नई दिल्ली। राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने कहा है कि भारत की आत्मा, बहुलवाद और सहिष्णुता में बसती है। भारत सिर्फ एक भौगोलिक सत्ता नहीं है। इसमें विचार, दर्शन, वौद्धिकता, शिल्प, नवान्वेषण और अनुभव का इतिहास है। संस्कृति, पंथ और भाषा की विविधता भारत को विशेष बनाती है। राष्ट्रपति के पद से पद मुक्त होने की पूर्व संध्या पर राष्ट्र को संबोधित करते हुए प्रणब मुखर्जी ने देश में बढ़ती हिंसा पर चिंता जताई। उन्होंने कहा कि सहदयता और समानुभूति की क्षमता हमारी सभ्यता की सच्ची नींव है। आसपास होने वाली हिंसा का जिक्र करते हुए उन्होेने कहा हमें जन संवाद को शारीरिक और मौखिक सभी तरह की हिंसा से मुक्त करना होगा।
प्रणब मुखर्जी ने कहा कि एक अहिंसक समाज ही लोकतांत्रिक प्रक्रिया में लोगों के सभी वर्गो विशेषकर पिछड़ों और वंचितों की भागीदारी सुनिश्चित कर सकता है। हमें एक सहानुभूतिपूर्ण और जिम्मेदार समाज के निर्माण के लिए अंहिसा की शक्ति को पुनर्जागृत करना होगा। राष्ट्रपति के तौर पर अपने आखिरी संदेश में प्रणब मुखर्जी ने राष्ट्रपति के तौर पर किए कार्यो का भी जिक्र किया। अपनी उम्र की तरफ इशारा करते हुए प्रणब मुखर्जी ने कहा कि जैसे जैसे उम्र बढ़ती है, उसकी उपदेश देने की प्रवृति बढती जाती है। पर उनके पास कोई उपदेश नहीं है। पचास वर्षो के सार्वजनिक जीवन के दौरान भारत का संविधान उनका पवित्र ग्रंथ रहा। संसद उनका मंदिर और हमेशा देश के लोगों की सेवा करने की अभिलाषा रही है। राष्ट्रपति के तौर पर भी इसे निभाया है। नव निर्वाचित राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद को बधाई देते हुए उन्होंने कहा कि वह भावी राष्ट्रपति को बधाई देते हैं। उनका हार्दिक स्वागत करता हूं और उन्हें आने वाले वर्षो में सफलता और खुशहाली की शुभकामनाएं देता हूं।
- Blogger Comments
- Facebook Comments
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
0 comments:
Post a Comment
आपकी प्रतिक्रियाएँ क्रांति की पहल हैं, इसलिए अपनी प्रतिक्रियाएँ ज़रूर व्यक्त करें।