नयी दिल्ली। उच्चतम न्यायालय ने आज एक दूरगामी परिणाम वाले फैसले में निजता के अधिकार को संविधान के तहत मौलिक अधिकार घोषित किया। इस फैसले का भारतीयों की भोजन की आदतों और यौन रुझान जैसी जीवन संबंधी पसंदों पर प्रभाव पड़ सकता है। केवल पांच मिनट चले सत्र में प्रधान न्यायाधीश जेएस खेहर ने नौ न्यायाधीशों के फैसले का सर्वसम्मति वाला प्रभावी भाग पढकर सुनाते हुए कहा कि निजता का अधिकार संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता और संविधान के भाग तीन के तहत दी गई स्वतंत्रताओं का स्वाभाविक अंग है। इस मामले के 547 पेज के फैसले में एक न्यायाधीश ने कहा कि फैसले का बड़ा प्रभाव इस देश के 125 करोड़ नागरिकों के जीवन को संचालित करेगा। न्यायाधीश रोहिंटन नरीमन ने कहा कि फैसले की अलग अलग समय पर समाज की बदलती जरूरतों के जवाब के तौर पर व्याख्या की जानी चाहिए।
शीर्ष अदालत ने यह भी फैसला सुनाया कि अन्य मौलिक अधिकारों की तरह, निजता का अधिकार संपूर्ण नहीं है और इस पर किसी भी तरह के अतिक््रुमण को अनुमति योग्य पाबंदियों की कसौटी पर उतरना होगा। यह मामला उन कई याचिकाओं से जुड़ा है जिनमें आधार योजना को चुनौती दी गई थी। इन याचिकाओं मे कहा गया कि पहचान पत्र के लिए प्राप्त डेटा निजता का उल्लंघन है। अदालत ने आधार मुद्दे को सीधे तौर पर नहीं छुआ और इस विषय से 2015 से दलीले सुन रही एक अन्य पीठ निपटना जारी रखेगी। संविधान पीठ ने खड़क सिंह और एम पी शर्मा मामलों में दी गयी व्यवस्थाओं को पलट दिया। इन फैसलों में कहा गया था कि निजता का अधिकार संविधान के तहत मौलिक अधिकार नहीं है। खड़क सिंह प्रकरण में न्यायालय ने 1960 में और एम पी शर्मा प्रकरण में 1950 में फैसला सुनाया था। शीर्ष अदालत ने राजग सरकार की इस दलील को खारिज किया कि संविधान के तहत निजता का कोई आम या मूलभूत अधिकार नहीं है।
मोदी सरकार को लगा झटका
प्राइवेसी के अधिकार को मौलिक अधिकारों का दर्जा देने के साथ ही सुप्रीम कोर्ट ने इसके ख़िलाफ़ दी गईं केंद्र सरकार की दलीलें ठुकरा दीं. भारत सरकार की तरफ़ से एटॉर्नी जनरल ने कहा संविधान में निजता का अधिकार न तो मौलिक अधिकार है और न ही कोई सामान्य अधिकार. सुप्रीम कोर्ट के फ़ैसले के बाद ये तय हो गया कि प्राइवेसी अब एक मौलिक अधिकार है और इसके साथ ही सरकार ने इसे लांघने के लिए सरकार की हदें भी तय कर दी हैं. माना जा रहा है कि गुरुवार के फ़ैसले का असर आधार क़ानून को चुनौती देने वाली याचिका को लेकर कोर्ट के फ़ैसले पर भी पड़ सकता है. लेकिन ये कोई पहला मौका नहीं है जब सुप्रीम कोर्ट ने मोदी सरकार के मंसूबों पर पानी फेर दिया. इसी अगस्त के महीने में सुप्रीम कोर्ट में काटने के लिए पशुओं की खरीद बिक्री पर बैन के अपने फैसले का केंद्र सरकार बचाव नहीं कर पाई थी. केंद्र के इस फ़ैसले पर मद्रास हाई कोर्ट की मदुरै बेंच ने रोक लगा दी थी और सुप्रीम कोर्ट ने मदुरै बेंच के फ़ैसले को पूरे देश में लागू कर दिया था.
कांग्रेस ने किया स्वागत, राहुल ने बीजेपी पर साधा निशाना
राइट टु प्रिवेसी को लेकर आए सुप्रीम कोर्ट के फैसले की कांग्रेस ने भी सराहना की है। कांग्रेस उपाध्यक्ष ने निजता के अधिकार को मौलिक अधिकार मानने वाले सुप्रीम कोर्ट के फैसले को हर भारतीय की जीत बताया है। राहुल ने इस बहाने बीजेपी पर भी निशाना साधा और कहा कि कोर्ट का फैसला फासीवादी ताकतों को बड़ा झटका है, निगरानी के जरिए दबाव डालने की विचारधारा को ठोस तरीके से खारिज किया गया है। कांग्रेस पार्टी ने भी इस फैसले का स्वागत करते हुए कहा कि शीर्ष अदालत के फैसले से नरेंद्र मोदी सरकार के निजता के अधिकार को कम करने के प्रयासों पर पानी फिर गया है। कांग्रेस प्रवक्ता रणदीप सुरजेवाला ने ट्वीट किया, 'निर्णायक एवं प्रभावशाली फैसला। स्वतंत्रता की बड़ी जीत। सर्वोच्च न्यायालय ने निजता के अधिकार को कम करने के मोदी सरकार के प्रयासों को खारिज कर दिया।' कांग्रेस नेता पी. चिदंबरम ने कहा, 'सुप्रीम कोर्ट के एकमत से निजता के अधिकार को संविधान के तहत मौलिक अधिकार घोषित करने का कांग्रेस स्वागत करती है। निजता निजी स्वतंत्रता के मूल में है, जीवन का अभिन्न हिस्सा है। आधार को लेकर इस सरकार का नजरिया यूपीए के दृष्टिकोण से उलट है, जिस वजह से चुनौतियां पैदा हुई हैं।' बता दें कि प्रधान न्यायाधीश न्यायमूर्ति जे.एस.खेहर की अध्यक्षता वाली सर्वोच्च न्यायालय की 9 सदस्यीय पीठ ने अपने फैसले में कहा कि निजता का अधिकार संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत मौलिक अधिकार है।
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