नई दिल्ली। कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी ने बुधवार को कहा कि देश के सेकुलर और उदारवादी मूल्यों के लिए खतरा पैदा हो गया है तथा ऐसे में हमें एक ऐसे भारत के लिए लड़ना है जहां मानवीय स्वतंत्रता और न्यायसंगत व्यवस्था कायम रहे तथा हम इसकी लड़ाई लड़ेंगे। 1942 के भारत छोड़ो आंदोलन की 75वीं वर्षगांठ के मौके पर बुधवार लोकसभा में विशेष चर्चा में हिस्सा लेते हुए सोनिया ने कहा, ऐसा लगता है कि देश पर संकीर्ण मानसिकता वाली, विभाजनकारी और सांप्रदायिक सोच वाली शक्तियां हावी हो रही हैं। सेकुलर और उदारवादी मूल्यों के लिए खतरा पैदा हो गया है। कई बार कानून के राज पर गैर कानूनी शक्तियां हावी होती हैं। सोनिया ने कहा कि सवाल उठ रहे हैं कि क्या अंधकार की ताकतें फिर सिर उठा रही हैं, क्या लोकतंत्र को खत्म करने के प्रयास हो रहे है। उन्होंने कहा, हमें अपनी आजादी को सुरक्षित रखना है। हमें एक ऐसे भारत के लिए लड़ना है जिसमें इंसानी आजादी, स्वेच्छा और न्यायसंगत व्यवस्था हो। हम इसकी लड़ाई लड़ेंगे।
कांग्रेस अध्यक्ष ने कहा, महात्मा गांधी ने न्यायसंगत और मानवीय स्वतंत्रता वाली व्यवस्था की बात की थी। हमें इन्हीं मूल्यों के साथ आगे बढ़ना है। उन्होंने कहा कि आजादी की लड़ाई में जवाहर लाल नेहरू सबसे लंबे समय तक जेल में रहे और कई कार्यतर्ता तो बीमारी की वजह से जेल से जिंदा बाहर नहीं आ सके। उन्होंने यह भी कहा कि उस समय के कुछ तत्वों ने भारत छोड़ो आंदोलन का विरोध किया था और ऐसे तत्वों का आजादी के आंदोलन में कोई योगदान नहीं है। कांग्रेस अध्यक्ष ने कहा कि 75 साल पहले आज ही के दिन भारत छोड़ो आंदोलन शुरू हुआ था और उसी की याद ताजा करने के लिए हम यहां आज खड़े हैं । इस सदन में मैं भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की महिला कार्यकर्ताओं के बलिदान को याद कर रही हूं । 1942 के आंदोलन की शुरुआत महात्मा गांधी के आह्वान पर हुई थी । पूरे देश ने इसे पूरे संकल्प के साथ स्वीकार किया और इसके परिणामस्वरूप अंग्रेजी हुकूमत को देश छोड़ने पर मजबूर होना पड़ा ।
कानून तोड़ना आज सबकी आदत में शामिल हो गया हैः पीएम मोदी
बुधवार को भारत छोड़ो आंदोलन के 75 वर्ष पूरे हो गए। इस मौके पर सदन के दोनों सदनों में चर्चा हुई और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इस आंदोलन पर लोकसभा में भाषण दिया। आपको बता दें कि नौ अगस्त 1942 को महात्मा गांधी ने भारत छोड़ो आंदोलन की शुरुआत की थी। पीएम मोदी ने इस दौरान इस बात का जिक्र भी किया कि आज देश के लोगों में कानून तोड़्ना एक स्वभाव की तरह बन गया है। उन्होंने कहा कि कोई अगर रेड लाइट क्रॉस कर रहा है तो उसे लगता ही नहीं है कि वह कानून तोड़ रहा है। लोकसभा में पीएम मोदी ने इस आंदोलन पर बोलते हुए कहा कि भारत छोड़ो आंदोलन ने नए तरह के नेतृत्व की शुरुआत की। लोगों ने इस आंदोलन में महात्मा गांधी को पूरा समर्थन किया। पीएम मोदी ने इस दौरान महात्मा गांधी का जिक्र किया और कहा कि आज की युवा पीढ़ी इस आंदोलन जैसे एतिहासिक घटनाओं के बारे में जाने यह काफी अहम है। पीएम मोदी ने कहा कि इस आंदोलन के जरिए महात्मा गांधी ने अंग्रेजों को साफ कर दिया था कि हम आजादी से कम किसी भी बात पर संतुष्ट नहीं होंगे करेंगे या मरेंगे। पीएम मोदी ने इस मौके पर कहा कि आंदोलन के समय महात्मा गांधी ने करेंगे या मरेंगे का जो नारा दिया था वह सभी के लिए एक जज्बे से कम नहीं था।
उन्होंने कहा कि उस समय देश मुक्ति के लिए छटपटा रहा था, किसी की भावनाओं में अंतर नहीं था। देश जब उठ खड़ा होता है तो पांच वर्ष के अंदर बेड़ियां चूर चूर हो जाती हैं और मां भारती आजाद हो जाती हैं। पीएम मोदी ने इस आंदोलन को भारत की प्रबल इच्छाशक्ति का नतीजा बताया। उन्होंने कहा कि जब हम निर्धारित लक्ष्य को हासिल करने में लग जाते हैं तो कुछ भी कर सकते हैं। पीएम मोदी के मुताबिक आज हमारे पास गांधी का नेतृत्व नहीं लेकिन सवा सौ करोड़ लोगों के विश्वास के साथ यहां पहुंचे लोगों के लिए कुछ भी असंभव नहीं है। उन्होंने कहा कि आज राजनीति से ऊपर है राष्ट्रनीति। पीएम मोदी ने इस आंदोलन के 75 वर्ष पूरे होने पर गरीबी, कुपोषण, अशिक्षा आज की चुनौतियां करार दिया। साभार हिन्दुस्तान
भारत छोड़ो आंदोलन में कहां था राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ?
भारत छोड़ो आंदोलन के 75 साल पूरे होने पर बुधवार को संसद के दोनों सदनों का विशेष सत्र बुलाया गया. ब्रिटिश राज से आज़ादी की लड़ाई में इस आंदोलन की बड़ी भूमिका थी. महात्मा गांधी और कांग्रेस पार्टी इस आंदोलन के सूत्रधार थे. एनडीए सरकार ने इस पर विशेष सत्र बुलाया तो क्या इसके क्या राजनीतिक मायने हो सकते हैं, इस पर बीबीसी हिंदी के रेडियो एडिटर राजेश जोशी ने हैदराबाद यूनिवर्सिटी के प्रोफ़ेसर ज्योतिर्मय शर्मा से बात की.
ज्योतिर्मय शर्मा कहते हैं कि भले ही मौजूदा दौर की कोई राजनीतिक पार्टी क्विट इंडिया मूवमेंट का हिस्सा रही हो या न रही हो, उसकी विरासत तो सभी ने गंवा दी है. जहां तक संघ परिवार का सवाल है, आज़ादी की लड़ाई में उनकी कोई बड़ी भूमिका नहीं थी. राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने 1925 से हमेशा ये माना कि स्वतंत्रता की लड़ाई केवल एक राजनीतिक लड़ाई है. और राजनीति से संघ को अभी हाल में नहीं, बल्कि क़रीब-क़रीब साल 2000 तक राजनीति से चिढ़ रही थी. राजनीति को संघ ने तुच्छ माना है, निम्न माना है. उन्होंने ये माना है कि जब तक समाज का और समाज में रहने वाले लोगों का हिंदू संस्कृति के माध्यम से उद्धार नहीं हो, तब तक आज़ादी केवल राजनीतिक आज़ादी बनकर रह जाएगी. फ़ासले तो सब जगह है. जिसको हम आधिकारिक राष्ट्रवाद कहते हैं, जो 1947 में आकर एक तरह से हमारा राष्ट्रवाद बन गया. उसमें भी बड़े फ़ासले हैं. उस राजनीतिक लड़ाई में दलित कहां हैं, आदिवासी कहां है, महिलाएं कहां हैं? गांधी के आंदोलन में महिलाओं का योगदान था पर महिलाओं की सशक्त आवाज़ तो उस राजनीतिक राष्ट्रवाद में भी नहीं थी. इस लिहाज से ये फ़ासले वाली बात अलग बात है.
हम आज राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की बात इसलिए कर रहे हैं कि आज की जो युवा पीढ़ी है और जिस तरह से प्रौपेगैंडा हो रहा है, वो सोचते हैं कि इस देश का निर्माण या तो राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के द्वारा हुआ है या फिर राष्ट्र ही पैदा हुआ है 2014 से. इतिहास का सत्य आजकल केवल संघ परिवार के साथ है. ऐसा प्रॉपेगैंडा चल रहा है. गोरी और गजनी से इतिहास शुरू करने वाले पाकिस्तान की कई ऐसी बेवकूफ़ियां हैं जिनकी हम यहां हिंदुस्तान में नक़ल कर रहे हैं. आज का नौजवान क्या चाहता है. हमारा शिक्षा का स्तर गिर रहा है. स्वास्थ्य सेवाओं का स्तर गिर रहा है. मानव विकास के हर पैमाने पर गिरावट हो रही है. इतिहास किसका ज़्यादा सही था, किसका ज़्यादा ग़लत था, उसमें हम पड़े हुए हैं. इससे देश का कुछ होने वाला नहीं है. लोग इन बातों में आ जाते हैं, ये बड़े दुख की बात है. उनका मानना था कि राजनीति से कुछ नहीं हो सकता है. आज से आठ या 10 साल पहले सुदर्शन जी राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक थे और वाजपेयी की सरकार थी, तब उन्होंने एक भाषण में महाभारत के एक श्लोक के हवाले से कहा था कि राजनीति तो वेश्या की तरह है. एक ही आज़ादी तो बची है आज कल देश में, वो गाली देने की है और बाकी हमारी सिविल लिबर्टीज़ पर चोट हो रही है.
जहां तक किसी विचार को अपनाने की बात है, अच्छे विचार अपनाने में दिक़्क़त नहीं है. लेकिन 'अपना बताना' जो है, वो ज़मीन हथियाने जैसा है. आपने कहीं जाकर अपना खेमा डंडे के बल पर गाड़ दिया. दोनों चीज़ें अलग हैं. सरदार पटेल, भगत सिंह और आंबेडकर किसके हैं. ये जो प्रात:स्मरणीय शब्द है वो गोलवलकर ने गांधी के लिए इस्तेमाल किया था. 1948 के बाद. उनका एक निबंध का शीर्षक है प्रात:स्मरणीय गांधी जी. तो ये अपना बताने की परंपरा आज कल की नहीं है, ये बहुत पुरानी है. साभार बीबीसी
(समाचारों व विज्ञापनों के प्रकाशन के लिए फोन- 8922002003 (राजीव रंजन तिवारी), ईमेल-contact@newsforall.in पर संपर्क करें)
0 comments:
Post a Comment
आपकी प्रतिक्रियाएँ क्रांति की पहल हैं, इसलिए अपनी प्रतिक्रियाएँ ज़रूर व्यक्त करें।