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राज्यसभा चुनाव को लेकर अहमद पटेल की सीट पर कैसे फंसा पेंच, क्यों रुकी काउंटिंग?

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नई दिल्ली (जावेद अख़्तर )। गुजरात राज्यसभा चुनाव का रण राजधानी दिल्ली पहुंच गया है. कांग्रेस ने चुनाव आयोग से शिकायत की है कि उनकी पार्टी के दो विधायकों ने नियमों का उल्लंघन करते हुए वोटिंग की, इसलिए उन दोनों के वोट रद्द होने चाहिए. वहीं, बीजेपी ने इसे कांग्रेस की बौखलाहट करार दिया है. इस सबके बीच बड़ी बात ये है कि दोनों पार्टियों ने इस मसले पर अपनी पूरी ताकत झोंक दी है. कांग्रेस के दो नेताओं ने दिल्ली में चुनाव आयोग से शिकायत की तो बीजेपी की तरफ से 6 केंद्रीय मंत्रियों ने आयोग पहुंचकर कांग्रेस की मांग को दरकिनार करने की अपील की. दोनों पार्टियों में नजर आ रही इस बौखलाहट के पीछे वोटों का गणित है. दरअसल, गुजरात में तीन राज्यसभा सीटों के लिए मंगलवार को वोटिंग हुई. दो सीटों पर बीजेपी नेता अमित शाह और स्मृति ईरानी की जीत लगभग तय मानी जा रही है. मगर तीसरी सीट को लेकर समीकरण बेहद पेचीदा हैं. इस सीट पर कांग्रेस के वरिष्ठ नेता अहमद पटेल और बीजेपी नेता बलवंत राजपूत के बीच मुकाबला है. अहमद पटेल को जीतने के लिए 45 वोट की जरूरत है. फिलहाल उन्हें अपनी पार्टी के 44 विधायकों का ही समर्थन प्राप्त है. कांग्रेस महासचिव और गुजरात प्रभारी अशोक गहलोत ने दावा किया कि अहमद पटेल को 45 वोट मिलेंगे. गहलोत का दावा है कि 43 कांग्रेसी विधायकों, एक जेडीयू और एक एनसीपी के विधायक ने अहमद पटेल को वोट दिया. यानी अहमद पटेल को 45 वोट मिलने का आंकड़ा पेश किया जा रहा है. कांग्रेस जिन 2 विधायकों के वोटों को लेकर विरोध कर रही है, वो पहले ही पार्टी से बगावत कर चुके हैं. यानी अहमद पटेल को उनका समर्थन नहीं मिलेगा, ये पहले से ही साफ था. बावजूद इसके कांग्रेस ने चुनाव आयोग से इन दो विधायकों के वोट रद्द करने की शिकायत इसलिए की है, क्योंकि अगर ऐसा हो जाता है, तो अहमद पटेल की जीत और सुनिश्चित हो जाएगी. अगर दो वोट रद्द होते हैं, तो जीत का आंकड़ा 44 हो सकता है. यानी पटेल की जीत की राह और आसान हो जाएगी. दरअसल, जेडीयू विधायक के वोट को लेकर कायम संशय भी इस खींचतान की एक वजह है. जेडीयू के वरिष्ठ नेता केसी त्यागी ने दावा किया है कि उनके विधायक ने बीजेपी उम्मीदवार को वोट दिया है. हालांकि, जेडीयू विधायक छोटू वसावा का दावा अलग है. वसावा ने आजतक को बताया है कि उन्होंने अहमद पटेल को अपना वोट दिया है. बीजेपी इसीलिए हर मुमकिन कोशिश कर रही है कि दो वोट रद्द न हों. बीजेपी को ये भी उम्मीद है कि जेडीयू विधायक का वोट उनके उम्मीदवार को मिला है. फिलहाल ये पूरा सियासी ड्रामा चुनाव आयोग तक पहुंच गया है. कांग्रेस का दावा है कि हरियाणा में इस तरीके का एक मामला सामने आया था, जब वोट रद्द किया गया था. इस पूरे सियासी ड्रामे के चलते अब तक वोटों की काउंटिंग रुकी हुई है. अब सभी को चुनाव आयोग के फैसले का इंतजार है कि कब तक काउंटिंग शुरू की जाती है. साभार आजतक
भाजपा के लिए नाक का सवाल बना यह चुनाव 
गुजरात में कांग्रेस और सत्तारूढ़ भाजपा के बीच घमासान की वजह बना राज्यसभा की तीन सीटों का चुनाव अब अंतिम दौर में है। हफ्तों तक कर्नाटक के रिजॉर्ट में 'सुरक्षित' रहने के बाद वापस अहमदाबाद पहुंचे कांग्रेस के 44 विधायकों ने विधानसभा पहुंचकर राज्य से राज्यसभा की तीसरी सीट के लिए मतदान कर दिया है। तीन सीटों के लिए हो रहे चुनाव में भाजपा अध्यक्ष अमित शाह और स्मृति ईरानी का जीतना तो तय है लेकिन तीसरी सीट पर कांटे की टक्कर होने से मुकाबला रोचक हो गया है। इस सीट के लिए मुकाबला सोनिया गांधी के राजनीतिक सचिव और कांग्रेस के ही पूर्व विधायक रहे राजपूत के बीच है जो कुछ दिन पहले ही पार्टी छोड़कर भाजपा में शामिल हुए हैं। भाजपा ने भी इस सीट को नाक का प्रश्न बना लिया है तो कांग्रेस के लिए तो ये जीवन मरण का सवाल है। अगर पटेल इस सीट पर हारते हैं तो कांग्रेस के लिए ये दोहरा झटका होगा सीट तो उनके खाते से जाएगी ही इसका असर कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी की छवि पर भी पड़ेगा, क्योंकि पटेल उनके सबसे करीबी नेता माने जाते हैं। यही कारण है कि कांग्रेस को पटखनी देने के लिए भाजपा ने सारे घोड़े खोल दिए हैं।
गुजरात में कांग्रेस से भाजपा को मिल रही मजबूत टक्कर 
गुजरात को लेकर भाजपा की बेचैनी की बड़ी वजह वहां लगातार होती कांग्रेस की मजबूत स्थिति भी है। पिछले निकाय और पंचायत चुनावों में कांग्रेस ने वहां अच्छा प्रदर्शन किया है जिसने भाजपा की बेचैनी बढ़ा दी है। भाजपा शासित बाकी राज्यों के मुकाबले गुजरात ही एक ऐसा प्रदेश है जहां कांग्रेस मजबूत और भाजपा को टक्कर देने की स्थिति में है। अगले साल यहां विधानसभा चुनाव भी होने हैं, ऐसे में भाजपा यहां कांग्रेस को कोई मौका नहीं देना चाहती, जिससे राज्यों के वोटरों में कांग्रेस को लेकर कोई संदेश जाए। संघ को भी लगता है कि विधानसभा चुनावों में कांग्रेस यहां भाजपा को कड़ी टक्कर देगी। गुजरात में दो दशक से लगातार भाजपा की ही सरकार है। ऐसे में पार्टी को इस बार सत्ता विरोधी लहर का भी खतरा सता रहा है। नरेन्द्र मोदी जब गुजरात के मुख्यमंत्री थे उस दौरान वह अपनी अलग रणनीति से सत्ता विरोधी लहर की हवा मंद करते रहते थे। साल 2013 के विधानसभा चुनावों में भी उन्होंने 100 से ज्यादा मौजूदा विधायकों के टिकट काटकर सत्ता विरोधी लहर की हवा निकाल दी थी। लेकिन वर्तमान में प्रदेश में उनके जैसा कुशल नेतृत्व नहीं है। यही कारण है कि पिछले तीन साल में पार्टी दो मुख्यमंत्री बदल चुकी है। हालांकि खतरा अभी भी बना हुआ है।
पटेल आंदोलन और ऊना मुद्दा बना भाजपा का सिरदर्द 
भाजपा के सबसे मजबूत गढ़ गुजरात में उसके लिए सबसे बड़ा सिरदर्द है पटेल आंदोलन, जिसके मुखिया हार्दिक पटेल ने पार्टी की रातों की नींद उड़ा रखी है। हालांकि हाइकोर्ट के आदेशों के चलते फिलहाल हार्दिक राज्य से बाहर हैं लेकिन ये तय है कि चुनावों से पहले वह भाजपा की मुश्किल बढ़ाने के लिए कोई चाल जरूर चलेंगे। गुजरात में पटेल ही उसका मजबूत स्तंभ हुआ करते थे उन्हीं में अब आरक्षण के मुद्दे पर हार्दिक पटेल ने सेंध लगा दी है। इसके अलावा पिछले साल ऊना में दलितों की पिटाई का मुद्दा भी भाजपा के गले की हड्डी बन सकता है। पार्टी लगातार उसके डेमेज कंट्रोल का प्रयास कर रही है। भाजपा और उसके शीर्ष नेतृत्व के लिए गुजरात की सबसे बड़ी टेंशन ये है कि यह प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और भाजपा अध्यक्ष अमित शाह का गृह राज्य है। यहां मिली किसी भी मात का खामियाजा पार्टी को पूरे देश में उठाना पड़ सकता है। अगर भाजपा यहां अगले चुनावों में पुराना प्रदर्शन दोहराने में असफल रही तो विपक्ष इसे मुद्दा बनाकर पूरे देश में उसके खिलाफ माहौल खड़ा कर सकता है। वहीं गुजरात में कांग्रेस के सामने भी चुनौतीपूर्ण स्थिति है। जिस तरह पार्टी यहां अपने विधायकों और शीर्ष नेताओं को एक एक कर खो रही है वो उसके चुनावी अभियान पर सीधा असर डालेगा। इससे उसकी रणनीति भी कुंद होगी और संभावनाएं भी। वहीं भाजपा अगर कांग्रेस को गुजरात में भी मात देती है तो इसका असर भी पूरे देश पर पड़ेगा। इसके बाद भाजपा के सामने कांग्रेस बिल्कुल असहाय ‌स्थिति में खड़ी हो जाएगी। गुजरात में हारने पर कांग्रेस के मनोबल पर भी असर पड़ना तय है। जिसका सीधा फायदा भाजपा को 2019 के लोकसभा चुनावों में मिलेगा। साभार अमर उजाला
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