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नयी दिल्ली। उच्चतम न्यायालय ने वर्ष 2008 में मालेगांव में हुए बम विस्फोट मामले में में कथित भूमिका को लेकर करीब नौ साल से जेल में बंद लेफ्टिनेंट कर्नल श्रीकांत प्रसाद पुरोहित को आज जमानत दे दी. शीर्ष अदालत ने कहा कि अलग अलग जांच एजेंसियों द्वारा दायर आरोपपत्र में विरोधाभास हैं. न्यायालय ने कहा कि वह उन्हें सिर्फ इसलिए राहत से इंकार नहीं कर सकते कि समुदाय की भावनाएं उनके खिलाफ हैं. उत्तरी महाराष्ट्र के नासिक जिले में स्थित साम्प्रदायिक रुप से संवेदनशील शहर मालेगांव में 29 सितंबर, 2008 को हुए बम विस्फोट में छह लोग मारे गये थे. शीर्ष अदालत ने कहा कि आतंकवाद रोधी दस्ते (एटीएस), मुंबई और राष्ट्रीय जांच एजेंसी (एनआईए) द्वारा दायर आरोपपत्र में महत्वपूर्ण विरोधाभास हैं जिनकी सुनवाई के समय जांच की जानी है और इसमें से किसी एक पक्ष को अपनी मर्जी से उठाया नहीं जा सकता. न्यायमूर्ति आर. के. अग्रवाल और न्यायमूर्ति ए. एम. सप्रे की पीठ ने एटीएस मुंबई और एनआईए द्वारा दायर आरोपपत्रों में अंतर पर संज्ञान लेते हुए कहा कि पुरोहित की जमानत याचिका पर विचार के लिए नयी बातें सामने आई हैं क्योंकि संबंधित समय में वह भारतीय सेना के खुफिया अधिकारी थे. पीठ ने कहा कि पुरोहित ने इस आधार पर साजिश का दावा खारिज किया कि उन्होंने अपने वरिष्ठ अधिकारियों को दक्षिणपंथी हिन्दू संगठन अभिनव भारत में उनके द्वारा बैठक में शामिल होने के खुफिया इनपुट और एक सह आरोपी के आवास पर आरडीएक्स विस्फोटक सामग्री रखने में एटीएस अधिकारियों की कथित भूमिका के बारे में बताया था. शीर्ष अदालत ने बंबई उच्च न्यायालय के उस फैसले को खारिज करते हुए यह फैसला सुनाया जिसमें उच्च न्यायालय ने पुरोहित को जमानत देने से इनकार कर दिया था. उच्चतम न्यायालय ने कहा कि उसने पुरोहित को कुछ शर्तों के साथ जमानत दी है. वह आठ साल और आठ महीने जेल में बंद रहे. पुरोहित ने उन्हें जमानत नहीं देने के बंबई उच्च न्यायालय के फैसले को उच्चतम न्यायालय में चुनौती दी थी. विशेष मकोका अदालत ने पहले फैसला दिया था कि एटीएस ने साध्वी प्रज्ञा ठाकुर, पुरोहित और नौ अन्य लोगों के खिलाफ गलत तरीके से मकोका कानून लगाया है. चार हजार पन्नों के आरोपपत्र में यह आरोप लगाया गया है कि मालेगांव को मुसलमान बहुल क्षेत्र होने के कारण विस्फोट के लिए चुना गया था. इसमें साजिश करने वालों के रुप में प्रज्ञा ठाकुर, पुरोहित और सह-आरोपी स्वामी दयानंद पांडेय का नाम था. हालांकि प्रज्ञा ठाकुर को एनआईए ने पिछले वर्ष क्लीनचिट दे दी.
नयी दिल्ली। उच्चतम न्यायालय ने वर्ष 2008 में मालेगांव में हुए बम विस्फोट मामले में में कथित भूमिका को लेकर करीब नौ साल से जेल में बंद लेफ्टिनेंट कर्नल श्रीकांत प्रसाद पुरोहित को आज जमानत दे दी. शीर्ष अदालत ने कहा कि अलग अलग जांच एजेंसियों द्वारा दायर आरोपपत्र में विरोधाभास हैं. न्यायालय ने कहा कि वह उन्हें सिर्फ इसलिए राहत से इंकार नहीं कर सकते कि समुदाय की भावनाएं उनके खिलाफ हैं. उत्तरी महाराष्ट्र के नासिक जिले में स्थित साम्प्रदायिक रुप से संवेदनशील शहर मालेगांव में 29 सितंबर, 2008 को हुए बम विस्फोट में छह लोग मारे गये थे. शीर्ष अदालत ने कहा कि आतंकवाद रोधी दस्ते (एटीएस), मुंबई और राष्ट्रीय जांच एजेंसी (एनआईए) द्वारा दायर आरोपपत्र में महत्वपूर्ण विरोधाभास हैं जिनकी सुनवाई के समय जांच की जानी है और इसमें से किसी एक पक्ष को अपनी मर्जी से उठाया नहीं जा सकता. न्यायमूर्ति आर. के. अग्रवाल और न्यायमूर्ति ए. एम. सप्रे की पीठ ने एटीएस मुंबई और एनआईए द्वारा दायर आरोपपत्रों में अंतर पर संज्ञान लेते हुए कहा कि पुरोहित की जमानत याचिका पर विचार के लिए नयी बातें सामने आई हैं क्योंकि संबंधित समय में वह भारतीय सेना के खुफिया अधिकारी थे. पीठ ने कहा कि पुरोहित ने इस आधार पर साजिश का दावा खारिज किया कि उन्होंने अपने वरिष्ठ अधिकारियों को दक्षिणपंथी हिन्दू संगठन अभिनव भारत में उनके द्वारा बैठक में शामिल होने के खुफिया इनपुट और एक सह आरोपी के आवास पर आरडीएक्स विस्फोटक सामग्री रखने में एटीएस अधिकारियों की कथित भूमिका के बारे में बताया था. शीर्ष अदालत ने बंबई उच्च न्यायालय के उस फैसले को खारिज करते हुए यह फैसला सुनाया जिसमें उच्च न्यायालय ने पुरोहित को जमानत देने से इनकार कर दिया था. उच्चतम न्यायालय ने कहा कि उसने पुरोहित को कुछ शर्तों के साथ जमानत दी है. वह आठ साल और आठ महीने जेल में बंद रहे. पुरोहित ने उन्हें जमानत नहीं देने के बंबई उच्च न्यायालय के फैसले को उच्चतम न्यायालय में चुनौती दी थी. विशेष मकोका अदालत ने पहले फैसला दिया था कि एटीएस ने साध्वी प्रज्ञा ठाकुर, पुरोहित और नौ अन्य लोगों के खिलाफ गलत तरीके से मकोका कानून लगाया है. चार हजार पन्नों के आरोपपत्र में यह आरोप लगाया गया है कि मालेगांव को मुसलमान बहुल क्षेत्र होने के कारण विस्फोट के लिए चुना गया था. इसमें साजिश करने वालों के रुप में प्रज्ञा ठाकुर, पुरोहित और सह-आरोपी स्वामी दयानंद पांडेय का नाम था. हालांकि प्रज्ञा ठाकुर को एनआईए ने पिछले वर्ष क्लीनचिट दे दी.
आतंकवाद पर नरमी बरत रही है केंद्र सरकारः ओवैसी
आल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुसलमीन (एआईएमआईएम) प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी ने सोमवार को सर्वोच्च न्यायालय द्वारा पूर्व लेफ्टिनेंट कर्नल प्रसाद श्रीकांत पुरोहित को जमानत दिए जाने पर मोदी सरकार पर आतंकवाद के मामलों पर नरम होने का आरोप लगाया। पुरोहित 2008 मालेगांव विस्फोट मामले में मुख्य आरोपी हैं। ओवैसी ने कहा कि पुरोहित जैसे एक आतंकवाद के आरोपी का महिमामंडन नहीं किया जाना चाहिए, जैसा कि कुछ लोग करने के प्रयास में जुटे हुए हैं। ओवैसी ने कहा, 'प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सरकार के सत्ता में आने के बाद से इस तरह के मामलों का (जिनमें कथित हिंदुत्व आतंकवादी शामिल हों) एक पैटर्न दिख रहा है। सरकार जमानत और रिहाई के खिलाफ अपील नहीं कर रही है। क्या सरकार इस तरह के मामलों में नरमी बरत रही है?' उन्होंने कहा, 'लोक अभियोजक रोहिणी सालियान ने आरोप लगाया था कि उन पर एनआईए (राष्ट्रीय जांच एजेंसी) के अधिकारी मामलों को कमजोर करने का दबाव बना रहे हैं।' महाराष्ट्र के नासिक जिले के मालेगांव में विस्फोट में सात लोगों की 29 सितंबर 2008 को मौत हो गई थी। जांच एजेंसी ने विस्फोट के लिए अभिनव भारत पर आरोप लगाया था। 25 अप्रैल को बंबई उच्च न्यायालय ने मामले में साध्वी प्रज्ञा सिंह ठाकुर को जमानत दे दी थी लेकिन पुरोहित को जमानत नहीं मिली थी। इसके खिलाफ सवोर्च्च न्यायालय में अपील हुई जहां पुरोहित को जमानत मिल गई। कांग्रेस नेता दिग्विजय सिंह ने कहा कि पुरोहित की जमानत की संभावना लग ही रही थी क्योंकि 'मोदी सरकार आरएसएस से जुड़े सभी आरोपियों की रक्षा कर रही है।' कांग्रेस नेता ने मामले में एनआईए की निष्पक्षता पर भी सवाल उठाया। उन्होंने कहा, 'एनआईए प्रमुख को इनकी रिहाई सुनिश्चित करने के लिए दो सेवा विस्तार दिए गए। उन्हें अब सेवानिवृत्ति के बाद एक बार फिर से बेहतर पद से नवाजा जा सकता है।'
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