नई दिल्ली। विकास और आर्थिक प्रगति के तमाम दावों के बावजूद भारत में रोजगार का परिदृश्य और भविष्य धुंधला ही नजर आ रहा है. 2015-16 के दौरान भारत में बेरोजगारी दर बढ़ कर पांच फीसदी तक पहुंच गई जो बीते पांच सालों के दौरान सबसे ज्यादा है. विकास और आर्थिक प्रगति के तमाम दावों के बावजूद भारत में रोजगार का परिदृश्य और भविष्य धुंधला ही नजर आ रहा है. हाल में आए दो अलग-अलग अध्ययनों से पता चलता है कि वर्ष 2015-16 के दौरान भारत में बेरोजगारी दर बढ़ कर पांच फीसदी तक पहुंच गई जो बीते पांच सालों के दौरान सबसे ज्यादा है. एक अन्य रिपोर्ट में कहा गया है कि बीते चार वर्षों से रोजाना साढ़े पांच सौ नौकरियां गायब हो रही हैं. यह दर अगर जारी रही तो वर्ष 2050 तक देश से 70 लाख नौकरियां खत्म हो जाएंगी.
श्रम ब्यूरो की ओर से रोजगार पर सालाना सर्वेक्षण की ताजा रिपोर्ट से यह तथ्य सामने आया है कि वर्ष 2015-16 के दौरान देश में बेरोजगारी की दर बीते पांच वर्षों के उच्चतम स्तर तक पहुंच गई. इसमें कहा गया है कि इसी दौरान महिलाओं की बेरोजगारी दर 8.7 फीसदी तक पहुंच गई. देश के 68 फीसदी घरों की मासिक आय महज 10 हजार रुपये है. ब्यूरो ने अपनी इस रिपोर्ट के लिए बीते साल अप्रैल से दिसंबर के बीच 1.6 लाख घरों का सर्वेक्षण किया था. इस रिपोर्ट के मुताबिक, शहरी क्षेत्रों में हालात कुछ बेहतर हैं. ग्रामीण इलाकों में लगभग 42 फीसदी कामगरों को साल में 12 महीने काम नहीं मिलता. नतीजतन खेती के मौसमी रोजगार पर उनकी निर्भरता बढ़ी है. यह केंद्र में मोदी सरकार के सत्ता संभालने के बाद अपनी तरह का पहला सर्वेक्षण है. इससे साफ है कि सरकार के तमाम दावों और मेक इन इंडिया के तहत रोजगार के नए अवसर पैदा करने के वादों के बावजूद हालात जस के तस ही हैं. इस रिपोर्ट में कहा गया है कि 15 साल से ज्यादा उम्र वाले पांच फीसदी लोगों में बेरोजगारी की दर बढ़ी है. इसे आंकड़ों में बदलने पर स्थिति की गंभीरता का अंदाजा मिलता है. वर्ष 2011 की जनगणना के मुताबिक देश में 15 साल से ज्यादा उम्र वाले कामगरों की तादद 45 करोड़ थी. पांच फीसदी का मतलब है 2.3 करोड़ लोग. इसके अलावा 35 फीसदी यानी लगभग 16 करोड़ लोग ऐसे हैं जिन्हें पूरे साल नियमित रोजगार नहीं मिलता.
इस बीच, एक अन्य रिपोर्ट में कहा गया है कि देश में बीते चार वर्षों से रोजाना साढ़े पांच सौ नौकरियां घट रही हैं. अगर यही स्थिति जारी रही तो वर्ष 2050 तक 70 लाख नौकरियां गायब हो जाएंगी. दिल्ली स्थित सिविल सोसायटी ग्रुप प्रहार की ओर से जारी इस अध्ययन रिपोर्ट में कहा गया है कि किसानों, छोटे वेंडरों, ठेका मजदूरों और निर्माण के काम में लगे मजदूरों पर इसका सबसे प्रतिकूल असर होगा. श्रम ब्यूरो की एक रिपोर्ट के हवाले इस अध्ययन में कहा गया है कि देश में वर्ष 2015 के दौरान रोजगार के महज 1.35 लाख नए मौके पैदा हुए. इससे साफ है कि सबसे ज्यादा रोजगार पैदा करने वाले यानी खेती और छोटे व मझौले उद्योगों में रोजगार के मौके कम हुए हैं. विश्व बैंक की एक रिपोर्ट के मुताबिक, वर्ष 1994 में जहां कृषि क्षेत्र में कुल 60 फीसदी लोगों को रोजगार मिलता था वहीं वर्ष 2013 में यह आंकड़ा घट कर 50 फीसदी तक आ गया. इंस्टीट्यूट फार ह्यूमन डेवलपमेंट में फ्रोफेसर अमिताभ कुंडू कहते हैं, "यह एक गंभीर स्थिति है. खासकर महिलाओं में बढ़ती बेरोजगारी चिंताजनक है." वह कहते हैं कि सरकार को यह बात याद रखनी चाहिए कि सिर्फ विकास पर ध्यान केंद्रित करने से यह समस्या हल नहीं होगी. राष्ट्रीय सांख्यिकी आयोग के पूर्व अध्यक्ष प्रवण सेन कहते हैं, "कॉरपोरेट क्षेत्र में रोजगार का तरीका बदल रहा है. कंपनियां कुशल कामगरों को तरजीह दे रही हैं. इससे वहां रोजगार के मौके कम हुए हैं." उनका कहना है कि कृषि के बाद सबसे ज्यादा रोजगार मुहैया कराने वाले निर्माण क्षेत्र का विकास धीमा है. इससे नौकरियां भी कम पैदा हो रही हैं.
श्रम ब्यूरो की सर्वेक्षण रिपोर्ट में कहा गया है कि हाल के वर्षों में जहां स्व-रोजागर के मौके घटे हैं वहीं केंद्र सरकार की विभिन्न योजनाओं के तहत भी रोजगार कम हुए हैं. विशेषज्ञों का कहना है कि बेरोजगारी बढ़ाने में इनकी भी अहम भूमिका है. आर्थशास्त्रियों का कहना है कि मौजूदा स्थिति को सुधारने के लिए सरकार को मूल तथ्यों पर ध्यान देते हुए कृषि, असंगठित खुदरा कारोबार व छोटे और लघु उद्योग जैसे क्षेत्रों की सुरक्षा की दिशा में ठोस पहल करनी होगी. देश में आजीविका के मौजूदा साधनों में से 99 फीसदी इन क्षेत्रों से ही आता है. सेन कहते हैं, "इन क्षेत्रों का सरकार के समर्थन की जरूरत है, नियमन की नहीं." विशेषज्ञों का कहना है कि 21वीं सदी में देश को स्मार्ट गांव चाहिए, स्मार्ट शहर नहीं. प्राथमिकता के आधार पर ध्यान नहीं देने की स्थिति में आने वाले वर्षों में बेरोजगारी की यह समस्या और भयावह हो सकती है. (साभार-डीडब्ल्यू. रिपोर्ट प्रभाकर, कोलकाता)
- Blogger Comments
- Facebook Comments
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
0 comments:
Post a Comment
आपकी प्रतिक्रियाएँ क्रांति की पहल हैं, इसलिए अपनी प्रतिक्रियाएँ ज़रूर व्यक्त करें।