बैतूल (मध्य प्रदेश), (मनोज देशमुख)। निजी स्कूलों की चकाचौंध के आगे सरकारी स्कूलों की चमक लगातार फीकी होती जा रही है। यही कारण है कि सरकारी स्कूलों में दर्ज संख्या लगातार कम होती जा रही है। जिले के 43 प्राथमिक स्कूलों में महज इसलिए ताले लटकाने को मजबूर होना पड़ा क्योंकि इनमें पर्याप्त संख्या में प्रवेश नहीं हो पाए। इनमें से 4 स्कूलों की स्थिति तो यह है कि इनमें एक बच्चे का दाखिला भी नहीं हो सका। ऐसे में इन स्कूलों को अन्य स्कूलों में मर्ज किया गया और स्टाफ को अन्य स्कूलों में शिफ्ट कर दिया है। ऐसा निर्णय तब लिया गया जब स्कूल चले हम अभियान पर जिले में भारी भरकम राशि खर्च की जा रही है।
जिला शिक्षा केंद्र के माध्यम से प्राथमिक और माध्यमिक शिक्षा की व्यवस्था की जाती है। इसके लिए केंद्र के तहत पिछले वर्ष तक 2031 प्राथमिक और 868 माध्यमिक स्कूलों का संचालन किया जा रहा था। हर साल सरकारी स्कूलों में बच्चों की संख्या में लगातार कमी आती जा रही है। यही कारण है कि शासन के स्कूल चलो अभियान और कई योजनाओं व अभियानों के बावजूद भी स्थिति खास सुधर नहीं पा रही है। इस साल जिले के 43 प्राथमिक स्कूल ऐसे थे जिनमें कि 10 बच्चों तक का भी दाखिला नहीं हो पाया है। इनमें से 4 शालाएं तो ऐसी थीं, जिनमें कि एक बच्चे का भी प्रवेश नहीं हो पाया था। शासन के निर्देश हैं कि यदि किसी स्कूल में 10 से कम बच्चों का प्रवेश होता है तो फिर ऐसे स्कूल को समीपी अन्य उसी स्तर की शाला में मर्ज कर दिया जाता है। ऐसे में इन 43 शालाओं को अन्य समीपी शाला में मर्ज कर यहां के स्टाफ को दूसरी शालाओं में स्थानांतरित कर दिया गया है। आमला नगर में एक ही प्रांगण में एक ही स्तर की माध्यमिक बालक बेसिक शाला और माध्यमिक कन्या शाला होने से कन्या शाला को यहां से हटाकर घुटीगढ़ गांव में स्थापित किया गया है। भैंसदेही ब्लॉक के नवापुर ढाना स्थित प्राथमिक शाला में महज 4 बच्चे हैं। इसमें 2 बच्चे 4 थी में और 2 बच्चे दूसरी में हैं। इसके चलते इस स्कूल को भी प्राथमिक शाला नवापुर में मर्ज कर दिया गया है। इसके पहले वाले वर्ष में भी 15 शालाओं को इसी के चलते बंद करना पड़ा था।
इन शालाओं में एक भी नहीं
अधिकांश शालाओं में जहां प्रवेश संख्या दो अंकों तक भी नहीं पहुंच सकी थी वहीं 4 शालाएं तो ऐसी थी जिनमें कि प्रवेश का खाता भी नहीं खुल सका था। यह विरले स्कूल प्राथमिक शाला जीनढाना, यूईजीएस बलेगांव ढाना, यूईजीएस टांडा और यूईजीएस माथनी हैं। ऐसे में इन स्कूलों को समीपी अन्य शाला में मर्ज कर स्टाफ को अन्य शालाओं में भिजवाया गया। इनके अलावा 38 शालाएं ऐसी थीं जिनमें एक ही परिसर में कन्या और बालक शाला थीं पर पर्याप्त दाखिला नहीं होने से इनमें सहशिक्षा की व्यवस्था कर एक ही शाला का संचालन किया जा रहा है।
योजनाएं भी कर रही निराश
सरकारी स्कूलों में बच्चों की संख्या बढ़ाने के लिए शासन द्वारा कई तरह की योजनाओं का संचालन किया जा रहा है। इनमें बच्चों को निःशुल्क गणवेश, पाठ्य पुस्तकें, मध्यान्ह भोजन आदि सब शासन द्वारा मुहैया कराया जा रहा है। सभी बच्चों का स्कूलों में प्रवेश हो ही जाएं, इसके लिए शासन द्वारा बच्चों के जन्म और आंगनवाड़ी में जाना चालू करने के बाद से ही उन पर नजर रखते हुए पूरा रिकॉर्ड रखा जाता है। इसके बावजूद सभी बच्चों का सरकारी स्कूलों में दाखिला करवाने में शासन को सफलता नहीं मिल पा रही है और बच्चे कम होते ही जा रहे हैं।
निजी स्कूल बन रहे हैं कारण
सरकारी स्कूलों में लगातार कम हो रहे बच्चों की मुख्य वजह शहरों से लेकर ग्रामीण अंचलों तक में खुल रहे निजी स्कूल हैं। निजी स्कूलों की सुविधाएं और चकाचौंध पालकों को अपने मोहपाश में बांध लेती हैं और आर्थिक स्थिति ठीक ना होने के बावजूद भी पालक निजी स्कूलों में ही बच्चों का दाखिला कराते हैं। सेवानिवृत्त शिक्षक नंदकिशोर सोनी कहते हैं कि निजी स्कूलों द्वारा अब दूरस्थ ग्रामीण अंचलों तक बस सेवा तक का संचालन किया जा रहा है। यही कारण है कि अब ग्रामीण क्षेत्र के भी अधिकांश बच्चे निजी स्कूल में पढ़ते हुए नजर आ रहे हैं।
इन स्कूलों में लटकाने पड़े ताले
कम दर्ज संख्या के कारण पहले एक ही स्थान या गांव में अलग-अलग संचालित बालक और कन्या शाला को एक शाला करते हुए एक-एक शाला में ताला बंद करना पड़ा। इनमें अंधारिया, खापाखतेड़ा, बोरदेही, कचरबोह, लीलाझर, कोंढरखापा, मांडवी, पुसली, अम्बेडकर वार्ड बैतूल बाजार, भवानीपुरा बैतूल बाजार, माथनी, रोंढा, भडूस, खेड़ी सांवलीगढ़, सावंगा, बोरगांव, खंडारा, धामनगांव, झल्लार, चूनालोहमा, आदर्श धनोरा, सांडिया, छिंदी, बरखेड़, पौनी, एनस, बघोड़ा, आष्टा, चिचंडा, चिल्हाटी, सिरडी, काजली, बिसनूर, बिरूलबाजार, धाबला, मंगोनाखुर्द, छिंदखेड़ा और पोहर की शालाएं शामिल हैं।
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