पटना। गांधी मैदान में राष्ट्रीय जनता दल ने 'भाजपा भगाओ, देश बचाओ' रैली का आयोजन किया। रैली में गरजते हुए लालू प्रसाद ने मुख्यमंत्री नीतीश कुमार और प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को आड़े हाथों लिया। रैली में राज्य के विभिन्न इलाके से बड़ी संख्या में जन समूह पहुंचा। पूरा पटना शहर कार्यकर्ताओं और नेताओं से अटा पड़ा था। रैली के दौरान बिहार, उत्तर प्रदेश और पश्चिम बंगाल, जम्मू कश्मीर के बड़े नेता एक मंच पर साथ दिखे। इनमें आरजेडी प्रमुख लालू प्रसाद यादव और उनके बेटे तेजस्वी यादव, कांग्रेस नेता गुलाम नबी आज़ाद, सीपी जोशी, उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव, पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी, जनता दल यूनाइटेड के बागी नेता नेता शरद यादव शामिल हुए। उनके अलावा राष्ट्रीय लोकदल के उपाध्यक्ष जयंत चौधरी, झारखंड के पूर्व मुख्यमंत्री बाबूलाल मरांडी और हेमंत सोरेन, आरजेडी के वरिष्ठ नेता रघुवंश प्रसाद सिंह, शिवानंद तिवारी, एनसीपी के तारिक अनवर, सीपीआई के डी राजा सहित लालू यादव के परिवार के सदस्य पूर्व मुख्यमंत्री राबड़ी देवी, तेजप्रताप और मीसा भारती समेत और भी कई नेता मौजूद थे। इसके अलावा राज्य के कई नेता, विधायक भी इस रैली में शामिल हुए। हालांकि इस महारैली में कांग्रेस पार्टी की अध्यक्ष सोनिया गांधी और उपाध्यक्ष राहुल गांधी शामिल नहीं हुए। इनके अलावा बहुजन समाज पार्टी की मायावती ने भी रैली में शामिल होने से इनकार कर दिया था।
आरजेडी सुप्रीमो लालू यादव ने भी अपने भाषण के दौरान केंद्र सरकार और नीतीश कुमार पर हमले किए। उन्होंने कहा, "सृजन घोटाले के क़ागज मेरे पास हैं। ये नीतीश कुमार की अंतिम पलटी है। संघ मुक्त भारत का नारा देते थे, बीमारी का बहाना बनाकर हमसे दूरी बनाई और संघ की गोद में जा बैठे। नीतीश को दलितों से नफ़रत है। उनपर हत्या का मुकदमा चल रहा है। नीतीश को सीबीआई छापों की पहले से ख़बर थी। सुशील मोदी को थी घोटालों की जानकारी। मैं नीतीश का सच पहले से जानता था। नीतीश का कोई सिद्धांत नहीं है। लालू यादव ने ये भी कहा, "बिहार से एनडीए के सभी नेता मेरे प्रॉडक्ट हैं। शरद यादव ने नीतीश कुमार को मंत्री बनाया। नीतीश को मैंने सींचा था। नीतीश ने राष्ट्रपति चुनाव में धोखा दिया। धोखा नहीं देते तो बिहार की बेटी मीरा कुमार राष्ट्रपति होतीं। नीतीश को मेरे बेटे से जलन थी क्योंकि नीतीश को तेजस्वी यादव से था ख़तरा। मेरी संपत्ति सार्वजनिक हैं। आज हमारे साथ 80 विधायक हैं। लोगों ने मेरा चेहरा देख कर वोट दिया। नीतीश ने मुझसे मांगा था एक और कार्यकाल। बिहार में शराबबंदी के बावजूद घर-घर में शराब मिल रही है। नीतीश के बारे में पूरा बिहार जान गया है।
रैली के दौरान आरजेडी नेता और सूबे के पूर्व उप मुख्यमंत्री तेजस्वी यादव ने मुख्यमंत्री नीतीश कुमार पर जम कर निशाना साधा। उन्होंने कहा कि नीतीश हमारे चाचा थे और रहेंगे लेकिन वो अच्छे चाचा नहीं हैं। उन्होंने कहा, "तेजस्वी तो बहाना था, इन्हें सृजन घोटाला छुपाना था।" जनता दल यूनाइटेड से सांसद शरद यादव ने कहा कि बिहार के लोगों ने महागठबंधन को जनादेश दिया था। उन्होंने ये भी कहा कि मुझे सत्ता का मोह नहीं है और देश स्तर पर महागठबंधन बनेगा। उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने पटना को ऐतिहासिक धरती क़रार देते हुए कहा कि ये धरती अगर रथ रोक सकती है तो बीजेपी को भी रोक सकती है। उन्होंने ये भी कहा कि तीन साल से ज़्यादा वक्त बीत चुका है, क्या अच्छे दिन आए हैं, ये सरकार को बताना चाहिए। बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने कहा, "काम मन से होता है, भाषणों से नहीं। गरीबों की लड़ाई लड़ते रहेंगे। देश में बेरोजगारी बढ़ी है। अच्छे दिन के नाम पर दलितों और अल्पसंख्यकों पर अत्याचार हो रहा है। बिहार की पूर्व मुख्यमंत्री राबड़ी देवी ने केंद्र और नीतीश कुमार पर एक साथ निशाना साधा। उन्होंने कहा, "दंगाइयों को भगाइये, देश बचाइये। बिहार से नीतीश को भगाएं। पलटू राम पलट गए। रात भर में इनका विवाह हो गया बीजेपी से। नीतीश मर्डर किए हैं। सृजन घोटाला हुआ है। काला नाग हैं ये। इनको बिहार से भगाना है। नीतीश-मोदी खज़ाना चोर, गद्दी छोड़। बिहार की जनता जो कहेगी वो हम करेंगे। हमलोग एक जुट होंगे। कर्पूरी ठाकुर, लोहिया जी के सपने को पूरा करेंगे।
लालू यादव की रैली के क्या हैं संकेत?
वरिष्ठ पत्रकार जयशंकर गुप्त ने बीबीसी हिन्दी के लिए लिखा है कि पटना के ऐतिहासिक गांधी मैदान में राष्ट्रीय जनता दल के बैनर तले आज हुई 'भाजपा भगाओ, देश बचाओ' रैली में कितने लोग आए, इसको लेकर विवाद हो सकता है। राजद सुप्रीमो लालू प्रसाद के पूर्व उप मुख्यमंत्री पुत्र तेजस्वी यादव ने कहा कि रैली में 25 लाख से अधिक लोग जुटे, लालू प्रसाद को यह अतिशयोक्ति शायद कुछ कम लगी तो उन्होंने कहा कि रैली में 30 लाख लोगों का जन सैलाब उमड़ा था। दूसरी तरफ, कल तक लालू प्रसाद और कांग्रेस के साथ महागठबंधन चलाते रहे और अभी भाजपा के सहयोग से राजग की साझा सरकार का नेतृत्व कर रहे मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के जनता दल-यू-ने इस महारैली को फ़्लॉप करार दिया है। लेकिन इतना तो सच है कि हाल के वर्षों में पटना और गांधी मैदान में होने वाली रैलियों में यह सफलतम और रिस्पांसिव रैली थी।
पूरा पटना शहर राजद और महागठबंधन के नेताओं-कार्यकर्ताओं, उनके पोस्टर-बैनरों और कट आउटों से अटा पड़ा था। जितने लोग मैदान में जमा थे, उसी अनुपात में लोग गांधी मैदान के चारों तरफ़ सड़कों पर, रेलवे स्टेशन और बस अड्डों के आसपास भी राजद के झंडे डंडों के साथ दिख रहे थे। वह भी ऐसे समय में जबकि आधा बिहार बाढ़ की चपेट में है। यह रैली कहने को तो 'भाजपा भगाओ, देश बचाओ' के नारे पर हुई लेकिन निशाने पर मुख्य रूप से महागठबंधन के 'विश्वासघाती' नीतीश कुमार ही थे। लालू प्रसाद और उनके पुत्रों के साथ ही राजद के तमाम नेताओं और अन्य विपक्षी दलों के नेताओं ने भी 'संघ मुक्त भारत' का नारा देने वाले नीतीश कुमार पर महागठबंधन तोड़कर संघ के शरणागत होने और भाजपा से मिलकर सरकार बना लेने का आरोप लगाया। नीतीश कुमार के महागठबंधन तोड़ने के बाद यह लालू प्रसाद और उनके राजद के साथ ही नीतीश कुमार के साथ नहीं गए जद यू के पूर्व अध्यक्ष, सांसद शरद यादव एवं कांग्रेस के लिए भी बड़ा शक्ति प्रदर्शन था जिसमें ये लोग सफल रहे। इस रैली के आयोजन की घोषणा लालू प्रसाद ने काफी पहले तब की थी जब नीतीश कुमार महागठबंधन की सरकार चला रहे थे। हालांकि अंदरखाने वह लालू प्रसाद को गच्चा देकर भाजपा के साथ नए सिरे से जुगलबंदी की जुगत भिड़ाने में लगे थे। लालू प्रसाद पटना से भाजपा के विरुद्ध राष्ट्रीय स्तर पर महागठबंधन खड़ा करने की कार्ययोजना पर काम कर रहे थे लेकिन नीतीश कुमार ने उसमें फच्चर लगाने की कोशिश की। वे खुद तो भाजपा के साथ गए ही और उन्होंने यह कोशिश भी की कि शरद यादव और उनके साथी भी उनका अनुसरण करें। उन्हें केंद्र सरकार में मंत्री पद के प्रलोभन दिए गए। उनके मना कर देने और नीतीश कुमार के पलट जाने के बाद विपक्ष की धुरी बनने की सोच के तहत महागठबंधन के साथ ही बने रहने के राजनीतिक रुख के साफ हो जाने के बाद कोशिशें इस बात की हुईं कि वह इस रैली में नहीं जा सकें।
कभी उनके सिपहसालार कहे जाते रहे जद यू के महासचिव के सी त्यागी ने दो दिन पहले उन्हें पत्र भेजकर आगाह किया कि राजद की रैली में उनका भाग लेना अनुशासन की लक्ष्मण रेखा को लांघने जैसा होगा। रैली के बाद भी त्यागी ने कहा कि शरद दूसरे खेमे में चले गए हैं। अब जद यू के साथ उनका रिश्ता नहीं रह गया है। हालांकि जद यू से उनका औपचारिक निलंबन अथवा निष्कासन अभी बाकी है। त्यागी ने कहा है कि उनका मामला अनुशासन समिति के हवाले है। लेकिन शरद यादव और उनके साथियों पर इस तरह की घुड़कियों का असर नहीं पड़ा। दो दिन पहले उन्होंने कहा भी कि महागठबंधन की रैली का फैसला काफी पहले हुआ था जिसमें नीतीश कुमार के भी शामिल होने की बात थी। नीतीश पलट गए लेकिन हम पलटनेवाले नहीं क्योंकि हम ही असली जद यू हैं जिसके साथ हमारी अधिकतर प्रदेश इकाइयां हैं। मंच पर उनके साथ राज्यसभा के एक और सदस्य अली अनवर और जद यू के वरिष्ठ नेता, राज्य सरकार में पूर्व मंत्री रमई राम भी थे। मंच से ही शरद यादव ने राष्ट्रीय स्तर पर गैर भाजपाई महागठबंधन खड़ा करने की घोषणा की जिसका समर्थन मंच पर मौजूद विपक्ष के तमाम नेताओं ने भी किया। रैली के आयोजकों के अनुसार दिल्ली के इशारे पर कुछ और दलों और नेताओं को भी इस रैली से विमुख होने के दबाव पड़े। मायावती अथवा उनकी बसपा का एक भी प्रतिनिधि नहीं दिखा। रैली में शामिल होने को लेकर वह लगातार अपना स्टैंड बदलते रहीं। हालांकि, 17 अगस्त को दिल्ली में शरद यादव के साझी विरासत बचाओ सम्मेलन में बसपा के सांसद वीर सिंह मौजूद थे। उस सम्मेलन में कांग्रेस के उपाध्यक्ष राहुल गांधी और माकपा के महासचिव सीताराम येचुरी की मौजूदगी भी थी। इन सभी ने एक स्वर से कहा था कि भाजपा शासन और संघ परिवार की देखरेख में साझी विरासत खतरे में है। इसे बचाने के लिए भाजपा के विरुद्ध राष्ट्रीय स्तर पर महागठबंधन बनाने की बात कही गई थी।
राहुल गांधी ने स्वयं कहा था कि बदली परिस्थतियों में अगर सभी विपक्षी दलों का एक महागठबंधन बन जाए तो भाजपा कहीं दिखेगी नहीं। लेकिन जहां साझी विरासत बचाओ सम्मेलन में 17 दलों के नेता और प्रतिनिधि शामिल हुए वहीं महागठबंधन खड़ा करने की अगली कड़ी के रूप में आयोजित राजद की रैली में केवल 14 दलों के नेता-प्रतिनिधि ही दिखे। राहुल गांधी स्वयं नहीं आए। उन्होंने पटना आने और लालू प्रसाद के साथ मंच साझा करने के बजाय नार्वे की राजधानी ओस्लो की यात्रा को मुनासिब समझा। कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी भी नहीं आ सकीं। कांग्रेस का प्रतिनिधित्व राज्यसभा में विपक्ष के नेता गुलाम नबी आजाद और महासचिव सीपी जोशी ने किया। इस मंच पर सीताराम येचुरी भी नहीं दिखे। माकपा को संभवतः मंच पर ममता बनर्जी की मौजूदगी नागवार गुजरी होगी। लेकिन भाकपा के महासचिव सुधाकर रेड्डी और सचिव डी राजा वहां दिखे। समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष और उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव तथा राष्ट्रीय लोकदल के उपाध्यक्ष जयंत चौधरी पूरी ताकत के साथ दिखे। पड़ोसी राज्य झारखंड से झारखंड मुक्ति मोर्चा के नेता पूर्व मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन के साथ ही एक और पूर्व मुख्यमंत्री झाविमो के बाबूलाल मरांडी भी मौजूद थे। एनसीपी के महासचिव और बिहार से लोकसभा सदस्य तारिक अनवर भी थे। हालांकि, एनसीपी का प्रतिनिधित्व अगर प्रफुल्ल पटेल अथवा शरद पवार या उनके परिवार का कोई सदस्य करता तो रैली में वजन कुछ और बढ़ जाता क्योंकि शरद पवार के राजग से जुड़ने के कयास गाहे बगाहे लगते रहते हैं।
दक्षिण में तमिलनाडु से द्रविड़ मुनेत्र कझगम के लोकसभा सदस्य टी के एस इलेंगोवन और केरल कांग्रेस के प्रतिनिधि आए तो उत्तर पूर्व में असम से एयूडीफ के नेता लोकसभा सदस्य बदरुद्दीन अजमल की मौजूदगी रैली को राष्ट्रीय बना रही थी। ओडिसा में सत्तारूढ़ बीजू जनता दल, दिल्ली से आम आदमी पार्टी के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल और हरियाणा से इंडियन नेशनल लोकदल के किसी प्रतिनिधि की गैर मौजूदगी भी खटक रही थी। संभवतः कांग्रेस की नापंसदगी के कारण उन्हें बुलाया ही नहीं गया था। कुल मिलाकर यह रैली लालू प्रसाद और उनके राजद और राजनीतिक कुनबे का शक्ति प्रदर्शन था जिसमें वह पूरी तरह से सफल रहे। एक बार फिर उन्होंने यह साबित किया कि जोड़ तोड़ के खेल से नीतीश कुमार भले ही सरकार चला रहे हों, बिहार में जनाधार वाले वह अकेले नेता हैं। तमाम तरह के भ्रष्टाचार के आरोपों और जांच मुकदमों के बावजूद वह भाजपा और उसके नेतृत्व में उभर रही सांप्रदायिक ताकतों के विरुद्ध झुकनेवाले नहीं हैं। उन्होंने और उनके पुत्रों ने भी रैली में साफ किया कि मुकदमे और जेल की दीवारें भी सांप्रदायिक ताकतों से लोहा लेने के उनके संकल्प को कमजोर नहीं कर सकतीं। उनके जनाधार और सांप्रदायिकता के विरुद्ध संघर्ष के उनके कमिटमेंट का लोहा मंच पर मौजूद विपक्ष के तमाम नेताओं ने भी एक स्वर से माना।
भाजपा के लिए ख़तरे का संकेत
यह महा रैली नीतीश कुमार और भाजपा गठबंधन सरकार के लिए भी खतरे का संकेत साबित हो सकती है। राष्ट्रीय स्तर पर गैर भाजपा और गैर राजग महागठबंधन ने आकार लेना शुरू हो गया है। इससे इतर बिहार में नीतीश कुमार और भाजपा की राजनीति से नाखुश जद यू और राजग में रालोसपा जैसे घटक दलों के नेताओं, विधायकों के बीच इस महा रैली की सफलता एक नई ताकत का संचार कर सकती है। जद यू के विधायकों का एक बड़ा गुट शरद यादव और लालू प्रसाद के साथ सिर्फ एक आश्वासन भर से जुड़ने को तैयार है कि चुनाव हों अथवा उप चुनाव उन्हें टिकट मिलेगा और उनकी चुनावी जीत सुनिश्चित करने के ईमानदार प्रयास होंगे. इसका एहसास सृजन घोटाले और भयावह बाढ़ की विभीषिका का भी सामना कर रहे नीतीश कुमार और उनके सहयोगी भाजपा-राजग के लोगों को भी है. आश्चर्य नहीं होगा कि महागठबंधन के साथ जुड़ रहे दलों, नेताओं और राजनीतिक ताकतों को इससे विमुख करने के प्रयास के बतौर प्रलोभन और दबाव भी नए सिरे से नजर आने लगें.
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