चंडीगढ़। पंजाब विधानसभा चुनावों की घड़ी जैसे जैसे नज़दीक आती जा रही है , वैसे वैसे ही शिरोमणि अकाली दल के अपनी सहयोगी पार्टी भाजपा को दबाव में लेने के प्रयास तेज़ होते जा रहे हैं। पंजाब में प्रमुख विपक्षी दल कांग्रेस और आम आदमी पार्टी की मज़बूती के मद्देनज़र अकाली दल की इच्छा है कि मिलकर चुनाव लड़ने की स्थिति में भाजपा को कम से कम सीटें दी जाए और यदि मोदी सरकार के कामकाज को आधार बना कर भाजपा ऐन वक़्त पर साथ छोड़ना चाहे तो वह ऐसा भी ना कर सके। अपनी इसी रणनीति के तहत अकाली दल ने उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड में पांव पसारने शुरू कर दिए हैं अकाली दल अब इन राज्यों में भी गठबंधन के नाम पर भाजपा से अच्छी ख़ासी सीटें मांगने जा रहा है। चूंकि इन राज्यों में अकालियों का कोई वजूद नहीं है अतः उसकी ऐसी किसी भी मांग को भाजपा आसानी से स्वीकार नहीं कर सकती। इसी के एवज़ में अकाली पंजाब में मनमानी शर्तें कबूल करने को दबाव बनाना चाहते हैं।
कभी उत्तर प्रदेश के प्रमुख सचिव रहे सेवानिवृत आईएएस अधिकारी सरदार राय सिंह को अकाली दल की ओर से उत्तर प्रदेश और उतराखंड की बागडोर सौंपी गई है। राय सिंह इन दिनो पूरे लाव-लश्कर के साथ इन राज्यों के तमाम जनपदों में जा रहे हैं। यहा गाज़ियाबाद में अकाली दल के गठन के सिलसिले में एक कार्यक्रम को संबोधित करते हुए उन्होंने घोषणा की कि उनकी पार्टी इन राज्यों में कम से कम सौ सीटों पर चुनाव लड़ना चाहती है। उन्होंने बताया कि तराई और पश्चिमी उत्तर प्रदेश के अनेक जनपदों में पार्टी की इकाइयों का गठन भी हो चुका है। वह अनेक विधानसभा सीटों के नाम भी गिनाते हैं जहां से उनकी पार्टी चुनाव लड़ेगी। याद रहे पंजाब के पिछले विधानसभा चुनाव में अकालियों ने भाजपा को मात्र 22 शहरी सीटें दी थीं और शेष सभी 94 सीटों पर ख़ुद चुनाव लड़ा था। अकाली 54 सीटों पर और भाजपाई 12 सीटों पर विजयी हुए थे। मगर लोकसभा चुनावों के बाद से पंजाब की फ़िजां बदलीं हुईं है और यहां आम आदमी पार्टी एक बड़ा घटक बन कर उभरी है। इन चुनावों में आप ने ना केवल 13 में से 4 लोकसभा सीटों पर क़ब्ज़ा जमा लिया था बल्कि 25 फ़ीसदी वोट लेकर भी सबको चौंका दिया। अकालियों की ताज़ा क़वायद आप के समक्ष सबसे बड़ी पार्टी के रूप में खड़े दिखना भी माना जा रहा है।
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