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उत्तर प्रदेश में छोटी पार्टियां बिगाड़ेंगी बड़ी पार्टियों के खेल!

यूपी में अन्य पिछड़ा वर्ग के वोटरों की भागीदारी करीब 44 प्रतिशत है जबकि दलित 21 फीसद, मुस्लिम 19 प्रतिशत तथा अगड़ी जाति की भागीदारी 16 फीसद है 
लखनऊ। उत्तर प्रदेश में राजनीति की शक्ल परम्परागत रूप से जातीय समीकरणों के हिसाब से तय होती रही है। इसी गणित की बदौलत कई बार छोटी पार्टियां चुनावी खेल बिगाड़ने तक की हैसियत हासिल कर लेती हैं। चुनावी मौसम आते ही छोटी पार्टियां और ऐसे दलों के गठबंधन वजूद में आ जाते हैं। विशेष जाति या उपजातियों में पैठ रखने वाले ये दल विभिन्न सीटों पर पांच से 10 हजार वोट घसीटकर कई बार प्रमुख दलों को नुकसान पहुंचाते हैं। ‘देखन में छोटे लगें, घाव करें गम्भीर’ की तर्ज पर काम रखने वाली इन पार्टियों को प्रमुख दल भी कई बार खासी तवज्जो देते हैं। भाजपा ने पूर्वांचल के राजभर मतदाताओं में पैठ रखने वाली सुहेल देव की पार्टी भारतीय समाज पार्टी से गठबंधन किया है और वह संजय सिंह चौहान की अगुवाई वाली जनवादी पार्टी (सोशलिस्ट) के साथ भी सम्पर्क में है। केन्द्रीय मंत्री अनुप्रिया पटेल की अगुवाई वाला ‘अपना दल’ का एक धड़ा पहले ही भाजपानीत राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन का हिस्सा है। चुनावी मैदान में पीस पार्टी, निषाद पार्टी और महान दल जैसी छोटी पार्टियां भी ताल ठोंकने की तैयारी कर रही हैं। इनमें से पीस पार्टी और निषाद पार्टी तो सपा की अगुवाई में बन रहे महागठबंधन का हिस्सा बनने को तैयार हैं। प्रदेश की राजनीति में जातीय समीकरण की आमतौर पर निर्णायक भूमिका होती है। शायद इसी के मद्देनजर मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने हाल में 17 पिछड़ी जातियों को अनुसूचित जाति की श्रेणी में शामिल करने के लिये मंत्रिमण्डल से प्रस्ताव पारित कराकर केन्द्र के पास भेजा है। साथ ही इन जातियों को अनुसूचित जातियों की तरह आरक्षण देने के लिये शासनादेश भी जारी कर दिया है। सरकार ने जिन जातियों को अनुसूचित जातियों में शामिल करने का प्रस्ताव भेजा है, उनमें कहार, कश्यप, केवट, निषाद, बिंद, भर, प्रजापति, राजभर, बाथम, गौड़िया, तुरहा, मांझी, मल्लाह, कुम्हार, धीमर, धीवर तथा मछुआ शामिल हैं। वैसे तो व्यक्तिगत रूप से इन जातियों की कुल वोट में भागीदारी कम ही है, लेकिन साथ मिलकर वे बड़ी भूमिका निभा सकती हैं। प्रदेश में अन्य पिछड़ा वर्ग के मतदाताओं की भागीदारी करीब 44 प्रतिशत है। इसके अलावा दलित 21 फीसद, मुस्लिम 19 प्रतिशत तथा अगड़ी जातियों की भागीदारी 16 फीसद है। सपा का प्रमुख वोट बैंक मानी जाने वाली यादव बिरादरी अन्य पिछड़ा वर्गों में खासा प्रतिनिधित्व रखती है लेकिन अन्य पिछड़ा वर्ग में शुमार करीब 200 गैर यादव बिरादरियों को जोड़ दें तो वे यादवों से दोगुनी से भी ज्यादा का संख्याबल रखती हैं। मल्लाह समुदाय करीब साढ़े प्रतिशत वोट रखता है। लगभग 27 उपजातियों में बंटा यह समुदाय प्रदेश की नदियों के किनारे के 125 विधानसभा क्षेत्रों में प्रत्याशियों की जीत-हार तय करता है। विभिन्न पार्टियां वर्मा, पटेल तथा गंगवार जैसे उपनामों वाले कुर्मी मतदाताओं और बुनकरों को लुभाने में भी जुटी हैं। भाजपा ने कुर्मी मतदाताओं को अपनी ओर खींचने का जिम्मा खासतौर से केन्द्रीय मंत्री अनुप्रिया पटेल को दिया है। दूसरी ओर, मुख्यत: दलितों में जनाधार रखने वाली बसपा ने विभिन्न पिछड़ी जातियों के पांच नेताओं को अपनी-अपनी जातियों के मतदाताओं को पार्टी से जोड़ने का जिम्मा सौंपा है।  
अभिनेता राजपाल यादव की सर्व समभाव पार्टी में भी कम नहीं 
बालीवुड के चर्चित सिने स्टार राजपाल यादव की नई नवेली सर्व समभाव पार्टी (ससपा) के नेताओं और कार्यकर्ताओं में भी कम जोश नहीं है। ससपा को चुनाव आयोग टायर चुनाव चिन्ह आवंटित किया गया है। पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष श्रीपाल यादव हैं जबकि महासचिव के रूप में राजेश यादव को नियुक्त किया गया है। सिने स्टार राजपाल यादव पार्टी के मुख्य स्टार प्रचारक की भूमिका में हैं। सूत्रों का कहना है कि ससपा से चुनावी तालमेल और गठबंधन के लिए कई बड़ी पार्टियां भी कोशिश कर रही हैं, पर अभी यह तय नहीं हो सका है कि ससपा का गठबंधन किस दल से होगा। सिने स्टार राजपाल यादव की पार्टी ससपा से बड़े दलों के संभावित गठबंधन की चर्चा पर राजनीति के जानकारों की टिप्पणी है कि ससपा से गठबंधन होने पर नेताओं को कभी भी भीड़ के लाले नहीं पड़ेंगे। क्योंकि जहां भी राजपाल यादव जाते हैं वहां बगैर बुलाए हजारों की भीड़ इकट्ठी होती है। स्वाभाविक है, छोटी हो या बड़ी पार्टी, सबको भीड़ के बीच अपनी बातें कहने और नीतियों को बताने की इच्छा होती है, लेकिन बड़े दलों के आला नेताओं को तब मायूस होना पड़ता है जब अपेक्षा के अनुरूप भीड़ इकट्ठी नहीं होती। इस मामले में सिने स्टार राजपाल यादव अव्वल है। यह अलग बात है कि चुनाव में उनकी पार्टी किस स्थिति में होगी और परिणाम क्या होगा, पर इतना जरूर है कि राजपाल यादव भीड़ जुटाने के मामले में सूबे चर्चित तो हो ही गए हैं। बीते 8 जनवरी को पूर्वांचल के गोरखपुर के ग्राम भस्मा-डवरपार में ‘धरा धाम’ का शिलान्यास करने आए राजपाल यादव की एक झलक पाने के लिए उमड़े जनसैलाब ने यह सिद्ध कर दिया कि अभिनेता से नेता बनने की ओर अग्रसर राजपाल यादव का जलवा देश के किसी बड़े नेता से कम नहीं है।
राजीव रंजन तिवारी, फोन- 8922002003
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