नई दिल्ली। मार्क्सवादी इतिहासकार इरफान हबीब के एक पत्र के जवाब में माकपा के पूर्व महासचिव प्रकाश कारात ने तीखी प्रतिक्रिया व्यक्त की है। उन्होंने नाम लिए बगैर इरफान हबीब के साथ ही महासचिव सीताराम येचुरी को भी आड़े हाथों लिया है। इरफान हबीब ने माकपा पोलित ब्यूरो को एक कड़ी चिट्ठी लिखकर पार्टी की राजनीतिक-रणनीतिक लाइन को लेकर सवाल उठाया था। इरफान हबीब के अनुसार, `माकपा को भाजपा एवं संघ परिवार जैसे फासीवादी ताकतों को रोकने के उपाय सोचने चाहिए। न कि कांग्रेस को लेकर बेमतलब की बहस में उलझना चाहिए।` जवाब में प्रकाश कारात का मन्तव्य आया है कि `देश अभी जो राजनीतिक हालात हैं, उसमें यह कहना उचित नहीं कि फासीवाद आ गया है। भाजपा और संघ परिवार की जो कोशिश चल रही है, उसे अधिनायकवादी मानसिकता कहा जा सकता है। इन हालात में माकपा को किसी अन्य की जरूरत नहीं। माकपा की वर्गसंघर्ष की लाइन ही पर्याप्त है।`
माकपा की रणनीतिक-राजनीतिक लाइन को लेकर केरल लॉबी और बंगाल लाइन के नेताओं के बीच। खींचतान की स्थिति बनी हुई है। बंगाल में विधानसभा चुनाव के मौके पर कांग्रेस को साथ लिए जाने के औचित्य को लेकर बहस जारी है। इरफान हबीब ने बंगाल लाइन की राय के साथ इत्तफाक रखते हुए प्रकाश कारात के एजेंडे पर सवाल उठाया था। उन्होंने पूछा था, `ऐसे वक्त में जब देश में भाजपा एवं संघ परिवार ने लोकतंत्र, अर्थव्यस्था और शिक्षानीति का ढांचा ही बदल डालने का एजेंडा हाथ में लिया है, माकपा में कांग्रेस का साथ लेने को लेकर बहस क्यों चल रही है? जबकि, जरूरी यह है कि भाजपा और संघ जैसी फासीवादी ताकतों को रोकने के लिए कांग्रेस समेत सभी धर्मनिरपेक्ष ताकतों को माकपा एकजुट करे।` बंगाल में कांग्रेस का साथ लेने को लेकर चल रही बहस में इरफान हबीब के कूद पड़ने से साफ है कि केरल और बंगाल लॉबी के बीच कटुता और बढ़ेगी। बंगाल लाइन के नेता दिवंगत ज्योति बसु के एजेंडे को आगे बढ़ा रहे हैं कि भाजपा को लेकर के लिए धर्मनिरपेक्ष दलों को एकजुट करने का काम माकपा को हाथ में लेना होगा। इरफान हबीब ने अपने पत्र में लिखा है, `केंद्र में भाजपा नीत सरकार को किसी सामान्य बुर्जुआ पार्टी की सरकार मानना गलत होगा। केंद्र में भाजपा की सरकार आने के बाद संघ परिवार ने अपना फासीवादी एजेंडा लागू कराना शुरू कर दिया है।`
इरफान हबीब के तर्क का खंडन करने के लिए प्रकाश कारात ने माकपा के सर्वाधिक प्रसार वाले मलयाली मुखपत्र में लेख लिखा। कारात का तर्क है कि भाजपा को रोकने के लिए कांग्रेस जैसे दलों का साथ लेने की जरूरत नहीं है। पार्टी को अपने वर्गसंघर्ष की लाइन को ही धार देनी चाहिए। उन्होंने लिखा, `भाजपा और संघ परिवार जो कर रहे हैं, उसे अधिनायकवादी मानसिकता माना जा सकता है। फासीवादी रंग देखने का वक्त नहीं आया है। भारत में अभी भी फासीवाद का दौर नहीं आया है।` केरल में पार्टी के मलयाली मुखपत्र में लेख लिखे जाने की टाइमिंग को लेकर बातें उठ रही हैं। माकपा में केरल लॉबी की सोच को कट्टरपंथी माना जाता है। माकपा में अब तक किसी भी पूर्व महासचिव ने पार्टी की राजनीतिक-रणनीतिक लाइन को लेकर इतनी सक्रियता नहीं दिखाई थी। गौरतलब है कि बंगाल में कांग्रेस का साथ लेने को लेकर पोलित ब्यूरो में जो बहस हुई, उसमें बंगाल लाइन के नेताओं की गलती बताते हुए प्रकाश कारात ने ही नोट दाखिल किया था। जब यह फैसला हो रहा था, तब सीताराम येचुरी ने बंगाल के नेताओं का साथ दिया था। माकपा में यह चर्चा गरगर्म है कि ऐसा कर माकपा में कोई लंबी तैयारी तो नहीं कर रहे प्रकाश कारात!
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