नई दिल्ली। उत्तर प्रदेश में कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी या उनकी बहन प्रियंका गांधी वाड्रा को मुख्यमंत्री पद का उम्मीदवार बनाए जाने के प्रशांत किशोर के प्रस्ताव को कांग्रेस ने भले ही खारिज दिया हो, लेकिन प्रशांत इससे डिगे नहीं हैं। भारतीय राजनीति में एक कुशल रणनीतिकार की पहचान बना चुके प्रशांत ने यूपी में अगले साल होने वाले विधानसभा चुनाव के लिए कांग्रेस के सामने जीत का नया फॉर्मूला पेश किया है। उनके करीबी सूत्रों के मुताबिक, प्रशांत किशोर ने कांग्रेस को सीएम पद के लिए एक ऐसा ब्राह्मण नेता चुनने को कहा, जो कि बाहरी हो और वोटरों एवं जमीनी स्तर पर कार्यकर्ताओं में जोश भर सके। सूत्रों के मुताबिक, 'इस श्रेणी में राहुल और प्रियंका सहित करीब पांच नेता फिट बैठते हैं।'
सूत्रों का कहना है कि अभी प्रशांत किशोर का दो ही मुख्य लक्ष्य है, पहला यूपी के ब्राह्मणों (जो कि कुल वोटरों का करीब 13 फीसदी हैं) को यह यकीन दिलाना कि कांग्रेस ही उनके लिए सबसे अच्छी पार्टी है और दूसरा यह सुनिश्चित करना कि यूपी में गांधी भाई-बहनों की संभावित भूमिका की अटकलों सहित विभिन्न मुद्दों को लेकर पार्टी की खूब चर्चा रहे। उनका ऐसा मानना है कि यह रणनीति कांग्रेस को यूपी की सत्ता के गंभीर दावेदार के तौर पर पेश करेगी और साल 2014 के लोकसभा चुनाव में करारी शिकस्त झेलने वाली यह पार्टी चुनावी समर में मजबूती से खम ठोकेगी। सूत्रों ने कहा, 'बीते 45 दिनों में पारंपरिक और नए मीडिया (वेब एवं सोशल) में कांग्रेस को बाकी तीनों मुख्य पार्टियों की तुलना में ज्यादा कवरेज मिली है। पार्टी एक बार फिर से यूपी के राजनीतिक बहस के केंद्र में आ गई है।'
गौरतलब है कि देश में हुए दो अहम चुनावों में शानदार जीत का सेहरा 37 वर्षीय प्रशांत किशोर के सिर पर ही बांधा जाता रहा है। साल 2014 के लोकसभा चुनाव में भारी बहुमत के साथ बीजेपी की सत्ता में वापसी का श्रेय काफी हद तक किशोर को भी जाता है। वहीं बिहार में नीतीश कुमार की जीत में भी किशोर की रणनीति का अहम हाथ माना जाता है। तभी अपनी जीत से गदगद सीएम नीतीश कुमार ने उन्हें मंत्री का दर्जा दे रखा है। इन दोनों जीत के साथ भारत के राजनीतिक परिदृश्य में प्रशांत किशोर की तूती बोलने लगी। हालांकि इसके बाद उन्होंने उत्तर प्रदेश में कांग्रेस के चुनावी रणनीतिक सलाहकार की जिम्मेदारी संभाली है, जिसे उनके करियर की सबसे कठिन चुनौती माना जा रहा है। लोकसभा चुनाव में कांग्रेस राज्य की 80 संसदीय सीटों में महज दो पर ही जीत सकी थी। वहीं राज्य के विधानसभा में कांग्रेस के 30 सदस्य हैं।
कांग्रेस से जुड़े सूत्रों ने कहना है कि यूपी में प्रशांत किशोर ने सारे जोड़ घटाव कर लिए हैं। वह कहते हैं, 'दूसरों राज्यों से अलग यहां ब्राह्मणों के वोट काफी अहम हैं, लेकिन वे खुद को उपेक्षित महसूस करते हैं। किशोर की रणनीति कांग्रेस के पुराने वोटबैंक मुस्लिम, ब्राह्मण और गैर दलित ओबीसी वोटरों को वापस उसकी ओर लाना है।' किशोर से हिसाब से अगर ये जातियां कांग्रेस के साथ वापस आ जाती हैं, तो उसे राज्य में 27-28% वोट मिल सकता है, जो कि पार्टी को यूपी की सत्ता दिला देगी।
राहुल गांधी इस साल संभालेंगे पार्टी की कमान
कांग्रेस को उम्मीद है कि राहुल गांधी इस साल पार्टी के अध्यक्ष का पद संभालेंगे। पार्टी ने वस्तुत: उन खबरों को खारिज करने के दौरान यह बात कही जिनमें कहा गया है कि राहुल को 2017 के उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में पार्टी की तरफ से मुख्यमंत्री पद के उम्मीदवार के तौर पर पेश किया जाएगा। पार्टी नेता जयराम रमेश ने कहा कि राहुल गांधी अमेठी से सांसद और कांग्रेस के उपाध्यक्ष हैं। हम सब उम्मीद करते हैं कि वह 2016 में कांग्रेस के अध्यक्ष बनेंगे। रमेश ने यह बात उस सवाल के जवाब में कही जब उनसे उन खबरों के बारे में पूछा गया जिसमें कहा गया है कि पार्टी के चुनावी रणनीतिकार प्रशांत किशोर ने उन्हें सुझाव दिया है कि राहुल को मुख्यमंत्री पद के उम्मीदवार के तौर पर पेश किया जाना चाहिए। खबरों के अनुसार किशोर इस बात के पक्ष में है कि या तो प्रियंका गांधी या राहुल मुख्यमंत्री पद के उम्मीदवार के तौर पर राज्य में विधानसभा चुनाव में पार्टी का नेतृत्व करें। प्रियंका को मुख्यमंत्री पद का उम्मीदवार बनाए जाने की संभावना पर रमेश ने कहा कि मुझे कोई जानकारी नहीं है। खबरों के अनुसार किशोर का मानना है कि कांग्रेस राहुल गांधी को प्रोजेक्ट करके और अगर लोग भरोसा करने लगे कि वह पार्टी को चुनाव में जीत दिला सकते हैं तब 2019 में सत्ता में वापस आ सकती है। साथ ही खबरों में यह भी कहा गया है कि अगर राहुल अपनी सहमति नहीं देते हैं तो प्रियंका का नाम उछाला जाना चाहिए। अगर दोनों इस प्रस्ताव को ठुकरा देते हैं तो किशोर दिल्ली की पूर्व मुख्यमंत्री शीला दीक्षित का नाम सुझा सकते हैं। इस बात की अटकलें हैं कि कांग्रेस इस महीने उत्तर प्रदेश कांग्रेस में बदलाव ला सकती है। निर्मल खत्री पिछले कुछ वर्षों से प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष हैं जबकि प्रदीप माथुर कांग्रेस विधायक दल के नेता हैं। कांग्रेस 1989 से ही राज्य में सत्ता से बाहर है। उसी दौर में बसपा का उदय हुआ और राम मंदिर और मंडल जैसे मुद्दों ने उसे हाशिए पर ला दिया, जबकि वह स्वतंत्रता के बाद से लगभग पूरे समय सत्ता में रही थी।
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