नई दिल्ली। 2010 में घाटी में घातक हिंसा के दौर में वार्ताकारों की तीन सदस्यीय टीम ने एक साल तक जम्मू-कश्मीर के हर तबके से बातचीत कर इस मसले के हल का ब्लू प्रिंट तैयार किया। वरिष्ठ पत्रकार दिलीप पडगांवकर, शिक्षाविद राधा कुमार और पूर्व सूचना आयुक्त एमएम अंसारी की इस टीम ने राजनीतिक समाधान को एकमात्र विकल्प बताते हुए केंद्र सरकार को अपनी रिपोर्ट सौंपी। लेकिन पांच साल बाद कश्मीर के हालात फिर उसी मुकाम पर हैं। इस टीम में शामिल राधा कुमार का कहना है कि केंद्र सरकार कश्मीर के लोगों का भरोसा नहीं जीत पा रही। यह कश्मीर को दिल्ली के चश्मे से देखने का नतीजा है और यह गलती हर सरकार कर रही है। राधा कुमार ने कहा कि केंद्र ने कई मौके गंवाए हैं। कश्मीर में शांति बहाली सिर्फ राजनीतिक समाधान से ही संभव है। वार्ताकारों और संसदीय कार्यसमूह (वर्किंग ग्रुप) की रिपोर्ट में हर उस बात का जिक्र है जिससे मामला भड़कता है।
लेकिन एक दो कोशिशों को छोड़ सरकार ने कोई कदम नहीं उठाया। कश्मीर में पैलेट गन के इस्तेमाल पर उन्होंने कहा कि पैलेट पांव में लगने के बजाय आंख और सिर में क्यों लग रहे हैं। इस तरह की गलतियां कर हम पाकिस्तान को बार बार मौका देते हैं। उन्होंने कहा कि लोगों में पीडीपी भाजपा गठबंधन सरकार के प्रति गुस्सा है। गठबंधन की कार्यसूची (एग्रीमेंट ऑफ एलायंस) में वार्ताकारों की रिपोर्ट का ज्यादातर हिस्सा शामिल किया गया है। लेकिन क्रियान्वयन में परिपक्वता नहीं है। महबूबा ने केंद्र के साथ एजेंडा तय करने में तीन महीने लगा दिए। हालांकि महबूबा ने शुरुआती बयान में पाकिस्तान समेत सभी पक्षों को बातचीत में शामिल करने की बात कहकर समझदारी दिखाई। लेकिन बुहरान वानी की मौत के बाद हालात ऐसे बने कि उन्हें बैकफुट पर आना पड़ा। कुमार ने यह भी कहा कि कश्मीर समस्या के समाधान में पाकिस्तान को आज नहीं तो कल शामिल करना ही होगा।लखासतौर पर सीमा पार आतंकवाद खत्म करने और एलओसी के दोनों तरफ के व्यापार जैसी गतिविधियों के लिए। केंद्र भी सहमत है कि सिर्फ दोनों देशों के बीच बात हो।
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