नई दिल्ली। राष्ट्रपति चुनाव में सत्तारूढ़ एनडीए के प्रत्याशी रामनाथ कोविंद को विपक्ष की साझा प्रत्याशी मीरा कुमार कड़ी टक्कर देने को तैयार हैं। 17 दलों की बैठक के बाद विपक्ष ने पूर्व लोकसभा स्पीकर मीरा कुमार को राष्ट्रपति चुनाव में उम्मीदवार बनाया है। इसके साथ ही साफ हो गया राष्ट्रपति चुनाव में मुकाबला दलित बनाम दलित ही होगा। विपक्ष की बैठक में शरद पवार ने मीरा कुमार के नाम का प्रस्ताव रखा जिसका सभी दलों ने मेज थपथपाकर स्वागत किया। इससे पहले 21 जून को मीरा कुमार ने कांग्रेस प्रमुख सोनिया गांधी से मुलाकात की थी, इसी के बाद से कयास लगाए जा रहे थे कि मीरा कुमार ही विपक्ष की उम्मीदवार होगीं।
72 साल की मीरा कुमार बिहार के सासाराम की रहने वालीं हैं। मीरा कुमार बड़े दलित नेता और देश के भूतपूर्व रक्षा मंत्री जगजीवन राम की बेटी हैं। राजनीति में कदम रखने से पहले वो विदेश सेवा की अधिकारी भी रह चुकी हैं। साल 1970 में उनका चयन भारतीय विदेश सेवा के लिए हुआ। इसके बाद उन्होंने कई देशों में अपनी सेवाएं दी। मीरा कुमार 2009 से 2014 के बीच वह लोकसभा की स्पीकर रहीं है। वह लोकसभा की पहली महिला स्पीकर के रूप में 3 जून 2009 को निर्विरोध चुनी गयी। मीरा कुमार पेशे से वकील भी रही हैं। मनमोहन सिंह की सरकार में यूपीए 1 के दौरान में सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता मंत्री रह चुकी हैं। 8वीं लोकसभा में यूपी के बिजनौर से पहली बार जीत हासिल करने वाली मीरा कुमार लगातार पांच बार सांसद रहीं हैं। मीरा कुमार ने अपने पहले ही चुनाव में दिग्गज दलित नेता रामविलास पासवान और बीएसपी प्रमुख मायावती को हराया था। साल 2014 के चुनाव में उन्हें मोदी लहर की वजह से हार का सामना करना पड़ा। वे तीन बार दिल्ली की करोलबाग सीट से भी सांसद रहीं।
मीरा कुमार को कांग्रेस, आरजेडी, एसपी, बीएसपी, डीएमके, नेशनल कॉन्फ्रेंस, आरएलडी, जेडीएस जेएमएम, टीएमसी, सीपीएम, सीपीआई, आरएसपी, एनसीपी, केरल कांग्रेस का समर्थन हालिस है। मीरा कुमार के समर्थन में 3 लाख 77 हजार 578 वोट हैं। उन्हें जीतने के लिए करीब पांच लाख 49 हजार वोट और चाहिए। मीरा कुमार के समर्थन में अभी करीब 34.4 फीसदी वोट हैं। इस आंकड़े को देखते हुए उनकी जीत असंभव है। विपक्ष की ओर से मीरा कुमार का नाम आने के बाद मायावती ने भी अपना रुख बदला है। मायावती की पार्टी बीएसपी ने भी मीरा कुमार के समर्थन का एलान कर दिया है। दरअसल एनडीए की ओर से रामनाथ कोविंद को उतारने के बाद मायावती ने कहा कि उन्हें अगर विपक्ष कोई मजबूत दलित प्रत्याशी नहीं उतारता है तो उन्हें रामनाथ कोविंदा को ही समर्थन देना पड़ेगा। मीरा कुमार के नाम का एलान होने के बाद बड़ा सवाल है कि क्या विपक्ष नीतीश कुमार को मनाएगा? दरअसल विपक्ष ने मीरा कुमार को कोविंद के मुकाबले उतारकर नीतीश को घेरने का काम किया है। मीरा कुमार महिला हैं, दलित हैं और बिहार के सासाराम से आतीं हैं। इन्हीं बातों को आधार पर विपक्ष ने अब नीतीश के लिए दुविधा पैदा कर दी है। विपक्ष की बैठक के बाद सोनिया गांधी से नीतीश कुमार और बिहार में महागठबंधन को लेकर भी सवाल हुए लेकिन उन्होंने कोई जवाब नहीं दिया। मीरा कुमार के नाम का एलान होने के बाद बिहार में नीतीश कुमार के गठबंधन के साथी लालू प्रसाद यादव ने कहा कि जेडीयू को अपने फैसले पर पुनर्विचार करना चाहिए। पुनर्विचार ना करना जेडीयू की बड़ी भूल होगी। लालू ने कहा कि इस फैसले से गठबंधन पर कोई फर्क नहीं पड़ेगा। बीएसपी महासचिव सतीश चंद्र मिश्र ने भी नीतीश कुमार से फैससे पर एक फिर विचार करने की अपील की है।
सोनिया के इन सवालों के आगे निरूत्तर हो जाएंगे नीतीश!
मीरा कुमार को उतारने के पीछे विपक्ष की कोशिश राष्ट्रपति चुनाव को दलित बनाम दलित की लड़ाई बनाने की है। कभी विपक्ष को सहेजकर एनडीए से दो-दो हाथ करने को तैयार बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने पलटी मार दी है। अब नीतीश कुमार एनडीए उम्मीदवार राम नाथ कोविंद के समर्थन में हैं। अब विपक्ष ने मीरा कुमार को उम्मीदवार बनाकर नीतीश के सामने कई सवाल खड़े कर दिये। 72 साल की मीरा कुमार बिहार की रहने वाली हैं। सासाराम से दो बार 2004 से 2014 तक सांसद रही हैं। सबसे अहम बात ये कि नीतीश बिहार के उम्मीदवार को राष्ट्रपति बनवाने की कोशिश करते नही बल्कि विरोध करते दिखेंगे। बिहार की जनता के सामने खड़े होकर ये भी नही कह सकते कि भारत के पहले राष्ट्रपति डा.राजेंद्र प्रसाद के बाद किसी बिहारी को राष्ट्रपति बनवाने की उन्होंने पुरजोर कोशिश की। मीरा कुमार और पूरा विपक्ष बिहारी अस्मिता का सवाल उठाकर नीतीश को कठघरे में खड़ा करेगा। नीतीश के पास इसका कोई जवाब भी नहीं होगा। मीरा कुमार ने देश के दो बड़े दलित नेता राम विलास पासवान और मायावती को हरा दिया था। शायद इसी हुनर को देखते हुए सोनिया गांधी ने एनडीए के राष्ट्रपति उम्मीदवार रामनाथ कोविंद के खिलाफ इन्हें मैदान में उतारा है। ऐसे में महादलितों की राजनीति करने वाले नीतीश कुमार के सामने मीरा कुमार का विरोध करना महंगा पड़ सकता है। बिहार विधानसभा चुनाव में महिलाओं ने नीतीश कुमार को अपना भारी समर्थन दिया। ऐसे में नीतीश कुमार का जवाब देना मुश्किल हो जाएगा। नीतीश पर पूरा विपक्ष अब भरोसा करने से कतराएगा। कोविंद के समर्थन के साथ ही नीतीश ने राजनीति में इधर उधर आने जाने की गुंजाइश का रास्ता खुला रखा है। राष्ट्रपति चुनाव के बहाने कांग्रेस की कोशिश 2019 के लिए विपक्षी एकता को मजबूत करने की थी। लेकिन नीतीश की चाल से कांग्रेस की रणनीति चित हो गई है और नीतीश के बीजेपी उम्मीदवार के साथ जाने के साथ ही कांग्रेस का संयुक्त विपक्ष का भी सपना टूट गया।
राजीव रंजन तिवारी (संपर्क- 8922002003)
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