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दिव्या स्पंदन उर्फ राम्या को देशद्रोही बताना कितना जायज?

राजीव रंजन तिवारी 
देश दक्षिणी राज्य कर्नाटक में देशद्रोह शब्द आजकल काफी चर्चा में है। हाल ही में कश्मीर संबंधी आयोजित किए गए एक कार्यक्रम के दौरान आज़ादी के नारे लगने पर एमनेस्टी इंटरनेशनल के खिलाफ भी पुलिस केस दर्ज कराया जा चुका है। अब अभिनेत्री से राजनेता बनीं दिव्या स्पंदन उर्फ राम्या को पाकिस्तान की तारीफ करना भारी पड़ा। कन्नड़ फिल्मों की जानी-मानी अभिनेत्री राम्या ने रक्षामंत्री मनोहर पर्रिकर के ‘पाकिस्तान जाना नर्क जाने जैसा अनुभव रहा’ वाले बयान के संदर्भ में कहा था कि पाकिस्तान नर्क नहीं है। वहां के लोग बिल्कुल हम जैसे हैं। उन्होंने हमारे साथ बहुत अच्छा बर्ताव किया। दरअसल, दक्षिण एशियाई क्षेत्रीय सहयोग संगठन यानी दक्षेस (सार्क) के सम्मेलन के सिलसिले में की गई अपनी हालिया पाकिस्तान यात्रा के बाद रम्या ने 20 अगस्त को यह बयान दिया था। इसके बाद से ही 33 वर्षीय अभिनेत्री और वर्ष 2011 से कांग्रेस पार्टी की नेता राम्या को ट्विटर पर कथित राष्ट्रविरोधी बयान देने के लिए लताड़ा जा रहा है। बेंगलुरू से करीब 250 किलोमीटर दूर दक्षिणी कर्नाटक के कोडागु में एक वकील ने उनके खिलाफ देशद्रोह का मामला दर्ज कराया है। राम्या ने अपने बयान पर कायम रहते हुए कहा कि मैं माफी नहीं मांगूंगी, क्योंकि मैंने कुछ गलत नहीं किया। मैं अपने विचार रखने के लिए स्वतंत्र हूं, लोकतंत्र का यही अर्थ होता है। कांग्रेस प्रवक्ता रणदीप सुरजेवाला ने कहा कि अगर पाकिस्तान से बेहतर संबंध की बात करना देशद्रोह है तो पीएम नरेंद्र मोदी के खिलाफ़ भी कार्रवाई होनी चाहिए, जो पाकिस्तानी पीएम के साथ मुलाक़ात करने के लिए अपना कार्यक्रम बदलकर उनके घर गए थे। पाकिस्तान एक अच्छा मेजबान है, ऐसा कहने पर देशद्रोह का आरोप? खैर, अब मामला कोर्ट में है, लेकिन प्रथम द्रष्ट्या राम्या को देशद्रोही ठहराना जायज नहीं लगता। आज जो देश के हालात बन रहे हैं, उसे देखकर ग्रेट ब्रिटेन के किंग-क्वीन की एक बात याद आ रही है। कहा जाता है कि ग्रेट ब्रिटेन के किंग-क्वीन को लगता था कि उनके साम्राज्य में सूरज नहीं डूबता। तब भी बहुत से देश उसके अधीन नहीं थे। अब तो ब्रिटेन भारत के किसी विशाल प्रदेश के बराबर भी नहीं रहा। इसलिए आजादी के आनंद-सुख और अधिकारों की सीमा होती है। भारत में तो सर्वशक्तिमान अवतार माने जाने वाले महापुरुषों ने अपनों के लिए भी लक्ष्मण रेखा तय की थी। इसलिए आजादी के गौरवशाली 70 वर्ष के बाद भी यह याद रखना होगा कि अधिकारों के साथ कर्तव्य एवं अभिव्यक्ति की लक्ष्मण रेखा को लांघना व्यक्ति, संस्थान, समाज और राष्ट्र को खतरनाक गर्त की ओर ले जा सकता है। निश्चित रूप से अभिव्यक्ति पर सत्ता की नकेल कभी स्वीकार नहीं की जा सकती है। लेकिन हाल के वर्षों में दुरुपयोग के गंभीर मामलों के साथ ही अनधिकृत व्यवस्था, कुछ संगठनों और असामाजिक तत्वों ने विभिन्न क्षेत्रों में अभिव्यक्ति पर अंकुश ही नहीं हमले-हत्या तक के प्रयास किए हैं। इस दृष्टि से यह मुद्दा आजादी के साथ महत्वपूर्ण बन गया है। संविधान में अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का अधिकार हर नागरिक के लिए मिला है। यही कारण है कि कुछ नियम-कानूनों के बावजूद अभिव्यक्ति के असीमित संचार माध्यमों के कारण हर क्षेत्र में इस अधिकार का सदुपयोग एवं दुरुपयोग भी हो रहा है। फिर सत्तर वर्ष पहले बने किसी कानून के पालन के नाम पर विभिन्न प्रदेशों की सरकारों, संगठनों या व्यक्तियों द्वारा आपराधिक श्रेणी वाले कानून के नाम पर लोगों को प्रताड़ित भी किया जा रहा है। अभिव्यक्ति का बड़ा माध्यम मीडिया है। ऐसा नहीं है कि वर्तमान परिदृश्य में मीडिया का एक वर्ग अधिक भ्रष्ट व बेईमान नहीं है। फिर भी ऐसे सैकड़ों पत्रकार-लेखक हैं, जो निर्भीक-निष्पक्ष ढंग से लिख-पढ़ रहे हैं और खतरों-हमलों का सामना कर रहे हैं। लोकतंत्र के विभिन्न अंगों के बीच संतुलन को नए सिरे से नापते रहने में कोई हर्ज नहीं है, लेकिन ये बहसें इतनी बड़ी और लंबी नहीं होनी चाहिए कि व्यवस्था रुक जाए और आम लोग सैद्धांतिक टकरावों के बोझ तले दबकर मरने लगें। भारत में न्यायपालिका और विधायिका के टकराव में अब लगभग यही स्थिति है। बौद्धिक मनोरंजन के लिए हम इसे न्यायिक सक्रियता या लोकतांत्रिक संस्थाओं के बीच संतुलन की बहस कह सकते हैं। अलबत्ता तल्ख हकीकत यह है कि भारत में न्याय का बुनियादी अधिकार राजनेताओं और न्यायमूर्तियों के बीच प्रतिष्ठा की लड़ाई में फंस गया है और अफसोस कि लड़ाई हद से ज्यादा लंबी खिंच रही है। आजादी के समारोह के मौके पर सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश टीएस ठाकुर ने सीधे प्रधानमंत्री से ही जजों की नियुक्ति में देरी की कैफियत पूछ ली। फिर भारत में क्रिकेट के तमामों विवादों के गढ़ बीसीसीआइ के अध्यक्ष और बीजेपी नेता अनुराग ठाकुर ने क्रिकेट बोर्ड में पारदर्शिता को लेकर सुप्रीम कोर्ट के आदेश को न केवल चुनौती दी बल्कि सीधे मुख्य न्यायाधीश की नीयत पर सवाल उठा दिया। यह दोनों घटनाएं बताती हैं कि पिछले साल न्यायिक नियुक्ति आयोग (एनजेएसी) पर सुप्रीम कोर्ट के इनकार के बाद विधायिका और न्यायपालिका के बीच अविश्वास कितना गहरा चुका है। अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के मुद्दे पर कुछ दिन पहले दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने भाजपा प्रमुख अमित शाह को घेरने की कोशिश की थी। अमित शाह ने अपने एक ट्वीट में कहा था फ़्रीडम ऑफ़ स्पीच के नाम पर देश को बांटने वाली विचारधारा के ख़िलाफ़ एकजुट होना होगा, देशभक्ति और राष्ट्रवाद के बगैर कोई राष्ट्र एक नहीं रह सकता। अमित शाह के इस ट्वीट पर जवाब देते हुए केजरीवाल ने ट्वीट किया कि राष्ट्रवाद की आड़ में जो फ़्रीडम ऑफ़ स्पीच और जनतंत्र को कुचलकर तानाशाही लाना चाहते हैं, उनके ख़िलाफ़ एकजुट होना होगा। खैर, ताजा मामला ये है जिसमें राम्या ने कहा कि मैं सार्क सम्मेलन में हिस्सा लेने के लिए इस्लामाबाद गई थी। उस मीटिंग में मैंने कई ऐसे रास्तों को देखा जिससे दोनों देशों के रिश्ते मजबूत करके दोनों देश अपनी-अपनी जरूरतें पूरी कर सकते हैं। देश में अपने आपको राष्ट्रवादी बताने वाले लोग कभी नहीं चाहते कि समस्याओं को सही तरीके से सुलझाया जाए। उनके अंदर एक ऐसी देशभक्ति है जो सड़क पर शोर मचाने से शुरू होकर वहीं पर खत्म हो जाती है। इस सबसे उन्हें टीवी पर प्राइम टाइम में अटेंशन तो मिल जाती है लेकिन शांति बनाए रखने के लिए कुछ और करना ही होगा। मैं अपनी पूरी आस्था से देश की सेवा करती हूं। मेरा मानना है कि देश को आगे लेकर जाने के लिए पड़ोसियों से संबंध अच्छे होने ही चाहिए। संबंध अच्छे करने के समाधान भी वक्त-वक्त पर खोजे जाने चाहिए। राम्या ने कहा था कि पाकिस्तान नर्क नहीं है। यहां के लोग हमारे जैसे ही हैं। राम्या की इस टिप्पणी के बाद उनके गृह राज्य कर्नाटक के एक वकील ने गंभीर आपत्ति जताई है और कोर्ट में दी एक निजी शिकायत में उनके खिलाफ़ देशद्रोह का मुक़दमा चलाने की मांग की। इस मामले में सुनवाई 27 अगस्त को होगी। दरअसल, देशद्रोह क़ानून एक औपनिवेशिक क़ानून है, जो ब्रितानी राज ने बनाया था लेकिन भारतीय संविधान में उसे अपना लिया। भारतीय दंड संहिता में देशद्रोह की परिभाषा में लिखा है कि कोई भी व्यक्ति सरकार-विरोधी सामग्री लिखता है या बोलता है या फिर ऐसी सामग्री का समर्थन भी करता है तो उसे आजीवन कारावास या तीन साल की सज़ा हो सकती है। हालांकि ब्रिटेन ने ये क़ानून अपने संविधान से हटा दिया है, लेकिन भारत में ये क़ानून आज भी है। हाल ही में जेएनयूएसयू के अध्यक्ष कन्हैया कुमार और कई छात्र नेताओं के ख़िलाफ़ ये आरोप लग चुका है। कन्हैया कुमार और उमर ख़ालिद को भी गिरफ़्तारी के बाद ज़मानत मिली। गुजरात में हार्दिक पटेल पर भी देशद्रोह का मामला दर्ज हुआ। उन्हें भी सशर्त ज़मानत मिल गई। इससे पहले अरुंधति रॉय और बिनायक सेन पर भी देशद्रोह का आरोप लग चुका है। मानवाधिकार कार्यकर्ता बिनायक सेन को तो देशद्रोह के आरोप में आजीवन कारावास की सज़ा सुना दी गई थी, जिसके खिलाफ उन्होंने सुप्रीम कोर्ट में केस लड़ा। वहाँ से उन्हें ज़मानत मिली। कार्टूनिस्ट असीम त्रिवेदी को कार्टूनों के आधार पर राष्ट्रीय चिन्हों का अपमान करने, संविधान को नीचा दिखाने और देशद्रोही सामग्री छापने के आरोप में गिरफ्तार किया गया था। एक ओर भारतीय संविधान में देशद्रोह अपराध है। दूसरी ओर संविधान में लोगों को अभिव्यक्ति की आज़ादी भी दी गई है।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार व चर्चित स्तंभकार हैं। उनसे फोन नं. 08922002003 पर संपर्क किया जा सकता है)
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