नई दिल्ली। बीजेपी सांसद और पीएम नरेंद्र मोदी की कैबिनेट में शामिल राज्यमंत्री डॉ. महेंद्र नाथ पाण्डेय को अब उत्तर प्रदेश का नया प्रदेश अध्यक्ष बनाया गया है। महेंद्र नाथ पाण्डेय संगठन में केशव प्रसाद मौर्या की जगह लेंगे। डॉ.महेंद्रनाथ पाण्डेय भारतीय जनता पार्टी के टिकट पर चंदौली से 2014 में लोकसभा सदस्य चुने गए थे। अब दोबारा से वह उत्तर प्रदेश की राजनीति की कमान संभालते दिखेंगे। महेंद्र नाथ पाण्डेय को पीएम नरेंद्र मोदी का करीबी बताया जाता है। आपको बता दें कि महेंद्र नाथ पाण्डेय का संसदीय क्षेत्र पीएम मोदी के संसदीय क्षेत्र से वाराणसी से निकल कर ही बना है। प्रदेश अध्यक्ष के लिए महेन्द्र नाथ पाण्डेय के अलावा जिन नामों पर चर्चा चल रही थी, उनमें संजीव बालियान, स्वतंत्र देव सिंह और अशोक कटारिया भी प्रमुख तौर पर शामिल थे। महेंद्र नाथ पाण्डेय को प्रदेश अध्यक्ष बनाए जाने के पीछे पार्टी के हाथ से ‘ब्राह्मण वोट बैंक’ को साधना तथा उनका पूर्वी यूपी से होना मुख्य वजह माना जा रहा है।
प्रदेश अध्यक्ष बनने के बाद महेंद्रनाथ ने कहा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह ने मुझे पार्टी में बड़ी ज़िम्मेदारी दी है। मैं पार्टी का छोटा सा कार्यकर्ता हूं ये मेरे लिए सम्मान की बात है। यूपी बहुत बड़ा राज्य है, इसलिए मेरी पहली प्राथमिकता होगी पार्टी को और मज़बूत करना। प्रदेश सरकार के कामों के ज़रिए पार्टी को और ज्यादा मज़बूत करना है। मैंने अपने नेतृत्व को कहा है कि मुझे केंद्र सरकार में मंत्री पद से मुक्त किया जा सके, जिसके बाद फ़्री होकर यूपी में पार्टी के लिए काम कर सकूं। पांडे ने कहा कि 2014 के लोकसभा चुनाव और 2017 के विधानसभा चुनाव में जो बहुमत पार्टी को मिला हैं उसको बरकरार रखना है।
पांडेय को यूपी की कमान सौंपने के पीछे क्या है बीजेपी की सोच
बीबीसी हिंदी के लिए समीरात्मज मिश्र ने लिखा है कि केंद्र सरकार में संभावित बदलाव से ठीक पहले उत्तर प्रदेश में पार्टी ने अपना अध्यक्ष बदलकर कई समीकरणों को साधने की कोशिश की है, ख़ासकर जातीय समीकरणों को. केंद्रीय मानव संसाधन राज्य मंत्री महेंद्र नाथ पांडेय को बीजेपी ने उत्तर प्रदेश का पार्टी अध्यक्ष बनाया गया है, जो कि उप मुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य की जगह लेंगे. विधानसभा चुनाव से ठीक पहले बीजेपी ने केशव प्रसाद मौर्य को पार्टी की कमान सौंपी थी. केशव मौर्य ने लक्ष्मीकांत वाजपेयी की जगह ली थी जिनके कार्यकाल में बीजेपी को साल 2014 के लोकसभा चुनाव में उत्तर प्रदेश से 71 सीटें हासिल हुई थीं. केशव मौर्य के नेतृत्व में पार्टी ने उत्तर प्रदेश में 325 सीटों के साथ सरकार बनाई और मौर्य उप मुख्यमंत्री बनाए गए. केशव मौर्य के उप-मुख्यमंत्री बनने के बाद ही ये तो तय था कि वे ज़्यादा दिन तक प्रदेश अध्यक्ष नहीं रहेंगे, लेकिन जिस तरह से पार्टी चौंकाने वाले फ़ैसले करती रही है, महेंद्र नाथ पांडेय का नाम भी प्रदेश अध्यक्ष के लिए कुछ वैसा ही है. जानकारों का कहना है कि उत्तर प्रदेश में योगी सरकार बनते ही जिस तरह से अगड़ी जातियों के कुछ वर्गों में सरकार और पार्टी के प्रति मोहभंग की स्थिति आ रही थी, महेंद्र नाथ पांडे को संगठन की कमान सौंपना, उस स्थिति को रोकने की कोशिश है. बताया जा रहा है कि उत्तर प्रदेश में ब्राह्मण मतदाता योगी सरकार में ख़ुद को उपेक्षित महसूस कर रहा है. गोरखपुर में बीएसपी विधायक विनय शंकर तिवारी के घर पर छापेमारी की घटना हो या फिर रायबरेली में ब्राह्मण समुदाय के पांच लोगों की ज़िंदा जलाकर हुई हत्या हो, ब्राह्मण समुदाय में सरकार के प्रति काफी ग़ुस्सा था. रायबरेली की घटना को लेकर तो सरकार के कई मंत्री तक आमने-सामने आ गए थे. महेंद्र नाथ पांडेय भले ही बहुत ज़्यादा चर्चित नेताओं में न गिने जाते हों लेकिन छात्र जीवन से ही वो आरएसएस के अनुयायी रहे हैं, संगठन और सरकार दोनों में उनका अच्छा अनुभव है और सबसे बड़ी बात कि व्यवहार कुशल हैं. महेंद्र नाथ पांडेय को प्रदेश अध्यक्ष बनाए जाने के पीछे एक तर्क ये भी दिया जा रहा है कि उत्तर प्रदेश में बीजेपी के बड़े नेता कलराज मिश्र हो सकता है कि अगले कुछ दिनों में केंद्र सरकार में होने वाले बदलाव में हटाए जाएं, क्योंकि वो 75 साल की उम्र पूरी कर चुके हैं। ऐसी स्थिति में डैमेज कंट्रोल न करना पड़े, पार्टी ने महेंद्र नाथ पांडेय को प्रदेश अध्यक्ष बनाकर वो काम पहले ही कर दिया है. वरिष्ठ पत्रकार सुनीता ऐरन कहती हैं, "कलराज मिश्र फ़िलहाल यूपी बीजेपी में अकेले बड़े ब्राह्मण नेता माने जाते हैं. हालांकि उन्हें मंत्रिमंडल में कोई ख़ास जगह नहीं दी गई है, फिर भी यदि उन्हें मंत्रिमंडल से हटाया गया तो इसका संदेश ठीक नहीं जाएगा, ये सरकार को पता है. ख़ासकर तब जबकि ब्राह्मण वर्ग मौजूदा सरकार की कार्यप्रणाली से ख़ुद को बहुत ज़्यादा संतुष्ट नहीं पा रहा है." महेंद्र नाथ पांडेय ग़ाज़ीपुर के मूल निवासी हैं और इस समय चंदौली से सांसद हैं. उनकी शिक्षा-दीक्षा बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय में हुई है और बीजेपी के पूर्वांचल के अहम नेताओं में उनकी गिनती होती है. पार्टी ने जातीय समीकरण साधने की कोशिश ज़रूर की है, लेकिन जानकारों का कहना है कि इससे क्षेत्रीय समीकरण बिगड़ते भी नज़र आ रहे हैं. बकौल पत्रकार योगेश मिश्र, "मुख्यमंत्री और प्रदेश अध्यक्ष दोनों ही पूर्वी उत्तर प्रदेश से हैं. वाराणसी से प्रधानमंत्री सांसद हैं, राजनाथ सिंह भी पूर्वांचल से हैं. ऐसे में पश्चिमी उत्तर प्रदेश के नेताओं में नाराज़गी स्वाभाविक है और पार्टी को इसका नुक़सान भी उठाना पड़ सकता है." बहरहाल, जानकारों का कहना है कि पार्टी ने फ़िलहाल क़रीब 12 प्रतिशत ब्राह्मण मतों के साथ कुल क़रीब 22-23 प्रतिश अगड़ी जातियों पर फ़ोकस कर रही है. साल 2019 आते-आते दूसरी जातियों को साधने की कोई अलग रणनीति तैयार कर लेगी. रही बात क्षेत्रीय संतुलन की, तो उसे साधने के अभी कई मौक़े हैं.
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