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तीन साल के सबसे खराब स्थिति में है देश की अर्थव्यवस्था

नई दिल्ली। घरेलू अर्थव्यवस्था को इसकी तीन साल की सबसे गंभीर नरमी से निकालने के लिए सरकार प्रोत्साहन के कई उपायों पर विचार कर रही है। अधिकारियों ने यह जानकारी देते हुए बताया कि इसके तहत इस त्योहारी सीजन में ग्राहकों के हाथों में और अधिक धन देने, लघु व मझोले उपक्रमों को आसान ऋण तथा विनिवेश में गति लाने जैसे कदम उठाए जा सकते हैं। अधिकारियों ने कहा कि इसके साथ ही घरेलू निवेश को प्रोत्साहित करने, ग्रामीण बुनियादी ढांचे तथा किफायती आवास के लिए और अधिक धन उपलब्ध करवाने जैसे कदम उठाए जा सकते हैं। मुख्य आर्थिक सलाहकार अरविंद सुब्रमण्यन को अर्थव्यवस्था के समक्ष मौजूदा चुनौतियों तथा उनके संभावित उपायों का ब्यौरा तैयार करने को कहा गया है। वित्त मंत्रालय के अधिकारियों ने कहा कि सरकार ने चिन्हित किया है कि पूंजी उपलब्धता एक समस्या लेकिन उसने बजटीय घाटे के बारे में अपने लक्ष्य में कोई बदलाव अभी नहीं किया है। पूर्व वित्त वर्ष में बजटीय घाटा 3.5 प्रतिशत रहा था जिसे मौजूदा वित्त वर्ष में जीडीपी का 3.2 प्रतिशत करने का लक्ष्य है। नीति निर्माता इससे पूरी तरह अवगत हैं कि दबाव कम करते हुए तथा उपभोक्ताओं को खर्च के लिए अधिक धन उपलब्ध करवाना समय की मांग है और इस बारे में त्योहारी सीजन से पहले ही नीतियां लागू करनी होंगी। निजी खपत मांग कम है और सरकार के समक्ष एक सुझाव कर दरों में कटौती या उनकी सीमा बढ़ाना है। हालांकि अभी ये सिर्फ प्रस्ताव हैं और इस बारे में कोई फैसला नहीं किया गया है। उल्लेखनीय है कि आर्थिक वृद्धि दर अप्रैल जून की तिमाही में घटकर तीन साल के निचले स्तर 5.7 प्रतिशत पर आ गई। ऐसी आशंका है कि नोटबंदी व जीएसटी कार्यान्वयन के कुछेक प्रभावों के कारण भारत सबसे तेजी से वृद्धि कर रही प्रमुख अर्थव्यवस्थाओं में से एक का अपना दर्जा गंवा सकता है। अधिकारियों का कहना है कि सीमित संसाधानों के बीच जीएसटी से किसी अनापेक्षित लाभ की उम्मीद नहीं होने के बीच सरकार ऐसे कदमों पर विचार कर रही है जिनसे निवेश बढ़े और रोजगार के नये अवसर पैदा हों। हालांकि सरकार को उम्मीद है कि तीन चार महीने में हालात सामान्य होंगे और वित्तीय घाटा दायरे से बाहर नहीं जाएगा। साभार जनसत्ता
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