नई दिल्ली/लखनऊ। यूपी विधानसभा में करारी शिकस्त के महीनों बाद मंगलवार को ऐसा पहली बार हुआ कि मायावती खबरों में बनीं। मंगलवार को मायावती ने राज्यसभा की चलती कार्यवाही के बीच इस्तीफा देने की घोषणा कर दी। मायावती ने आरोप लगाया कि उन्हें दलितों पर अत्याचार के मुद्दे पर बोलने नहीं दिया जा रहा है। मायावती आक्रामक भाव-भंगिमा दिखाते हुए कार्यवाही को बीच में ही छोड़ कर निकल गईं। बाद में माया ने प्रेस कॉन्फ्रेंस कर राज्यसभा के सभापति को सौंपे गए तीन पेज के इस्तीफे का जिक्र किया और बीजेपी पर जमकर निशाना साधा। मायावती ने अपना पत्र पढ़ते हुए कहा कि बीएसपी ने दलितों पर हो रहे अत्याचार खासकर यूपी के सहारनपुर में हुए दलित उत्पीड़न पर कार्यवाही रोक चर्चा की मांग की थी। रूल 267 के मुताबिक पार्टी ने नोटिस दिया था। मायावती ने कहा कि सुबह 11 बजे राज्यसभा की कार्यवाही शुरू होते ही उन्होंने उपसभापति को इसकी याद दिलाई। मायावती ने बताया कि उपसभापति ने नोटिस पर केवल 3 मिनट बोलने की अनुमति दी। बीएसपी सुप्रीमो के मुताबिक उन्होंने उसी वक्त सदन को बताया कि यह मामला ऐसा नहीं है कि 3 मिनट में बात रखी जा सके। ऐसा कोई नियम भी नहीं है कि स्थगन नोटिस के बाद 3 मिनट का ही समय दिया जाए।
मायावती ने अपने इस्तीफे वाले पत्र में लिखा कि ज्यों ही उन्होंने बोलना शुरू किया, सत्ता पक्ष के लोग हंगामा मचाने लगे। बीजेपी सांसदों के अलावा उनके मंत्रिगण भी शोर-शराबे में जुट गए। मायावती ने कहा कि हंगामे के बावजूद उन्होंने बीजेपी की सरकार में जातिवादी, सांप्रदायिक और पूंजीवादी मानसिकता के खिलाफ बोलना जारी रखा। मायावती ने कहा कि बीजेपी राज में गरीबों, दलितों, पिछड़ों, मुस्लिम व अन्य धार्मिक अल्पसंख्यकों, मजदूरों, किसानों व मध्य वर्ग के लोगों का शोषण हो रहा है। माया ने कहा कि उन्होंने जब यूपी के सहारनपुर में दलित उत्पीड़न का जिक्र किया तो सत्ता पक्ष हंगामा करने लगा। माया ने आरोप लगाया कि उपसभापति ने हंगामा कर रहे नेताओं को रोकने की बजाय घंटी बजाकर उन्हें ही रोकने को कहा क्योंकि 3 मिनट हो चुके थे। मायावती के बार-बार आग्रह पर भी उन्हें बोलने नहीं दिया गया। इसपर मायावती ने कहा कि अगर दलित उत्पीड़न के बारे में उन्हें सदन में बोलने का मौका नहीं मिलेगा तो वह इस्तीफा दे देंगी। इसके बाद माया ने इस्तीफा दे दिया। मायावती ने इस्तीफा तो दे दिया है लेकिन शायद उसे स्वीकार न किया जाए। इसकी वजह यह है कि इस्तीफा नियम संगत तरीके से नहीं दिया गया है। नियम यह है कि कोई भी संसद सदस्य (लोकसभा, राज्यसभा) जब इस्तीफा देता है तो उसे एक लाइन में इसे लिख चेयरमैन या स्पीकर को सौंपना होता है। इसके अलावा इस्तीफे में न तो कोई कारण बताया जाता है और न ही सफाई दी जाती है। मायावती ने जो इस्तीफा दिया है वह तीन पेज का है। इसके अलावा उसमें बकायदा इसके पीछे की वजह भी बताई गई है।
लालू का मायावती को ऑफर, चाहें तो बिहार से जाएं राज्यसभा
राज्यसभा की सदस्यता से बसपा सुप्रीमो मायावती के इस्तीफे के बाद इस बात पर चर्चा होने लगी है कि उनका इस्तीफा मंजूर हो गया तो फिर राज्यसभा में कैसे जा पाएंगी। इस बीच अपने बेटे को लेकर सियासी उठापटक में उलझे आरजेडी प्रमुख लालू प्रसाद यादव ने मायावती को राज्यसभा भेजने का ऑफर दिया है। लालू यादव ने कहा कि मायावती सदन में दलितों की आवाज उठा रही थीं, लेकिन बीजेपी के सदस्यों ने उन्हें बोलने नहीं दिया। लालू ने कहा इस बात में कोई शक नहीं कि मायावती देश की दलित नेता हैं और उन्हें सदन में दलितों की बात नहीं रखने दी गई। उन्होंने कहा अगर मायावती सहमत होती हैं तो वो अपनी पार्टी के कोटे से उन्हें राज्यसभा सदस्य बनाने के लिए तैयार हैं। दरअसल, बहुजन समाज पार्टी की सुप्रीमो और उत्तर प्रदेश की पूर्व मुख्यमंत्री मायावती का राज्यसभा में कार्यकाल अप्रैल 2018 में खत्म हो रहा है। प्रदेश की विधानसभा में पार्टी के पास इतने आंकड़े नहीं हैं कि 2018 में वह एक बार फिर राज्यसभा में पहुंच सके। मुख्य रूप से यूपी की राजनीति करने वाली मायावती की पार्टी को 2017 के विधानसभा चुनाव में 403 सीटों में से महज 19 सीटें मिलीं। वहीं उससे पहले 2014 के लोकसभा चुनाव में यूपी में बीएसपी खाता भी नहीं खोल पाई थी। यही वजह है कि लालू यादव ने उन्हें अपनी पार्टी से राज्यसभा भेजने का ऑफर दिया है। हालांकि, अभी तक मायावती का इस्तीफा मंजूर नहीं हुआ है। जिसकी एक वजह ये भी कि उन्होंने तीन पन्नों का त्यागपत्र सौंपा है, जो नियमों के खिलाफ है।
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