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शेरो शायरी का बजट है, सोचा था आतिशबाजी होगी लेकिन निकला बुझा बारूदः राहुल गांधी

कांग्रेस के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष राहुल गांधी ने कहा कि बजट में कुछ भी नहीं किया गया है युवा और किसानों के लिए 
नई दिल्ली। कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी ने बुधवार को आम बजट को एक ‘फुस्स बम’ करार देते हुए कहा कि बजट में दूरदर्शिता की कमी साफ दिखाई दे रही है। राहुल ने केंद्रीय वित्तमंत्री अरुण जेटली के आम बजट पर प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए रेलवे की सुरक्षा को लेकर नरेंद्र मोदी सरकार पर हमला बोला और सवाल उठाया कि प्रधानमंत्री की स्वप्निल परियोजना ‘बुलेट ट्रेन’ कहां है? राहुल ने कहा, ‘हम तो आतिशबाजी की उम्मीद कर रहे थे, लेकिन उसकी जगह हमें एक फुस्स बम मिला है। बजट में दूरदर्शिता की कमी है। सरकार ने नोटबंदी के जरिए जो आम जनता को दर्द दिया था, उसके बाद उम्मीद थी कि गरीबों, किसानों और बेरोजगारों के लिए कुछ करेगी, लेकिन इसमें कोई स्पष्ट दृष्टिकोण लक्षित नहीं हो रहा है। वित्तमंत्री ने काफी शेरो-शायरी की और अच्छा भाषण दिया, लेकिन उसका कोई आधार नजर नहीं आया। वित्तमंत्री का काम रोजगार सृजन, किसानों की परेशानी जैसे महत्वपूर्ण मुद्दों पर एक विस्तृत खाका पेश करना है। लेकिन उन्होंने इन बुनियादी बातों पर कुछ नहीं कहा।’ उन्होंने कहा, ‘अगर वह इस मौके का सचमुच फायदा उठाना चाहते हैं तो उन्हें कुछ बड़ी घोषणाएं करनी चाहिए थीं, खासतौर पर किसानों के लिए। मोदी ने दो करोड़ नौकरियां सृजित करने का वादा किया था, लेकिन पिछले साल केवल 1.5 करोड़ नौकरियों का सृजन किया गया। यह शर्मनाक है। किसान रो रहे हैं, उन्हें अपने ऋणों पर रियायत की जरूरत है। यह सरकार किसान हितैषी होने का दावा और बड़ी-बड़ी बातें करती है, लेकिन उसने उनके लिए कुछ नहीं किया।’ राहुल ने पूछा, “मोदी ने बुलेट ट्रेन शुरू करने की बात की थी। क्या वह शुरू हुई? रेलवे की बुनियादी समस्या सुरक्षा की है और इस सरकार का इस मामले में सबसे खराब रिकॉर्ड है। लेकिन क्या उन्होंने सुरक्षा को लेकर कुछ कहा?’ राहुल ने हालांकि राजनीतिक पार्टियों को दिए जाने वाली चंदे को 20,000 से घटाकर 2,000 करने की घोषणा का स्वागत किया। उन्होंने कहा, ‘यह एक अच्छा कदम है। राजनीतिक वित्त पोषण में पारदर्शिता लाने वाले किसी भी कदम का हम समर्थन करेंगे।’ वित्त मंत्री अरुण जेटली ने बुधवार को संसद में केंद्रीय बजट पेश किया। जेटली ने बजट में मिडिल क्लारस को राहत देते हुए इनकम टैक्सय घटा दिया है। इसके साथ ही राजनीतिक पार्टियों को 2000 रुपये से ज्या दा के नकद चंदे पर भी रोक लगा दी गई। साथ ही कालेधन पर रोक लगाने वाले फैसले के तहत तीन लाख रुपये से ज्यांदा के कैश लेनदेन को भी बंद कर दिया गया है। जेटली ने बजट पेश करते हुए कहा कि 2.5 से पांच लाख रुपये की सालाना कमाई पर अब पांच प्रतिशत की दर से टैक्से लगेगा। वर्तमान में यह दर 10 प्रतिशत है। इसके साथ ही रेलवे को लेकर घोषणाओं में ई-टिकट से सर्विस चार्ज हटाने का फैसला लिया गया है।  
मोदी सरकार के बजट में छिपा बीजेपी का चुनावी गणित, उत्तर प्देश है टारगेट तो 2018-19 की भी तैयारी पर जोर! 
सारंग उपाध्याय 
1 फरवरी को ही बजट लाकर क्या बीजेपी ने वाकई पांच राज्यों में होने वाले चुनावों को साधा है? बजट की कई घोषणाएं चुनावों के हिसाब से दिखाई देती है..! 1 फरवरी को ही बजट लाकर क्या बीजेपी ने वाकई पांच राज्यों में होने वाले चुनावों को साधा है? गरीबों के आवास की बात हो या फिर हर गांव में बिजली पहुंचाने की, या फिर टैक्स स्लै ब में बदलाव की, सभी में चुनाव की दूरगामी दृष्टिर दिखाई देती है. उत्तर प्रदेश उसकी लिस्ट में सबसे ऊपर नजर आता है. बजट में पीएम आवास योजना के तहत 2019 तक 1 करोड़ घर बनाने की बात कही गई है. 2011 की जनगणना के आंकड़ों के मुताबिक देश में उत्तर प्रदेश ही ऐसा राज्य है, जहां आबादी के एक चौथाई से ज्यादा, यानी की कुल 20 फीसदी लोगों के पास घर नहीं है. महाराष्ट्र में यह आबादी 12 फीसदी है, राजस्थान में 10, मप्र, आंध्र प्रदेश, गुजरात और पश्चि म बंगाल में यह आंकड़ा 8 फीसदी है. शहरों के हिसाब से भी देखा जाए तो उत्तर प्रदेश में कानपुर ऐसा शहर है, जहां तकरीबन 80 हजार से ज्यादा लोग आज भी अपने घर का सपना देख रहे हैं. मुंबई में 55 हजार और दिल्ली में 40 हजार से ज्यादा लोगों के पास आज भी घर नहीं है. इसी तरह यूपी में देश की सर्वाधिक युवा आबादी (20 साल तक की उम्र) भी है. यह बहुत बड़ा वोट बैंक है, जो बेरोजगार लेकिन महत्वाकांक्षी है और महानगरों की ओर तेजी से पलायन कर रहा है. बजट में इसी आबादी को ध्या्न में रखते हुए प्रधानमंत्री कौशल केंद्रों के विस्तार और अंतरराष्ट्रीय कौशल केंद्र खोलने की बात कही गई है. बजट के मुताबिक सरकार 2018 तक देश के सभी गांवों में बिजली पहुंचाना चाहती है. मोदी सरकार के हजारों गांवों में बिजली पहुंचा देने के दावे को सच भी माना जाए, तो भी सेंट्रल इलेक्ट्रिसिटी अथॉरिटी के 2015-16 के आंकड़े कहते हैं कि आज भी जम्मू-कश्मीर के बाद देश में सबसे ज्यादा बिजली की जरूरत यूपी को है. बिजली की यह कमी तकरीबन 12.5 फीसदी की है. बता दें कि केंद्रीय विद्युत प्राधिकरण के 2014 के आंकड़ों के हिसाब से यूपी में 10856 गांव ऐसे थे, जहां बिजली पहुंची ही नहीं थी. इधर, पंजाब, गुजरात और गोवा के गांव भी मामूली रूप से बिजली की कमी से जूझ रहे हैं, लेकिन यूपी की हालत वैसी ही है. प्राधिकरण ने तो 2013 की एक रिपोर्ट में उत्तर प्रदेश को बिजली का सबसे भूखा प्रदेश क़रार दिया था. ऐसे ही स्वा स्य्मी के क्षेत्र में भी यूपी देश में सबसे ज्यातदा पिछड़ा राज्यक है. यहां सार्वजनिक स्वा3स्य्ं सेवा पूरी तरह से बदहाल है. यही वजह है कि बजट में 1.5 लाख स्वास्थ्य उपकेंद्रों को स्वास्थ्य वेलनेस केंद्रों में बदलने की बात कही गई है. बजट में टैक्स स्लैब के बदलाव को देखा जाए तो भी यूपी सरकार के आधिकारिक आंकड़े बताते हैं कि वर्ष 2015-16 में प्रदेश की प्रति व्यक्ति आय 48,584 रुपए रही है, जो वर्ष 2012-13 में 35,358 रुपए थी, यानी कि बढ़ी हुई आय में कर छूट का गणित भी यूपी को प्रभावित करता है और 2019 के चुनावों तक पहुंचता है. बजट में मनरेगा की राशि बढ़ाई गई है. बीते साल 38,500 करोड़ रुपये की जगह इसे 48,000 करोड़ रुपये किया गया है. यदि चुनाव वाले पांच राज्यों5 में मनरेगा से मिलने वाले रोजगार पर नजर डालें तो बीजेपी ने यहां भी यूपी के वोटर को साधने की कोशिश की है. आंकड़ों के हिसाब से देखें तो पांच राज्यों में मनरेगा में रोजगार पाने वालों की स्थिकति पता चलती है, और उसमें भी यूपी की हालत बेहद खराब है. साल 2015-16 गोवा में मनरेगा के तहत रोजगार मांगने वालों की संख्याी 6151 थी लेकिन 6068 को काम मिल पाया. इनमें से भी केवल 21 परिवार ही 100 दिन का रोजगार पा सके. ऐसे ही मणिपुर में 4,93,748 ने काम मांगा, मिला 4,84,565 को ही और केवल 1 ही परिवार ही 100 दिन का रोजगार पा सका. पंजाब में 6,77,542 लोगों ने काम मांगा, लेकिन मिला 5,75,798 को ही. इनमें भी 7,480 परिवार ही 100 दिन रोजगार की गारंटी हासिल कर सके. बात यदि यूपी की करें तो यहां 82,03,073 ने मनरेगा के तहत काम की मांग की थी, लेकिन 68,54,523 लोगों को रोजगार मिला. इनमें 1,85,782 परिवार ही 100 दिन का रोजगार पा सके. वहीं बात यदि उत्तराखंड में 7,51,698 लोग रोजगार मांग रहे थे, लेकिन 6,77,755 लोगों को ही काम मिला, जबकि 19,917परिवार ही 100 दिन का रोजगार पा सके. कुल मिलाकर पांचों राज्योंह में 1 करोड़ से ज्या1दा ने रोजगार की डिमांड की, लेकिन 85 लाख लोग ही काम हासिल करे, उसमें भी 2 लाख से ज्या दा लोगों को 100 दिन का रोजगार मिल सका. सरकार 2019 अपनी कई योजनाओं और उनकी घोषणाओं में बहुत सी प्लानिंग चुनावों के हिसाब से ही करती दिखाई दे रही है. अगले चुनावी कार्यक्रम पर नजर डाली जाए तो, जहां इस साल 2017 में गोवा, पंजाब, उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड और मणिपुर में चुनाव हैं, तो वहीं अगले साल 2018 में सात राज्यों, मप्र, राजस्थान, गुजरात, नगालैंड, कर्नाटक, मेघालय, हिमाचल, त्रिपुरा, मिजोरम में चुनाव हैं, जबकि 2019 में ही लोकसभा के भी चुनाव हैं.(साभार)
प्रस्तुतिः राजीव रंजन तिवारी, फोन-8922002003
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