नई दिल्ली। भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी के वरिष्ठ नेता एबी बर्धन नहीं रहे. सीपीआई के वरिष्ठ नेता अतुल अंजान ने बीबीसी से बातचीत में उनके निधन की पुष्टि की. दिल्ली के जीबी पंत अस्पताल में बर्धन ने आखिरी सांस ली. वे 92 साल के थे और उन्हें सात दिसंबर को दिल्ली के अस्पताल में भर्ती कराया गया था. सीपीएम महासचिव सीताराम येचुरी ने बर्धन को श्रद्धांजलि देते हुए ट्वीट किया है, "लाल सलाम, कॉमरेड बर्धन. आपकी बुद्धिमत्ता, अनुभव और मार्गदर्शन याद आएगा कॉमरेड. भारतीय क्रांति को आगे ले जाने का संकल्प लेते हैं."
वे ऑल इंडिया ट्रेड यूनियन कांग्रेस से काफ़ी लंबे समय तक जुड़े रहे और इसके अध्यक्ष भी बने. अर्धेंदु भूषण बर्धन पहली बार 1957 में निर्दलीय उम्मीदवार के रूप में महाराष्ट्र से चुने गए. साल 1996 में इंद्रजीत गुप्ता के केंद्रीय गृह मंत्री बनने बाद बर्धन पार्टी के महासचिव बने और 2012 तक इस पद पर रहे.
सियासी उतार-चढ़ावों के गवाह थे बर्धन
सीपीआई के राष्ट्रीय सचिव अतुल अंजान ने बीबीसी को बताया कि एबी बर्धन ने कम्युनिस्ट पार्टी के तमाम उतार चढ़ावों को देखा था क्योंकि वे उस वक्त से पार्टी में सक्रिय थे जब भारत में कम्युनिस्ट पार्टी का विभाजन नहीं हुआ था. अपने छात्र जीवन में बर्धन ने भारत की आज़ादी की लड़ाई में भाग लिया था. बर्धन चालीस के दशक में ही छात्र आंदोलन से जुड़ गए थे और उन्होंने ऑल इंडिया स्टुडे्ंट्स फ़ेडेरेशन के एक सक्रिय छात्र नेता के तौर पर काम करना शुरू कर दिया था. अतुल अंजान के मुताबिक़, बारिसाल में (अब बांग्लादेश में) जन्मे बर्धन के पिता नागपुर में रेलवे अधिकारी थे इसलिए उनका ज़्यादा समय वहीं बीता. उन्होंने 1957 में महाराष्ट्र के नागपुर से विधानसभा चुनाव लड़ा और जीत भी गए. लेकिन इसके बाद 1967 और 1980 में वे नागपुर लोकसभा क्षेत्र से चुनाव में उतरे लेकिन जीत दर्ज नहीं कर सके. इसके बाद वे संगठन की राजनीति में ज़्यादा सक्रिय हो गए. वे अस्सी के दशक में राष्ट्रीय सचिव मंडल के सदस्य के तौर पर दिल्ली आए और 90 के दशक में पार्टी के उपमहासचिव बने.
1996 में पार्टी महासचिव इंद्रजीत गुप्ता के केंद्रीय गृह मंत्री बनने के बाद बर्धन ने पार्टी की बागडोर संभाली. उनके शुरुआती जीवन के बारे में अतुल अंजान ने बताया कि 1941-42 में नागपुर विश्वविद्यालय में छात्र राजनीति में सक्रिय होने के बाद वे छात्र संघ के अध्यक्ष चुने गए थे. छात्र संघ चुनाव में उन्होंने उस वक्त की प्रजा सोशलिस्ट पार्टी के युवा नेता वसंत साठे को हराया जो बाद में कांग्रेस में शामिल हो गए थे. छात्र राजनीति के बाद वे महाराष्ट्र में स्टेट बिजली कर्मचारी संगठन से जुड़े, उसके अध्यक्ष बने और मजदूर संगठनों को खड़ा करने में अहम भूमिका निभाई. फिर बाद में वे ऑल इंडिया ट्रेड यूनियन (एटक) के नेता भी बने. अंजान बताते हैं कि वे हिंदी, अंग्रेजी, और मराठी धारा प्रवाह बोलते थे और एक अच्छे और बेबाक वक्ता होने के साथ-साथ उनका व्यक्तित्व बहुआयामी था. उनकी संगीत साहित्य में भी विशेष रुचि थी. वे कम्युनिस्ट इंटरनेशनल के गीतों के अलावा पुराने हिंदी फिल्मों के गाने उसी लय में गाते थे. सहगल से लेकर मुकेश तक की आवाज़ में वे गीतों को गाते थे और उसमें डूब जाते थे. उन्होंने कई किताबे लिखीं, जिसमें मजदूर संगठनों का गठन क्यों होना चाहिए, उनके सामाजिक अधिकारों का राजनीतिकरण कैसे होना चाहिए इस पर लिखा है. इनके अलावा उन्होंने जातियो के संघर्ष, दलितों की समस्याओं पर दर्जन भर से ज्यादा किताबें लिखी हैं.
एटक की नेता और सीपीआई की राष्ट्रीय सचिव अमरजीत कौर एबी बर्धन के बारे में कहती हैं, "उन्होंने अपने जीवन में अलग-अलग मोर्चों पर काम किया है लेकिन सबसे बड़ा योगदान उनका देश के मजदूर आंदोलन में था. एक वक्त था जब उन्होंने वकालत की थी उस वक्त भी उन्होंने मजदूरों के मामलों को ही तरजीह दी." वो बताती हैं, "वे महिलाओं और बच्चों के अधिकारों को लेकर बहुत संवेदनशील थे. जब बच्चों पर काम करने वाले देश के बहुत सारे समूहों ने मिलकर बाल श्रम विरोधी मुहिम शुरू की थी तो उन्हें इसके सलाहकार समिति का सदस्य बनाया गया था. वे हमेशा ट्रेड यूनियन को एक जूझारू ताकत बनाने और दूसरे ट्रेड यूनियनों को साथ लेकर चलने में यकीन रखते थे." वो कहती हैं, "वे भारत के उस पीढ़ी के वामपंथी नेता थे जिस पीढ़ी के चंद ही लोग अब बचे रह गए हैं."
0 comments:
Post a Comment
आपकी प्रतिक्रियाएँ क्रांति की पहल हैं, इसलिए अपनी प्रतिक्रियाएँ ज़रूर व्यक्त करें।