


कन्हैया पर विरोधी वायरल मैसेज की सच्चाई क्या है?
देशद्रोह के आरोप में गिरफ्तार हुआ कन्हैया 20 दिन बाद जेल से जेएनयू लौट आया है। लेकिन इस बीच कन्हैया पर एक मैसेज सोशल मीडिया पर वायरल हो रहा है। मैसेज में कन्हैया की उम्र से लेकर कोर्स तक पर कई दावे किए जा रहे हैं लेकिन ये दावे कितने सच हैं ये जानने की कोशिश करते हैं। ये मैसेज सोशल मीडिया पर वायरल हो रहा है जिसमें कन्हैया के बारे में कई बातें लिखी हैं। पहली बात ये है कि कन्हैया करीब 29 साल का है। चाहे पीएचडी हो या फिर एमबीबीएस की पढ़ाई दोनों 29 साल की उम्र तक खत्म हो जाती हैं। कन्हैया ऐसा कौन सा कोर्स कर रहा है जो कभी खत्म ही नहीं हो रहा या फिर वो खत्म करना नहीं चाहता। एबीपी न्यूज की पड़ताल में सामने आया कि कन्हैया इस साल 2 जनवरी को 29 साल का हो चुका है और वो जेएनयू के इंटरनेशनल स्ट़डीज विभाग से अफ्रीकन स्टडीज में पीएचडी कर रहा है। जहां तक कोर्स खत्म होने की बात है तो पीएचडी करने की कोई उम्र नहीं होती। इसलिए मैसेज का पहला दावा आधा सच है और आधा झूठ।
मैसेज में दूसरा दावा ये है मिडिल क्लास परिवार से आने वाले छात्र 25 से 28 साल की उम्र तक काम करने लग जाते हैं। कन्हैया गरीब परिवार से आता है हैरानी ये है कि वो बिना कमाए गुजारा कैसे चला रहा है? इस दावे का सच ये है जेएनयू में पढ़ने वाले छात्रों को सस्ते दाम पर रहने और खाने-पीने की सुविधा मिलती है इसके अलावा कन्हैया को हर महीने 5 हजार रुपए की फेलोशिप भी मिलती है। तीसरा दावा ये किया गया है गिरफ्तारी के बाद कन्हैया ने देश के सबसे अच्छे वकीलों को पैरवी के लिए रखा। आश्चर्य इस बात का है कन्हैया के ये बिल कौन भर रहा है और क्यों? इस दावे की पड़ताल में एबीपी न्यूज को सूत्रों से पता चला है कि जो तीन वकील कन्हैया का केस लड़ रहे हैं उन्होंने एक भी पैसा नहीं लिया। ये दावा झूठा साबित हुआ है। चौथा दावा ये है कि कन्हैया तीन महीने के लिए बिहार विधानसभा चुनाव में प्रचार के लिए गया था. उस दौरान क्लासेज का क्या हुआ और इसके लिए पैसे कहां से आए? पड़ताल में पता चला कि कन्हैया बिहार चुनाव में प्रचार के लिए गया जरूर था लेकिन तीन महीने के लिए नहीं सिर्फ 8 से दस दिन के लिए और कन्हैया ने अपने गांव में आने वाली तेघड़ा सीट पर सीपीआई उम्मीदवार राम रतन सिंह समेत कुछ और सीटों पर प्रचार किया था।
लड़ाई देश के खिलाफ नहीं, सरकार के खिलाफ है
देशद्रोह के आरोप में गिरफ्तार होने के बाद कल (गुरुवार को) जमानत पर रिहा होकर जेएनयू वापस लौटे जेएनयू छात्र संघ के अध्य।क्ष कन्हैया कुमार ने एनडीटीवी से खास बातचीत में कहा कि '9 फरवरी का कार्यक्रम मैंने आयोजित नहीं किया था। देशविकरोधी नारे लगे या नहीं लगे, इसके बारे में मुझे कुछ नहीं पता, क्यों कि मैं वहां मौजूद नहीं था। कन्हैया ने कहा कि मेरी उस कार्यक्रम के प्रति परोक्ष रूप से कोई सहमति नहीं थी। मुझे उस कार्यक्रम की सूचना नहीं दी गई थी। कार्यक्रम की इजाजत देना मेरा काम नहीं है। चार-पांच लोग वहां नारे लगा रहे थे। नारे लगाना गलत है। नारे लगाने वालों पर कार्रवाई होनी चाहिए। पुलिस कहती है कि मेरी रज़ामंदी से कार्यक्रम हुआ, इसलिए गिरफ़्तार किया। पहले से इस तरह की गतिविधियां होती आ रही है। उस कार्यक्रम को रोकना मेरे अधिकार से बाहर था। अध्यक्ष होने के नाते मैं छात्रों की नुमाइंदगी करता हूं। छात्रों की बात करना मेरा काम, कार्यक्रम की इजाज़त देना नहीं। कुछ छात्रों को निशाना बनाने की कोशिश हो रही है। जो नारे लगाए गए, मैं उसकी निंदा करता हूं। ये सिर्फ़ नारे का मामला नहीं है, उससे ज़्यादा गंभीर है। नारों से लोगों का पेट नहीं भरता।
कन्हैया ने कहा कि देश के सिस्टाम पर मेरा भरोसा है। मामला कोर्ट में है, इसलिए मैं ज्यांदा बोल नहीं सकता। हमारा देश इतना कमजोर है, जो नारों से हिल जाएगा? हैदराबाद की कहानी जेएनयू में दोहराने की कोशिश हुई। जेएनयू में दक्षिणपंथी ताकतें अलग-थलग हैं। हर मामले को हिंदू-मुसलमान रंग दिया जाता है। हम अफजल गुरु पर कोर्ट के आदेशों का सम्माकन करते हैं। मेरा भाई सीआरपीएफ में था, जो नक्साली हमले में मारा गया। किसी को नक्सटली बताकर गलत तरीके से मारने का भी समर्थन नहीं करता। ये लड़ाई देश के खिलाफ नहीं, बल्कि सरकार के खिलाफ है। जेएनयू के छात्रों को देशद्रोही बताया जा रहा है। पिछड़े लोगों को निशाना बनाया जा रहा है। पटियाला हाउस कोर्ट में जो मैंने देखा वो ख़तरनाक परंपरा है। हाथ में झंडा लेकर संविधान की धज्जियां उड़ा रहे थे। देशद्रोह का क़ानून अंग्रेज़ों के ज़माने का है। भगत सिंह देश के लिए लड़ रहे थे। भगत सिंह को अंग्रेज़ देशद्रोही मानते थे। सरकार आपके पास के थाने से लेकर संसद तक है। विचारधारा को रणनीतिक रूप नहीं देने से वो ख़त्म हो जाती है। केजरीवाल, राहुल गांधी को देश से प्यार है तो आंदोलन करना होगा। भगत सिंह और गांधी जैसे सुधारक हुए। ये वो लोग थे जो साम्राज्यवाद से लड़े। दक्षिणपंथी मुद्दों पर फ़ोकस करतें है, विचारधारा पर नहीं। जब तक आप डरेंगे नहीं तो लड़ेंगे नहीं। मुझे आरएसएस से डर लगा इसलिए उसके ख़िलाफ़ लड़ा। अब पुलिस से दोस्ती हो गई है। मैं आगे चलकर शिक्षक ही बनूंगा। मैं मुद्दों पर बहस करूंगा, अपनी विचारधारा के लिए लडूंगा। मैं अपने अनुभवों पर किताब लिखना चाहता हूं। मामला कोर्ट में है, अभी फ़र्ज़ी राष्ट्रवाद पर बहस न हो। जब आरएसएस में वैचारिक बदलाव हो रहा है तो कांग्रेस, लेफ़्ट में भी होगा। हमें इस बदलाव को बारीकी से देखने की ज़रूरत है। तभी हम लेफ़्ट, बीजेपी, कांग्रेस, केजरीवाल में फ़र्क कर पाएंगे। सबको एक ब्रश से मत रंगिए।
नाकाम करनी है संविधान से खिलवाड़ करने की साजिश
काले बादल लाख कोशिश कर लें, लाल सूरज को छुपा नहीं सकते। जो संविधान से खिलवाड़ करते हैं, उनकी साजिश को नाकाम करना है। जमानत पर रिहाई के बाद जेएनयू कैंपस में कन्हैहया कुमार ने प्रेस कॉन्फ्रें स में यह बात कही। कन्हैया कुमार ने कहा कि ' जेएनयू में इस तरह का यह पहला मामला नहीं है। मीडिया के माध्ययम से आंदोलन में शरीक होने वालों को धन्यकवाद। मुझे सहयोग देने वाले हर आदमी का शुक्रिया।' उन्होंने कहा कि 'आपके टैक्सश से हम पढ़ते हैं, जेएनयू वाले कभी देशद्रोही नहीं हो सकते। सीमा पर जवान, किसान और रोहित की शहादत बेकार नहीं जाएगी। लोगों को बांटने की तुम्हासरी कोशिश सफल नहीं होगी। बांटने वालों को संवैधानिक तरीके से जवाब दिया जाएगा।' कन्हैया ने कहा कि ' 9 फरवरी को हुई घटना की मैं निंदा करता हूं। देशभक्ति और देशद्रोह में अंतर है। देश की सरकार है न कि किसी पार्टी की। मतभेद है, मन-भेद नहीं, मतभेद रखने का अधिकार है। सरकार से बंगलों, गाड़ियों, हवाई यात्राओं पर सब्सिडी के पैसों का हिसाब मांगेंगे। संविधान वीडियो नहीं है जिसमें आप गड़बड़ी करें।' उन्होंने कहा कि 'देश बनता है देश के लोगों से। जेएनयू इस देश की वास्ताविक आवाज है। सामाजिक न्याडय की लड़ाई लड़ता है जेएनयू। देशद्रोह कानून का इस्तेसमाल छात्रों पर क्योंे? हमारे सामने अपनी पहचान और संस्कृीति को बचाने की चुनौती है।'
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