सीवान। गौरवशाली अतीत वाले सीवान की दशा जब वर्ष 1980 के दशक के बाद बिगड़नी शुरू हुई तो यह लग ही नहीं रहा था कि यहां कोई दूसरा देशरत्न डा.राजेन्द्र प्रसाद पैदा होगा। वैसे यह सबको पता है प्रकृति अपना नियंत्रण स्वयं करती है। आखिरकार देशरत्न की धरती पर सीवान जिला मुख्यालय के निकट ग्राम चनऊर (श्यामपुर) में स्वतंत्रता सेनानी रहे विज्ञानान्द गिरी के ऊर्जावान पुत्र बिलास गिरी ने शिक्षा की ज्योति जलाकर यहां की असामाजिक व आपराधिक धुंध को मिटाने का बहुत बड़ा बीड़ा उठा लिया। बेशक घने जंगलों के बीच बसे चनऊर गांव से इस काम को करना मुश्किल ही नहीं नामुमकिन था, जिसे बिलास गिरी ने ना सिर्फ उस चुनौती को स्वीकार किया बल्कि सीबीएसई से मान्यता प्राप्त विज्ञानान्द केन्द्रीय विद्यालय को स्थापित कर उल्लेखनीय शैक्षणिक माहौल तैयार कर दिया। आपने रूसो के बारे में तो सुना ही होगा। रूसो जिस तरह मनुष्य को मूलतः एक भावनाप्रधान और संवेदनशील प्राणी मानते थे, अतः उसके बौद्धिक विकास की बजाय भावनात्मक विकास पर उनका अधिक आग्रह रहा। बालक की स्वतंत्रता और सीखने की सहजता का समर्थक होने के नाते रूसो बच्चों पर किसी तरह के अनुशासन थोपने, ख़ासतौर पर शारीरिक दण्ड के ख़िलाफ़ थे। रूसो ने व्यक्तित्व के सहज विकास के लिए शिक्षा की भूमिका पर ज़ोर देते हुए उसके स्वरूप और प्रणालियों में क्रांतिकारी परिवर्तन के सुझाव दिये। रूसो के युग में और जो कुछ हद तक आज भी है – शिक्षा अध्यापक केंद्रित रही। उन्होंने शिक्षा के बारे में बाल-केंद्रित नजरिये से सोचने की नींव डाली। क्योंकि उनके समय में शिक्षार्थी के आंतरिक गुणों और व्यक्तित्व के विकास की बजाय अध्यापक द्वारा कुछ विषयों का पढ़ाया जाना और शिक्षार्थियों द्वारा उन विषयों से संबंधित सूचनाओं का रट लेना ही शिक्षा की पूरी प्रक्रिया थी। छात्र की अपनी आवश्यकता और मौलिकता का इस पूरी प्रक्रिया में कोई स्थान नहीं था। अपनी ‘एमिली’ नामक कृति में रूसो ने शिक्षा के प्रति एक बिल्कुल भिन्न और मौलिक विचार का प्रतिपादन करते हुए बालक के स्वाभाविक आवेगों और वृत्तियों का दमन न करने का आग्रह किया। प्रकृति की गोद में बसे चनऊर गांव स्थित विज्ञानान्द केन्द्रीय विद्यालय का स्वच्छ वातावरण, हरा-भरा व स्वनुशासित परिसर और शैक्षणिक माहौल को जिस तरह बिलास गिरी ने बनाया है, इस प्रकार यदि उनकी तुलना रूसो से की जाए तो भले लोगों को अटपटा लगे पर यह सत्य है।
विज्ञानान्द केन्द्रीय विद्यालय के प्रबंधक बिलास गिरी की मान्यता है कि शिक्षा-प्रक्रिया के माध्यम से हम अपने पूर्वाग्रह बच्चों पर थोप देते हैं, जो ठीक नहीं है। बच्चों पर अपने विचारों को उपदेशात्मक शैली में लादने की बजाय उसे स्वयं अपने अनुभवों से सीखने की स्वतंत्रता मिलनी चाहिए। बालक की स्वतंत्रता और सीखने की सहजता का समर्थक होने के नाते बिलास गिरी बच्चों पर किसी तरह के कड़े अनुशासन थोपने, ख़ासतौर पर शारीरिक दण्ड के ख़िलाफ़ है। बिलास गिरी के इन विचारों ने शिक्षा दर्शन के क्षेत्र में क्रांतिकारी परिवर्तन किया। इसकी तुलना खगोल विद्या में कोपरनिकस द्वारा की गई क्रांति से भी किया जा सकता है। मौजूदा शिक्षा प्रणाली विषय प्रधान और अध्यापक केंद्रित हो गई है, लेकिन अब बालक की अपनी आवश्यकताओं, उसके स्वतंत्र व्यक्तित्व और मौलिकता के विकास की ओर ध्यान देने की जरूरत है। बिलास गिरी की यही सोच देश के कई नामी-गिरामी स्कूलों से अलग कर देता है। चूंकि विज्ञानान्द केन्द्रीय विद्यालय आवासीय है, बच्चों की स्वतंत्र शिक्षा प्रणाली की वहां ज्यादा महत्ता है। पारम्परिक शिक्षा-व्यवस्था में वह ऐसा कुम्हार था जिससे बालक रूपी मिट्टी को अपनी कल्पना और सांचे के अनुसार गढ़ने की अपेक्षा की जाती थी। वास्तव में बिलास गिरी को बाल-शिक्षा मनोविज्ञान की पृष्ठभूमि तैयार करने वाले विचारकों में अग्रणी कहा जा सकता है।
फोनिक्स, होल लैंग्वेज और बैलेंस अप्रोच
मूल रूप से भाषा शिक्षण के तीन अप्रोच हैं। होल लैंग्वेज अप्रोच, फोनिक्स अप्रोच और बैलेंस अप्रोच या कांप्रिहेंसिव अप्रोच। अमरीका में दोनों पहली अप्रोच के मुख्य बातों को मिलाकर बैलेंस अप्रोच के साथ काम किया जा रहा है। भारत में लंबे विचार-विमर्श के बाद होल लैंग्वेज अप्रोच को अपनाने की बात हो रही है, वहीं बहुत से शिक्षक साथी पारंपरिक रूप से फोनिक्स अप्रोच के सहारे बच्चों को पढ़ना सिखाने वाले अपने तरीके से काम कर रहे हैं। विज्ञानान्द केन्द्रीय विद्यालय के प्रबंधक बिलास गिरी कहते हैं कि पॉलिटिकल इकॉनमी की समझ रखने वाला कोई भी शिक्षा शास्त्री होल लैंग्वेज अप्रोच की वकालत करता है। क्योंकि यह समझ निर्माण के साथ-साथ भाषा के विभिन्न उपयोगों को लेकर सजग बनाने पर जोर देती है। जबकि फोनिक्स अप्रोच में पढ़ना तो आसानी से सिखाया जा सकता है कि लेकिन इसमें भाषा के बाकी सारे पहलुओं पर विशेष ध्यान नहीं दिया जाता। जैसे सवाल पूछना। चीज़ों को समझना। किसी बात के अन्य पहलुओं पर ग़ौर करना। अर्थव्यवस्था और भाषा के रिश्ते को समझना इत्यादि। विज्ञानान्द केन्द्रीय विद्यालय परिसर के माहौल को देखकर कहा जा सकता है कि फोनिक्स अप्रोच से पढ़ना सिखाना आसान है। इससे नई पीढ़ी में शिक्षा के साथ-साथ आत्मविश्वास और सहजता विकसित होती है। बिलास गिरी कहते हैं कि बच्चों को सेल्फ आब्जर्बेशन या ‘ख़ुद का मॉनीटर’ होने की दिशा में आगे ले जाना ही शिक्षा का उद्देश्य होना चाहिए।
विज्ञानान्द केन्द्रीय विद्यालयः एक बेहतर स्कूल
एक स्कूल को बेहतर बनाने वाली कौन सी चीज़ें होती हैं? अगर इस सवाल पर ग़ौर फरमाएं तो सबसे पहले बच्चों का जिक्र आएगा कि किसी भी स्कूल को वहां के बच्चे विशिष्ट या ख़ास बनाते हैं। इसके बाद की भूमिका उनके शिक्षक और शिक्षकों का नेतृत्व करने वाले प्रधानाध्यापक की होती है। शिक्षकों के समानांतर घर के माहौल की भी बड़ी महत्वपूर्ण भूमिका होती है, जिसमें अभिभावक एक सक्रिय भूमिका निभाते हैं। इसके अलावा बच्चों की पाठ्यपुस्तकें, कक्षा का माहौल, बच्चों को पढ़ाने वाले शिक्षकों का पढ़ाने के प्रति जज्बा और बच्चों से लगाव भी कम महत्वपूर्ण नहीं है। इस प्रकार का माहौल विज्ञानान्द केन्द्रीय विद्यालय चनऊर (श्यामपुर, सीवान, बिहार) में मिलता है। अचानक से आने वाली परिस्थिति का सामना शिक्षक किस तरह से करते हैं? यह भी एक बड़ा कौशल है क्योंकि स्कूलों में बहुत सारी चीज़ें अचानक से आती हैं। इनके कारण बच्चों की पढ़ाई और उसकी निरंतरता पर कोई असर न पड़े इसकी योजना एक अच्छे शिक्षक के पास होनी चाहिए। बच्चों को मिलने वाले निर्देश स्पष्ट होने चाहिए। ख़ास बात है कि उनको एक ही तरीके से पढ़ाया जाना चाहिए। अगर किसी स्कूल के बच्चों को अलग-अलग शिक्षक एक ही विषय सामग्री को अलग-अलग तरीके से पढ़ाने और समझाने का प्रयास करते हैं तो उससेस दिक्कत पेश आती है जैसे पहली कक्षा के बच्चों को कोई शिक्षक नियमित रूप से एक योजना के मुताबिक़ अंग्रेजी का पाठ पढ़ा रहे हैं। इसके अलावा स्कूल में आने वाले पैरा टीचर भी उन बच्चों को अपने हिसाब से अंग्रेजी पढ़ा रहे हैं तो उससे भी बच्चों का तालमेल टूटता है और इसका सीधा असर उनके सीखने की गति, गुणवत्ता और भावी अनुभवों में उसके इस्तेमाल की क्षमता पर पड़ता है। दिलचस्प यह खुद हायर एजुकेशन लेने वाले बिलास गिरी अपनी तमाम व्यस्तताओं के बावजूद विद्यालय की हर छोटी-बड़ी बातों पर गहन निगाह रखते हैं और उसका सघन समाधान करते हैं। यूं कहें कि विज्ञानान्द केन्द्रीय विद्यालय मौजूदा दौर में सिवान, बिहार का ही नहीं बल्कि देश का गौरव है।
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