नई दिल्ली। उत्तराखंड के बाद सुप्रीम कोर्ट ने एक असाधारण फैसला देते हुए अरुणाचल प्रदेश में भी कांग्र्रेस सरकार को वापसी बहाल कर दिया। पांच सदस्यीय पीठ ने एकमत से निर्णय दिया कि जिस तरह अरुणाचल में राज्यपाल ने फैसले लिए और निर्देश दिए, वे असंवैधानिक थे। लिहाजा कोर्ट ने विधानसभा में बहुमत साबित करने के बावजूद कलिखो पुल सरकार की जगह फिर से कांग्र्रेस के पूर्व मुख्यमंत्री नबाम तुकी को बहाल कर दिया है। जाहिर तौर पर यह केंद्र सरकार के लिए झटका है और मानसून सत्र से पहले आए इस फैसले ने सत्र के हंगामेदार रहने का अंदेशा भी बढ़ा दिया है। पिछले पांच-छह महीने में उत्तराखंड और अरुणाचल राजनीतिक चर्चा के विषय रहे हैं। चुनावों में लगातार पस्त हो रही कांग्र्रेस को इन दोनों राज्यों को लेकर कोर्ट के फैसलों ने बल दे दिया है। इतना ही नहीं, इसने पूरे विपक्ष को राजनीतिक हथियार भी दे दिया है।
सुप्रीम कोर्ट के फैसले में राज्यपाल की भूमिका पर तीखी टिप्पणी है। अदालत का फैसला पढ़ते हुए जस्टिस जेएस खेहर ने राज्यपाल की भूमिका पर सवाल खड़ा किया और कहा कि जिस तरह उन्होंने सत्र का समय बदला, फिर सत्र जिस तरह चलाया गया, वह असंवैधानिक था। लिहाजा उनके सारे फैसले रद होते हैं और उसी आलोक में पुरानी सरकार की वापसी होती है। इसलिए राज्य में 15 दिसंबर, 2015 की स्थिति बहाल होगी। अदालत ने कहा कि विधानसभा सत्र को पहले बुलाने का राज्यपाल का निर्णय संविधान के अनुच्छेद 163 और 174 के खिलाफ है। विधानसभा सत्र को कैबिनेट की सलाह पर बुलाने की प्रक्रिया की अनेदखी कर राज्यपाल ने अपने अधिकारों का दुरुपयोग किया है। सर्वोच्च अदालत ने यह फैसला राज्यपाल के निर्णयों को असंवैधानिक ठहराने की परिधि में दिया है। इसमें तुकी सरकार को बर्खास्त कर राष्ट्रपति शासन लगाने को लेकर कोई टिप्पणी नहीं की गई है।
नबाम तुकी सरकार बहाल करने के सर्वोच्च अदालत के फैसले के बाद अरुणाचल में राजनीतिक स्थिति जटिल और दिलचस्प हो गई है। कांग्रेस के सामने विधानसभा में बहुमत साबित करने की चुनौती बढ़ गई है। क्योंकि कांग्रेस के कई विधायक खेमा बदल कर कलिखो सरकार का न केवल समर्थन कर रहे थे बल्कि उसके हिस्सा भी थे। जाहिर तौर पर विधानसभा में तुकी सरकार को बहुमत साबित करने की स्थिति में इन विधायकों को पार्टी में लौटाने की चुनौती से रुबरू होना पड़ेगा। जो भी हो, कांग्र्रेस और विपक्ष उत्साहित है। कांग्र्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी, उपाध्यक्ष राहुल गांधी, माकपा नेता सीताराम येचुरी समेत विपक्षी नेताओं ने इसे लोकतंत्र की जीत बताते हुए यह भी स्पष्ट कर दिया है कि मानसून सत्र गर्म रहेगा और राज्यपाल को हटाने की मांग जोर पकड़ेगी। सरकार और भाजपा के पास बचाव के रास्ते हैं। कानून मंत्री रविशंकर प्रसाद ने अध्ययन के बाद प्रतिक्रिया देने की बात कही है। फैसले पर पुनर्विचार को लेकर वह फिलहाल चुप हैं। लेकिन यह जरूर संकेत दे दिया कि स्थिति बहुत सामान्य नहीं है। वैसे, कलिखो पुल ने कहा है कि वे सुप्रीम कोर्ट के इस निर्णय के खिलाफ पुनर्विचार याचिका तो दायर करेंगे ही, तुकी सरकार के लिए विधानसभा में बहुमत साबित करना मुश्किल होगा। अभी विधानसभा में नबाम तुकी को बहुमत करना बाकी है। इसमें बागी विधायक कांग्रेस का खेल बिगाड़ सकते हैं। 20 बागी विधायकों को कांग्रेस में लौटाना आसान नहीं होगा। ऐसे में अगर तुकी बहुमत साबित करने में नाकाम रहे तो कांग्रेस को सुप्रीम कोर्ट में मिली जीत हार में बदल जाएगी। आइए देखें, कितने विधायक किस तरफ हैं। उत्तराखंड से सीख लेते हुए नबाम तुकी सरकार विश्वास मत प्रस्ताव पेश करने से पहले 21 बागियों को अयोग्य घोषित करा दे। तब विधानसभा 39 सदस्यीय हो जाएगी। ऐसे में बहुमत के लिए 20 विधायकों की ही जरूरत पड़ेगी। कांग्रेस के पास 21 विधायक पहले से हैं।
राहुल की अपील, सभी सेक्यु्लर दल मिलकर मोदी को करें पीछे
कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी ने अपील की है कि भारतीय जनता पार्टी के खिलाफ सभी सेक्युशलर दलों को एकजुट होना होगा। राहुल ने विभिन्नह पार्टियों के नेताओं और मुस्लिम समूहों की नई दिल्लीे में हुई बैठक में कहा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और आरएसएस देश को धर्म और जाति के आधार पर बांटने की कोशिश कर रहे हैं। ऐसी सांप्रदायिक ताकतों को एकजुट होकर हराया जा सकता है। जमायत उलेमा के मुखिया मौलाना अरशद मदनी द्वारा आयोजित ईद मिलन कार्यक्रम में राहुल ने कहा, ”देश में लोगों को बांटना बड़ा आसान है, लेकिन उन्हें एक करना बहुत मुश्किल।” कार्यक्रम में आरएलडी के अजीत सिंह, जेडीयू के शरद यादव, सीपीआई एम के सीताराम येचुरी, सीपीआई के अतुल कुमार अंजान, सपा के अशोक मलिक और आप के संजय सिंह मौजूद रहे। इसके अलावा कई मुस्लिम संगठन भी समारोह में शामिल हुए। बैठक में कांग्रेस के उत्त।र प्रदेश प्रभारी गुलाम नबी आजाद के अलावा उत्तहर प्रदेश के ही करीब दर्जन भर नेता भी मौजूद रहे। राहुल गांधी ने कहा कि सेक्युालर वोटों के बिखराव ने भाजपा को राजनीतिक रूप से फायदा पहुंचाया है। उन्हों्ने कहा, ”अगर हमें सांप्रदायिक ताकतों को हराना है, तो हमें एक होना होगा।” वहीं जमायत उलेमा-ए-हिंद के मौलाना अरशद मदनी ने कहा कि उनकी पार्टी कभी भी ‘सांप्रदायिक और फासीवादों ताकतों’ को देश का सेक्युकलर चरित्र बदलने नहीं देगी। शरद यादव ने कहा कि सेक्युलर भारत में बहुमत में हैं। उन्हों्ने कहा, ‘लेकिन यह देखा गया है कि सेक्युलर वोट बंट जाते हैं, जिससे भाजपा और उसकी सहयोगी पार्टियों को फायदा होता है। हमें बढ़ती सांप्रदायिक ताकतों को रोकने के लिए एक विस्तृत मंच देने की जरूरत है।
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