
इन शालाओं में एक भी नहीं
अधिकांश शालाओं में जहां प्रवेश संख्या दो अंकों तक भी नहीं पहुंच सकी थी वहीं 4 शालाएं तो ऐसी थी जिनमें कि प्रवेश का खाता भी नहीं खुल सका था। यह विरले स्कूल प्राथमिक शाला जीनढाना, यूईजीएस बलेगांव ढाना, यूईजीएस टांडा और यूईजीएस माथनी हैं। ऐसे में इन स्कूलों को समीपी अन्य शाला में मर्ज कर स्टाफ को अन्य शालाओं में भिजवाया गया। इनके अलावा 38 शालाएं ऐसी थीं जिनमें एक ही परिसर में कन्या और बालक शाला थीं पर पर्याप्त दाखिला नहीं होने से इनमें सहशिक्षा की व्यवस्था कर एक ही शाला का संचालन किया जा रहा है।
योजनाएं भी कर रही निराश
सरकारी स्कूलों में बच्चों की संख्या बढ़ाने के लिए शासन द्वारा कई तरह की योजनाओं का संचालन किया जा रहा है। इनमें बच्चों को निःशुल्क गणवेश, पाठ्य पुस्तकें, मध्यान्ह भोजन आदि सब शासन द्वारा मुहैया कराया जा रहा है। सभी बच्चों का स्कूलों में प्रवेश हो ही जाएं, इसके लिए शासन द्वारा बच्चों के जन्म और आंगनवाड़ी में जाना चालू करने के बाद से ही उन पर नजर रखते हुए पूरा रिकॉर्ड रखा जाता है। इसके बावजूद सभी बच्चों का सरकारी स्कूलों में दाखिला करवाने में शासन को सफलता नहीं मिल पा रही है और बच्चे कम होते ही जा रहे हैं।
निजी स्कूल बन रहे हैं कारण
सरकारी स्कूलों में लगातार कम हो रहे बच्चों की मुख्य वजह शहरों से लेकर ग्रामीण अंचलों तक में खुल रहे निजी स्कूल हैं। निजी स्कूलों की सुविधाएं और चकाचौंध पालकों को अपने मोहपाश में बांध लेती हैं और आर्थिक स्थिति ठीक ना होने के बावजूद भी पालक निजी स्कूलों में ही बच्चों का दाखिला कराते हैं। सेवानिवृत्त शिक्षक नंदकिशोर सोनी कहते हैं कि निजी स्कूलों द्वारा अब दूरस्थ ग्रामीण अंचलों तक बस सेवा तक का संचालन किया जा रहा है। यही कारण है कि अब ग्रामीण क्षेत्र के भी अधिकांश बच्चे निजी स्कूल में पढ़ते हुए नजर आ रहे हैं।
इन स्कूलों में लटकाने पड़े ताले
कम दर्ज संख्या के कारण पहले एक ही स्थान या गांव में अलग-अलग संचालित बालक और कन्या शाला को एक शाला करते हुए एक-एक शाला में ताला बंद करना पड़ा। इनमें अंधारिया, खापाखतेड़ा, बोरदेही, कचरबोह, लीलाझर, कोंढरखापा, मांडवी, पुसली, अम्बेडकर वार्ड बैतूल बाजार, भवानीपुरा बैतूल बाजार, माथनी, रोंढा, भडूस, खेड़ी सांवलीगढ़, सावंगा, बोरगांव, खंडारा, धामनगांव, झल्लार, चूनालोहमा, आदर्श धनोरा, सांडिया, छिंदी, बरखेड़, पौनी, एनस, बघोड़ा, आष्टा, चिचंडा, चिल्हाटी, सिरडी, काजली, बिसनूर, बिरूलबाजार, धाबला, मंगोनाखुर्द, छिंदखेड़ा और पोहर की शालाएं शामिल हैं।
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