जिस रैपिड वर्कफोर्स साल्यूशंस कंपनी से मंत्रालय के साथ एक एमओयू पर हस्ताक्षर किया था। मसौदे में स्पष्ट तौर पर उद्धृत है कि केवल घोर लापरवाही का मामला उजागर होने पर सूचना देकर उनसे स्पष्टीकरण मांगा जा सकता है फिर अनियमिता के आधार पर ही अमूक कर्मचारी को हटाया जा सकता है। मगर जिस प्रकार से विकास आयुक्त सुरेंद्र नाथ त्रिपाठी ने सरकारी नियमों को ताक पर रखकर मंत्रालय के मातहत काम करने वाले 9 डाटा एंट्री आपरेटरों को उनके पद उसे किसी भी तरीके से उचित नहीं ठहराया जा सकता। आपको बता दें कि रैपिड साल्यूशंस कंपनी के सहयोग से 23 डाटा एंट्री आपरेटर कार्यरत हैं मगर जिन नौ कर्मचारियों को बिना कारण बताए हटाया गया उनमें देवेंद्र कुमार, अनुज कुमार खपराना, राजन गौतम, सोनू कुमार शर्मा, कविता नेगी, ताजिंदर कौर, चंदर प्रकाश, जितेंद्र कुमार शर्मा और संदीप के नाम शामिल हैं। विभाग का कमाल तो देखिए कि मंत्रालय के निदेशक राबर्ट सी तुली ने 7 जुलाई 2017 को पत्र लिखकर इन सभी कर्मचारियों की सेवा समाप्त करने का आदेश जारी किया। जबकि उक्त अधिकारी के अधिकार क्षेत्र में ही नहीं आता कि विभागीय पत्र लिखकर सीधे तौर पर उन कर्मचारियों को हटाने की सिफारिश करे या आदेश पारित करे। विदित हो कि ये सभी कर्मचारी आउटसोर्सिंग के तहत मंत्रालय में कार्य कर रहे हैं और मंत्रालय के अधीन कर्मचारी नहीं है। दूसरा जिस आउटसोर्सिंग कंपनी ने 23 लोगों को मंत्रालय में भेजा है, वे श्रम मंत्रालय से नियोजित भी नहीं है। फिर वो कौन है जिसके निर्देश पर निदेशक ने इस प्रकार का पत्र लिखा। उधर औचक निरीक्षण के दौरान भी 100 से अधिक अधिकारी अपने काम से अनुपस्थित पाए गए जिस पर विभागीय स्तर पर तुली से जवाब-तलब भी किया गया। इस अधिकारी की कार्यशैली पर समय-समय पर सवाल उठते रहे हैं। उनके इस कृत्य के बाद ये सभी नौ निलंबित कर्मचारियों ने लेबर कोर्ट का दरवाजा खटखटाया तब इस घपले पर से पर्दा उठा।
दिल्ली क्षेत्र के केन्द्रीय श्रमायुक्त निरंजन कुमार द्वारा 24 अगस्त 2017 को जारी किए गए पत्र जिसका पत्रांक एएलसी-1/8(217)/17-एनके है, से पता चला कि रैपिड वर्कफोर्स साल्यूशंस कंपनी द्वारा इन सभी कर्मचारियों का नाम तक श्रम मंत्रालय में नियोजित तक नहीं है, जबकि यह किसी भी सरकारी निविदा की अनिवार्य शर्त है। इस बाबत सर्विस प्रोवाइडर कंपनी के स्वामित्व अनिल जैन से संपर्क करने का प्रयास किया मगर हो नहीं सका। पत्र के अनुसार लगातार वर्षों से उसी कंपनी को टेंडर देना बड़े आर्थिक लेन-देन की तरफ भी इशारा करता है। देश में चल रहे 18 टूल रूम के माध्यम से 2200 करोड़ का घपला भी उजागर हुआ। एक मामले में 2 करोड़ के गबन मामले में कलराज और गिरिराज के बीच आर्थिक लेन-देन की बातें भी सामने आई जिस पर जांच अंतिम अवस्था में है। एक और मामला संज्ञान में आया जिसमें बड़े पैमाने पर रोजगार के नाम पर फंडिंग किया गया। करोड़ों की रेबड़ियां खास-खास एनजीओ को बांटी गई। संभतवः मोदी सरकार में पहला ऐसा मामला आया है जिसमें किसी मंत्रालय के मुख्य सतर्कता आयुक्त ने इस सरकार के गबन, भ्रष्टाचार पर प्रहार कर एनडीए सरकार के चेहरे को बेनकाब किया है। इतना ही नहीं प्रशासन ने मैनपावर टेंडर में बड़े पैमाने पर धांधली, पद का दुरूपयोग और पैसों के खुला खेल पर सवाल उठाए हैं। सतर्कता आयोग एमएसएमई प्रशासन पर आपराधिक मामला दर्ज कराने की तैयारी में है। इसके अलावा करोड़ों रूपए के गबन, अनियमितता, घोटालों के रिकार्ड की जांच करते हुए केंद्र सरकार से सीबीआई जांच कराने का आग्रह किया है। प्रधानमंत्री की विशेषता रही है कि जिन विभागों में मंत्री में अच्छा काम कर रहे हैं, उनको पदोन्नति और पुरस्कार देने के साथ-साथ पीएम मुस्कुराकर उनका सम्मान भी करते हैं। लेकिन मोदी का यह भी गुण है कि उनके गुणा-भाग में फंसे तो नपे। फिर बड़े पैमाने पर रिजिनेशन के पीछे का सच सामने आना बाकी है। मंत्री इतनी आसानी से इस्तीफा नहीं दे रहे। पीएम की स्पेशल टीम ने खुफिया तरीके से सभी मंत्रियों का डोजियर ‘फाइल‘ तैयार किया है। जब अधिकारी ये डोजियर उनके सामने खोलते हैं तो मंत्री पल भर के ना-नुकुर के बाद अपना इस्तीफा देकर संगठन में काम करने की इच्छा जताना शुरू कर देते हैं। इसी कड़ी में राजीव प्रताप रूडी, निर्मला सीतारमण, फगन सिंह कुलस्ते, संजीव बाल्यान और अब ये सब पूर्व मंत्री संगठन को मजबूत करने की जिम्मेदारी तय कराने में जुटे हुए हैं। ये मंत्री जो भूतपूर्व हो गए हैं, अब पार्टी के संत्री बनने तक को बेताब हैं। महेंद्र नाथ पांडे को तो यूपी के भाजपा की सरदारी मिल चुकी, लेकिन चेहरे से वो चमक गायब है। इतवार तक अब इसमें कितने और भूतपूर्व होते हैं और पार्टी के संत्रियों के दस्ते में किसका नंबर लगेगा ये मोदी और शाह की जोड़ी तय करेगी। साभार स्वराज खबर
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