पंचायत क्षेत्र से मुखिया पद के लिए चुनाव लड़ रहे युवा तुर्क तनवीर अहमद में है इलाके के तफ्खीम (श्रेष्ठ बनाना) का माद्दा, www.newsforall.in से खास बातचीत में तनवीर ने कहा कि सियासत उनके लिए तफन्नुने तब्अ (दिल बहलाव) नहीं, कैरियर है
एनएफएः परिवार का राजनीतिक बैकग्राऊंड न होने के बावजूद आखिर सियासत में कदम रखने का फैसला क्यों किया?
तनवीरः जी, बिल्कुल सही कहा आपने कि परिवार का राजनीतिक बैकग्राऊंड नहीं है। सियासत में कदम रखने का फैसला क्रिकेट के मैदान में हुआ। हर जाति-बिरादरी के क्रिकेट प्लेयर दोस्तों के कहने पर मैं चुनाव लड़ रहा हूं।
एनएफएः आपके इस फैसले का परिवार में कोई विरोध अथवा सुझाव?
तनवीरः विरोध तो नहीं हुआ, पर सुझाव जरूर मिला।
एनएफएः क्या और किसका सुझाव था?
तनवीरः मेरे बड़े पापा (जफीर आलम, जो वाणिज्य कर विभाग में पदस्थ हैं) ने चाचा (मो.मुनीब अंसारी, जो एक मीडिल स्कूल में प्रधानाचार्य और शिक्षाविद् हैं) से कहा-‘तनवीर चुनाव लड़ रहा है तो देखना है कि परिवार की प्रतिष्ठा बची रहे। क्योंकि पारिवारिक प्रतिष्ठा को बनाने और बचाने में बड़ी मेहनत लगती है।’
एनएफएः ये तो बेहद कड़ा और बड़ा सुझाव है? यदि आप चुनाव हार गए तब क्या होगा?
तनवीरः (उल्टा सवाल दागते हुए) आपको पता है कि चुनाव कौन हारता है? मैं बताता हूं। चुनाव वो हारता है, जो झूठ बोलता है, सियासत के लिए समाज का तफर्रुक (फूट डालना, तोड़ना) करता है, जो अवाम का तन्कीस (अपमान, तिरस्कार) करता है। मैं अपने बारे में जानता हूं। मैं साफ-सुथरा, सीधा-सच्चा इंसान हूं। सबके सुख-दुख में हर वक्त खड़ा रहने का मुझमें जज्बा है। फिर चुनाव हारने का कहां सवाल है। क्षेत्र के अमूमन सभी मतदाताओं का मुझे पर्याप्त प्यार मिल रहा है।
एनएफएः महज 23 वर्ष की उम्र में इतनी समझ? ये सब कहां से आई?
तनवीरः मैं अखलाक वाले परिवार से हूं। चाचा (मो.मुनीब अंसारी) मेरे लिए प्रेरक हैं। प्रेरणास्रोत हैं। यदि आपको कभी मौका मिले तो देखिएगा, उनका व्यवहार, विचार, स्वाभाव, आचरण, बातचीत का अंदाज सबकुछ सर्वोत्तम श्रेणी का। उनके लिए कोई गैर नहीं। सब अपने हैं। मैं उन्हीं से सीखता हूं। जब एक शिक्षक के रूप में मेरे चाचा पूरे समाज के हित की बात हर वक्त सोचते हैं तो मुझे सियासत में उनकी सोच का ही तो प्रतिपादन करना है।
एनएफएः तनवीर जी, आज की सियासत तो सच्चे, सीधे लोगों की है नहीं। समाज-देश में धार्मिक उन्माद और जातीय विद्वेष फैलाकर राजनीति की जा रही है। आप इस तरह की प्रतिस्पर्धा में कैसे टिकेंगे?
तनवीरः मेरी असली लड़ाई इसी के विरुद्ध है। सामाजिक सौहार्द व कौमी एकता तो मेरा नारा है। सियासत का मेरा उद्देश्य सबको जोड़कर रखना और इलाके का सर्वांगीण तफ्खीम करना कराना है।
एनएफएः आपने इंग्लिश (आनर्स) से स्नातक किया है। क्षेत्र और जिले के अन्य नेताओं से आप खुद को अलग कैसे देखते हैं?
तनवीरः देखिए, मैं भी इसी समाज का हूं। मैं खुद को अलग तो नहीं देखता पर इतना पता है कि विकास का कोई विकल्प नहीं होता। विकास के बदले में आप कुछ भी नहीं कर सकते। यदि आपको समाज के सम्मानित लोग सेवा का मौका देते हैं तो आपको दिल-खोलकर सेवा करनी चाहिए ताकि लोगो को आपमें विश्वास पैदा हो। दरअसल, अधिकांश नेता जनता की उम्मीदों पर खरे नहीं उतरते। जब तक मौका नहीं मिलता है तब तक गिड़गिड़ाते हैं और जब मौका मिल जाता है तो अपने सम्मानित मतदाताओं से ही लड़ने-झगड़ने को तैयार हो जाते हैं। आखिरकार जनता भी उन्हें उनकी औकात बता देती है।
एनएफएः मेरा सवाल तो यही है आप कैसे अलग हैं और क्या अलग करेंगे?
तनवीरः जी, मैं आपको बताना चाहता हूं कि मुखिया का चुनाव जीतने के बाद नियमानुसार पांच वर्ष के भीतर जनहित से जुड़े जितने भी काम उल्लिखित होंगे, सारे पूरे कराएं जाएंगे। समस्या चाहे छोटी हो या बड़ी उसके समाधान की सौ प्रतिशत कोशिश की जाएगी। चूंकि मुझे सियासत में ही अपना कैरियर बनाना है, इसलिए अधिक से अधिक सम्मानित मतदाताओं को खुद से जोड़कर रखना मेरा उद्देश्य रहेगा। मतदाताओं का प्यार और आशीर्वाद पाते रहना मेरा लक्ष्य रहेगा। यह तभी संभव है, जब मैं उनकी अपेक्षाओं पर खरा उतरूंगा।
एनएफएः धन्यवाद तनवीर।
तनवीरः थैंक्स।
0 comments:
Post a Comment
आपकी प्रतिक्रियाएँ क्रांति की पहल हैं, इसलिए अपनी प्रतिक्रियाएँ ज़रूर व्यक्त करें।