नई दिल्ली। केंद्र सरकार से बढ़ते टकराव के बीच कांग्रेस ने शनिवार को ऐलान किया कि वह छह मई को संसद का घेराव करेगी, ताकि उत्तराखंड के राजनीतिक संकट, सूखे के हालात और विपक्ष के खिलाफ चलाए जा रहे 'छल-कपट और जानबूझकर झूठ से भरे अभियान' से जनता को अवगत कराया जा सके। कांग्रेस प्रमुख सोनिया गांधी, उपाध्यक्ष राहुल गांधी और कई नेता एवं कार्यकर्ता अगले शुक्रवार को जंतर-मंतर से मार्च शुरू कर संसद का घेराव करेंगे। पिछले साल, कांग्रेस ने जमीन अधिग्रहण विधेयक का विरोध करने के लिए 19 अप्रैल को राम लीला मैदान में एक रैली आयोजित की थी। इस विधेयक को पार्टी ने 'किसान विरोधी और कॉरपोरेट हितैषी' करार दिया था।
इससे पहले सोनिया ने इस मुद्दे पर राष्ट्रपति भवन तक विपक्षी नेताओं के मार्च की अगुवाई की थी। पार्टी के मुख्य प्रवक्ता रणदीप सुरजेवाला ने यह घोषणा करते हुए कहा कि 'लोकतंत्र बचाओ' मार्च के अंत में संसद का घेराव किया जाएगा। उन्होंने कहा कि जनता की ओर से चुनी गई सरकारों को 'गिराने' की प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और उनकी सरकार की कोशिशों, जैसा कि अरुणाचल प्रदेश और उत्तराखंड की 'साजिशों' में देखा गया, के मद्देनजर यह फैसला किया गया है। अगस्ता वेस्टलैंड की तरफ इशारा करते हुए सुरजेवाला ने कहा कि बीजेपी और मोदी सरकार की ओर से किए जा रहे 'ड्रामा' और उसकी ओर से शुरू किए गए 'छल कपट और झूठ से भरे' अभियान के खिलाफ मार्च किया जाएगा।
सुरेजवाला ने कहा कि सूखे के हालात और कृषि संकट की तरफ ध्यान दिलाने के लिए भी यह मार्च किया जा रहा है। उन्होंने कहा कि कृषि संकट की वजह से किसानों की खुदकुशी में काफी बढ़ोत्तरी हो गई है और करीब 40 करोड़ लोग इससे प्रभावित हुए हैं। पार्टी के एक नेता ने बताया कि इस विरोध मार्च में हरियाणा, राजस्थान और उत्तर प्रदेश जैसे दिल्ली से सटे राज्यों से आने वाले कार्यकर्ता हिस्सा लेंगे। जयपुर में राजस्थान प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष सचिन पायलट ने कहा कि पार्टी की राज्य इकाई मार्च में हिस्सा लेगी। पायलट ने कहा, 'हमने अरुणाचल प्रदेश और उत्तराखंड में मोदी सरकार का अलोकतांत्रिक चेहरा देखा है।' मार्च 1998 में कांग्रेस अध्यक्ष का पदभार संभालने वाली सोनिया गांधी ने उस साल महंगाई के मुद्दे पर दिल्ली में पार्टी कार्यकर्ताओं के एक मार्च की अगुवाई की थी। उस वक्त केंद्र में अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार थी।
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