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समाजवादी परिवार में घमासान के पीछे दूसरी बहू का 'पेंच' तो नहीं?

डेढ़ घंटे तक चली अखिलेश-मुलायम की मुलाकात, राष्ट्रीय अध्यक्ष पर अटक गई बात 
लखनऊ। अखिलेश यादव और मुलायम सिंह यादव के बीच सोमवार को करीब दो घंटे तक चली मुलाकात के बाद भी समाजवादी पार्टी का संकट बना हुआ है। समाजवादी पार्टी में मचे घमासान के बीच सोमवार को मुलायम सिंह और अखिलेश यादव के बीच सुलह होने के आसार नजर आए थे जिसके बाद मंगलवार को पिता- पुत्र के बीच मुलाकात हुई। सीएम अखिलेश यादव मुलायम सिंह से मिलने उनके आवास पर पहुंचे और यहां दोनों के बीच लगभग डेढ़ घंटे तक बातचीत हुई। बताया जा रहा है कि डेढ़ घंटे तक चली दोनों की मुलाकात बेनतीजा रही। सूत्रों के मुताबिक मुलायम सिंह ने अखिलेश के सामने सुलह का जो फॉर्मूला रखा उस पर बात नहीं बनी। बताया जा रहा है कि मुलायम राष्ट्रीय अध्यक्ष पद के लिए अड़ गए हैं लेकिन माना जा रहा है कि टिकटों का बंटवारा मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ही करेंगे। सूत्रों के मुताबिक मुलायम ने अखिलेश को चुनाव आयोग को दिया गया पत्र वापस मांगने को भी कहा है और मुलायम ने इस बात पर भी जोर दिया कि चुनावों का नेतृत्व वो ही करेंगे। इस संकट के कारण पार्टी के अलग अलग विधानसभाओं से घोषित उम्मीदवारों के सामने असमंजस की स्थिति बनी हुई है। लेकिन अपर्णा बिष्ट यादव पर इसका बहुत असर नहीं दिखता। वे अपनी चुनावी तैयारियों में जुटी हुई हैं और हर दिन अपने विधानसभा क्षेत्र में चुनाव प्रचार का काम देख रही हैं। अपर्णा बिष्ट यादव, मुलायम सिंह के दूसरे बेटे प्रतीक यादव की पत्नी हैं और मुलायम सिंह ने उन्हें लखनऊ कैंट से अपना उम्मीदवार घोषित किया हुआ है। समाजवादी पार्टी के प्रवक्ता मोहम्मद शाहिद कहते हैं, "लखनऊ कैंट से वो हमारी उम्मीदवार हैं. इस स्थिति में अब तक कोई बदलाव नहीं है। ऐसे में अहम सवाल ये है कि क्या अखिलेश यादव का गुट भी अपर्णा बिष्ट यादव को लखनऊ सीट से उम्मीदवार बनाएगा? इस सवाल को बल मिलने की एक वजह तो अखिलेश यादव की उम्मीदवारों की वो कथित सूची है, जिसमें लखनऊ कैंट वाली सीट पर उम्मीदवार का नाम खाली रखा गया है। करीब दो महीने से जारी घमासान के बीच मीडिया में इस बात की रिपोर्टें भी आयीं हैं कि अखिलेश-मुलायम विवाद की एक वजह ये भी है कि मुलायम गुट में शामिल तमाम लोगों को ये लग रहा है कि नेताजी की राजनीतिक विरासत पर अखिलेश मज़बूती से काबिज होते जा रहे हैं। लखनऊ के वरिष्ठ राजनीतिक पत्रकार वीरेंद्र भट्ट कहते हैं, "2007 में एक अख़बार में ख़बर छपी अखिलेश मुलायम के उत्तराधिकारी। इस हेडलाइन पर मुलायम की दूसरी पत्नी साधना गुप्ता ने इतना सख्त विरोध किया कि अख़बार को बाद में स्पष्टीकरण छापना पड़ गया था। वे अपर्णा को आगे बढ़ा रही हैं। ऐसी कोशिश 2014 में आजमगढ़ से मुलायम के दूसरे बेटे प्रतीक यादव को उम्मीदवार के तौर पर देने पर हुई थी, लेकिन प्रतीक यादव की ख़ुद राजनीति में बहुत दिलचस्पी नहीं है।" इन सब आरोपों में दम इसलिए भी दिखता है क्योंकि अखिलेश के भरोसेमंद सहयोगी उदयवीर सिंह ने इस बाबत मुलायम सिंह यादव को चिट्ठी भी लिखी थी, जिस पर काफ़ी विवाद हुआ था। उत्तर प्रदेश की राजनीति पर नज़र रखने वाले शरद गुप्ता कहते हैं, "अपर्णा का पारिवारिक मूल्यों में यक़ीन है पर हालात ऐसे हो गए हैं कि पिता और बेटे की लड़ाई में वो पिता के खेमे में नज़र आ रही हैं।" जानकारों का कहना है कि लोकप्रियता और लोगों के समर्थन हासिल करने के मामले में अब अखिलेश बहुत आगे निकल चुके हैं और परिवार के अंदर उन्हें किसी की कोई चुनौती मिलती नहीं दिख रही है। अपर्णा को लखनऊ कैंट से उम्मीदवार बनाए रखने के बारे में अखिलेश यादव के सहयोगी (नाम ना ज़ाहिर करने की शर्त पर) बीबीसी से बताया, "परिवार में पहले से 20 लोग सक्रिय राजनीति में हैं। अभी तक तो अपर्णा के टिकट को डिस्टर्ब नहीं किया जा रहा है।" ऐसे में बहुत संभव है कि अखिलेश अपर्णा का टिकट बरकरार रखते हुए, अपने पिता के प्रति नरम रवैये का संकेत दे सकते हैं। अपर्णा बिष्ट यादव के पिता और उत्तर प्रदेश के सूचना आयुक्त अरविंद सिंह बिष्ट कहते हैं, "अपर्णा को चुनाव मैदान में उतारने का फ़ैसला परिवार का फ़ैसला था, परिवार के फ़ैसले के मुताबिक ही वो चुनाव प्रचार कर रही हैं।" परिवार के अंदर ही दो गुट उभर आने के बारे में अरविंद सिंह बिष्ट ने सबकुछ जल्दी ही ठीक हो जाने का भरोसा जताया है। लेकिन अपर्णा बिष्ट यादव के पक्ष में दो बात ख़िलाफ़ जा सकती हैं, एक तो उनकी अपनी राजनीतिक महत्वाकांक्षा है, जो जब तब ज़ाहिर होती रही हैं। वह सार्वजनिक मंचों पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की तारीफ़ कर चुकी हैं। राजनाथ सिंह से भी उनके अपने परिवार की नज़दीकी रही हैं। ऐसे में अखिलेश, अपर्णा के बारे में जो भी फ़ैसला लेंगे, वो राजनीतिक तौर पर काफ़ी सोच समझ कर ही लेंगे। दूसरी मुश्किल है ख़ुद लखनऊ कैंट की विधानसभा सीट है. 3.15 लाख मतदाताओं वाली इस सीट पर 60 हज़ार ब्राह्मण हैं, 50 हज़ार दलित, 40 हज़ार वैश्य और 30 हज़ार पिछड़े वर्ग के मतदाता। इस सीट से समाजवादी पार्टी ने कभी चुनाव नहीं जीता है। ये सीट भारतीय जनता पार्टी की गढ़ मानी जाती रही है और रीता बहुगुणा जोशी इसी सीट के भरोसे पर कांग्रेस से इस पार्टी में आई हैं। तो कांग्रेस में अब तक उनका समर्थन कर रहे लोग भी उनके साथ हो सकते हैं। 27 साल की अपर्णा बिष्ट 2011 में मुलायम परिवार की पुत्रवधू बनीं। अपर्णा और प्रतीक का विवाह प्रेम विवाह था और दोनों के बीच स्कूली दिनों में ही प्रेम हो गया था, बाद में दोनों ने इंग्लैंड में साथ साथ पढ़ाई की। सार्वजनिक जीवन में दिलचस्पी रखने वाली अपर्णा की संगीत में भी बेहद दिलचस्पी है। वह क्लासिकल और सेमीक्लासिकल संगीत की शिक्षा ले चुकी हैं और बहुत अच्छी सिंगर भी हैं। संगीतकार साजिद वाजिद के निर्देशन में उनका एक म्यूज़िकल एलबम आ चुका है, जिसे सैफई महोत्सव में मुलायम सिंह ख़ुद ज़ारी कर चुके हैं।
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