राजीव रंजन तिवारी |
देश के सबसे बड़े राज्य उत्तर प्रदेश में विधानसभा चुनाव की सरगर्मियां तेज हो गई हैं। वजह स्पष्ट है, देश की सबसे बड़ी पार्टी कांग्रेस ने नए-नए शिगूफों के साथ अपना प्रचार अभियान तेज कर दिया है। यद्यपि यहां विधानसभा चुनाव वर्ष 2017 में होने वाले हैं, लेकिन सियासी योद्धा अभी से रणक्षेत्र में अपनी-अपनी तैयारियों को अंजाम देने में जुट गए हैं। आरंभिक दौर में इन तैयारियों के अंतर्गत अपने-अपने अंदाज में सियासी दल एक-दूसरे को बेहद रोचक ढंग से में जवाब देने की रणनीति पर काम कर रहे हैं। दिलचस्प यह है कि पार्टियों की इन तैयारियों को देखते हुए आम वोटर भी चुटकी लेने लगे हैं। अलग-अलग दलों में बंटे वोटरों को अपने पक्षकार दल के कारनामे बेहतर लग रहे हैं और वे विरोधियों पर निशाना साधने की कुटनीति पर भी गंभीरता से मंथन कर रहे हैं। फिलहाल, कांग्रेस और भाजपा की गतिविधियां चर्चा की केन्द्र में हैं। एकतरफ जहां कांग्रेसी संयमित अंदाज में लोगों से अपनी बातें बता रहे हैं वहीं भाजपा के लोग आक्रामक रूख अख्तियार किए हुए हैं। चर्चित चुनावी रणनीतिकार प्रशांत किशोर (पीके) ने कांग्रेस के लिए यूपी में औपचारिक रूप से मुख्य नारा ‘27 साल, यूपी बेहाल’ गढ़ा है तो इसका जवाब देने के लिए अनौपचारिक रूप से आरएसएस व भाजपा से जुड़े लोग घर-घर जाकर ‘चाचा-चाची का हाल’ का पूछ रहे हैं। खास बात यह है कि ‘चाचा-चाची का हाल’ पूछने के दरम्यान ही आरएसएस-भाजपा के लोग विरोधी दलों की जमकर खिंचाई कर रहे हैं। हालांकि अभी ‘चाचा-चाची का हाल’ कुछ खास करतब नहीं दिखा पा रहा है, पर ‘27 साल, यूपी बेहाल’ निश्चित रूप से मृतप्राय कांग्रेसियों में जोश भर दिया है। दरअसल, चुनावी अभियान के तहत उत्तर प्रदेश में ‘27 साल, यूपी बेहाल’ यात्रा निकाल रही कांग्रेस की स्थिति सूबे में बेहाल ही रही है, लेकिन इस बार नेहरू-गांधी की इस धरती पर कांग्रेसियों में नई ऊर्जा दिखाई दे रही है। दूसरे शब्दों में कहें तो कांग्रेसजनों में पुराना जोश और पंजे की ताकत लौटती दिख रही है। दरअसल, यह आकलन भीड़ को देखकर किया जा रहा है। क्योंकि जहां भी कांग्रेस की ‘27 साल, यूपी बेहाल’ यात्रा जा रही है, वहां अनुमान से कई गुणा ज्यादा भीड़ इकट्ठी हो रही है। यूपी में कांग्रेस की मुख्यमंत्री की उम्मीदवार शीला दीक्षित की प्रचार समिति के अध्यक्ष डा.संजय सिंह की कुशल रणनीतिक क्षमता का जबर्दस्त प्रदर्शन हो रहा है। इसका अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि किसी भी शहर अथवा कस्बे में कांग्रेस की ‘27 साल, यूपी बेहाल’ यात्रा के पहुंचने से पहले ही भारी हुजूम देखने को मिल रहा है, जो मायूस कांग्रेसियों में जोश भरने के लिए पर्याप्त है। कहा जा रहा है कि शायद ही कोई ‘27 साल, यूपी बेहाल’ यात्रा स्थल हो, जहां भारी भीड़ की वजह से कार्यकर्ताओं में धक्कामुक्की न करनी पड़ रही हो। राजनीति के जानकार बताते हैं कि कांग्रेस उन लोगों पर ज्यादा फोकस कर रही है, जिनकी उम्र 50-60 वर्ष के बीच है। जिन्होंने कांग्रेस के स्वर्णिम काल देखे हैं और कांग्रेस का भविष्य संवारने में अपने परिजनों के सहारे मजबूती से योगदान दे सकते हैं। जबकि युवाओं में जोश भरने के लिए प्रियंका गांधी के प्रचार में उतरने की चर्चा है। ‘27 साल, यूपी बेहाल’ यात्राओं के दौरान कांग्रेसी यह स्पष्ट कह रहे हैं कि जाति-धर्म के नाम पर बंट चुके उत्तर प्रदेश में कांग्रेस ढाई दशक बाद सत्ता में लौटेगी। इससे प्रदेश की तस्वीर बदलेगी। केन्द्र की भाजपा सरकार द्वारा कांग्रेसियों को परेशान करने के लिए सीबीआई और अन्य सरकारी तंत्र के दुरूपयोग का आरोप लगाते हुए दिग्गज नेता जनता की सहानुभूति पाने की कोशिशें भी कर रहे हैं। ‘27 साल, यूपी बेहाल’ यात्रा के दौरान एक और खास बात देखने को मिल रही है कि कोई भी कांग्रेसी नेता किसी भी विरोधी दल के नेता का नाम लेकर आरोप नहीं लगा रहा है। यदि कोई आरोप लगाने की जरूरत पड़ रही है तो केवल पार्टी का नाम लेकर इशारे-इशारे में कथित संबंधित घपले-घोटाले करने वाले गैर कांग्रेसियों की चर्चा कर तालियां बटोरी जा रही हैं। यूपी में कांग्रेस की सरकार क्यों जरूरी है, जैसे सवालों पर कांग्रेसी कह रहे हैं मुद्दा कोई एक हो तो बताई जाए। अनेक मुद्दे हैं, जिन्हें सुलझाने, यूपी में खुशहाली लाने और प्रदेश का खोया सम्मान वापस दिलाने के लिए कांग्रेस की सरकार यहां एकदम जरूरी है। यात्रा के दौरान उमड़ रही भीड़ से भी कांग्रेसी पूछ रहे हैं कि यूपी में कांग्रेस की सरकार चाहिए या नहीं, जवाब ‘हां’ में मिलने से कांग्रेसियों का हौसला कई गुणा बढ़ जा रहा है। यहां यह भी उल्लेखनीय है कि कोई भी कांग्रेसी दिग्गज यह कहना नहीं भूल रहा है कि यूपी में प्रियांका गांधी भी चुनाव प्रचार करेंगी। इस संदेश को सुनाते ही उमड़ी भीड़ की ओर से तालियां गड़गड़ाने लग रही हैं। इससे कांग्रेसियों का हौसला अफजाई भी हो रहा है। जबकि सच्चाई यह है कि प्रियंका गांधी एक डायनेमिक लीडर हैं और प्रचार में उतरने का फैसला उन पर ही छोड़ दिया गया है। उत्तर प्रदेश कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष और अभिनेता राज बब्बर पूरे आत्मविश्वास के साथ दावा कर रहे हैं कि यूपी में इस बार कांग्रेस की सरकार बनने जा रही है। लेकिन उन्हें यह नहीं पता कि यूपी में सत्ता तक पहुंचने की राह में कितने रोड़े हैं, जिनसे निपटने में कांग्रेस को अतिरिक्त ऊर्जा खर्च करना पड़ेगा। अब पता नहीं कि कांग्रेस अतिरिक्त ऊर्जा खर्च करने को तैयार है या नहीं। हां, इतना जरूर है कि इस बार कांग्रेसियों में कुछ अलग टाइप का जोश दिख रहा है, जो पार्टी के लिए सुखद संकेत है। लेकिन यह कहना जल्दबाजी होगी कि कार्यकर्ताओं का यह उत्साह मतदान के दिन तक कायम रहता है अथवा नहीं और कार्यकर्ता वोटरों को लुभाने में कितना कामयाब हो पाते हैं। ये तो रही कांग्रेस की बात। अब चर्चा करते हैं उसकी मुख्य प्रतिद्वंद्वी पार्टी भाजपा की। हाल ही में एक खबर आई थी कि कांग्रेस पार्टी के यूपी में चुनावी रणनीतिकार प्रशांत किशोर (पीके) की टीम के पचास लोगों को भाजपा ने अपने पाले में कर लिया है। इसका श्रेय भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह को दिया जा रहा है। जानकार बताते हैं कि पीके की टीम के कुछ लोग जबसे भाजपा खेमे के लिए काम करना शुरू किए हैं, तबसे भाजपा नेताओं में भी जोश आ गया है। हालांकि केन्द्र में सत्तारूढ़ होने के कारण भाजपाई तो पहले से ही जोश में हैं, लेकिन उसमें और वृद्धि देखी जा रही है। कहा जा रहा है कि भाजपा सबसे पहले कांग्रेस के स्लोगन ’27 साल, यूपी बेहाल’ पर हमला बोलने की तैयारी में है ताकि यह कांग्रेसी स्लोगन बेअसर हो जाए। हालांकि अभी इस बारे में आधिकारिक रूप से कोई घोषणा नहीं हुई है, लेकिन कहा जा रहा है कि अनौपचारिक रूप से आरएसएस और भाजपा के कैडर व कार्यकर्ता अभी से जनसंपर्क कर ‘चाचा-चाची का हाल’ पूछने लगे हैं। भाजपा सूत्रों का कहना है कि बेहद गोपनीय व कुटनीतिक अंदाज में भाजपा व संघ के कार्यकर्ता ‘चाचा-चाची का हाल’ पूछने के बहाने ‘चाचा-चाची’ के घरों में दाखिल होकर चाय-पानी पीने के दौरान ही अनायास सिचासी चर्चा छेड़ देते हैं। फिर क्या, भाजपा-संघ के कार्यकर्ता कांग्रेस, सपा और बसपा की न सिर्फ जबरदस्त बुराई कर रहे हैं बल्कि गैर भाजपाई नेताओं को भद्दी-भद्दी गालियां तक दे रहे हैं। यह अपुष्ट सूत्रों का कहना है। दूसरे शब्दों में कह सकते हैं कि गैर भाजपा नेताओं के खिलाफ पब्लिक के कानों में जहर भरने का काम आरंभ हो गया है। भाजपा के ही एक नेता ने यह रहस्योद्घाटन किया कि हिन्दुओं को लुभाने के लिए सांप्रदायिकता और हिन्दुओं में भी सवर्णों को पटाने के लिए दलितों की बुराई को हथियार बनाया जा रहा है। संघ-भाजपा के कार्यकर्ता स्पष्ट रूप से यह बता रहे हैं कि भाजपा को छोड़कर सभी पार्टियां मुस्लिम-दलित तुष्टिकरण में लगी हुई हैं, जो देश-प्रदेश के लिए ठीक नहीं है। खास बात यह है कि ‘चाचा-चाची’ को भाजपा नेताओं की बातें समझ में तो आ रही हैं, लेकिन वे लोग भाजपाइयों के अंदाज पर सवाल भी खड़ा कर रहे हैं। दरअसल, गैरभाजपाई दलों को खरी-खोटी सुनाते हुए भाजपा-संघ के कार्यकर्ता इस कदर उत्तेजित होकर गालियों के रूप में अपने शब्दों को अभिव्यक्त कर रहे हैं, जो कर्णप्रिय लगने के बजाय ‘चाचा-चाची’ का कर्णभेदन करता दिख रहा है। बहरहाल, देखना है कि शुरूआती दौर का यह ‘स्लोगन युद्ध’ चुनाव आने तक किस-किस तरह के रंगों में ढलता है।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार व चर्चित स्तंभकार हैं, उनसे मोबाइल फोन नं. 08922002003 पर संपर्क किया जा सकता है)
0 comments:
Post a Comment
आपकी प्रतिक्रियाएँ क्रांति की पहल हैं, इसलिए अपनी प्रतिक्रियाएँ ज़रूर व्यक्त करें।