दिल्ली। मानवाधिकार कार्यकर्ता इरोम शर्मिला ने मंगलवार को 16 साल बाद अनशन तोड़ दिया। उन्होंने शहद चखकर अनशन तोड़ा। इस मौके पर वह बेहद भावुक हो गईं और रोने लगीं। अनशन तोड़ने के बाद उन्होंने कहा कि वह मणिपुर की सीएम बनकर लोगों की सेवा करना चाहती हैं। 42 साल की इरोम ने वर्ष 2000 में सशस्त्रम बल विशेषाधिकार अधिनियम के खिलाफ अनशन शुरू किया था। 5 नवंबर सन 2000 वो आखिरी दिन था जब इरोम ने खाने का स्वाद चखा था। इंफाल के मालोम गांव में 10 लोगों के मारे जाने के बाद इरोम ने तब तक खाना न खाने की कसम खाई थी जब तक कि ये कानून खत्म नहीं कर दिया जाता। इरोम ने अभी अपने परिवार तक से अपने फैसले के बारे में बात नहीं की है। मानवाधिकार कार्यकर्ता बबूल लोइटोंगबम उन चंद लोगों में से हैं जो अस्पताल में नजरबंद शर्मिला से उनके नए फैसले के बारे में उनसे थोड़ी बहुत बात कर पाए। वो बताते हैं, "इरोम को सुबह अस्पताल से 15 मिनट के लिए बाहर आने देते हैं ताकि उन्हें धूप मिल सके। उसी 15 मिनट में कुछ दिन पहले मैं भी अस्पताल पहुंचा, इरोम ने बताया कि वो चाहती तो उसी दिन भूख हड़ताल खत्म कर सकती थीं।"
अनशन तोड़ने के बाद इरोम शर्मिला ने कहा ''मुझे मणिपुर की 'आयरन लेडी' कहा जाता है, इसलिए अपने नाम को सलामत रखने के लिए राजनीति में उतरूंगी। मुझे राजनीति के संबंध में ज्यादा कुछ नहीं पता लेकिन मुख्यमंत्री बनी पहले अफस्पा को हटाऊंगी।'' 42 साल की इरोम शर्मिला के अनशन तोड़ने से काफी लोग नाराज भी हैं। शर्मिला कह रही हैं कि उन्होंने महात्मा गांधी के मत का पालन किया है। इरोम शर्मिला का कहना है उनकी समझ नहीं आर रहा कि अतिवादी उनके चुनाव लड़ने का क्यों विरोध कर रहे हैं। पत्रकरों से बातचीत के दौरान शर्मिला ने कहा कि उनके करीबी लोग भी अनशन तोड़ने के फैसले के हक में नहीं थे। शर्मिला ने आगे कहा कि वह कोई देवी नहीं हैं, एक आम इंसान हैं और इंसान रहकर ही वह बहुत कुछ कर सकती हैं। शर्मिला कहती हैं कि मणिपुर के लोगों को उनकी शक्ति का एहसास दिलाकर समाज में सही बदलाव के लिए पहल करेंगी। उन्होंने कहा कि चुनाव आयोग से संपर्क के बाद ही वह आगे की दिशा तय करेंगी।
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