नई दिल्ली। लोकसभा में काफ़ी पहले पारित हो चुका जुवेनाइल जस्टिस बिल मंगलवार को आख़िरकार राज्यसभा में ध्वनिमत से पास हो गया. अब यह बिल राष्ट्रपति के पास मंज़ूरी के लिए भेजा जाएगा. इस बिल में जघन्य अपराध के मामले में 16 से 18 साल की उम्र के नाबालिग को वयस्क माना जाएगा. मौजूदा कानून के तहत 18 साल के कम उम्र के अपराधी को नाबालिग माना जाता है. नए बिल में कहा गया है कि रेप, मर्डर और एसिड अटैक जैसे खतरनाक अपराधों में शामिल नाबालिगों को बालिग माना जाएगा. गंभीर अपराध करने वाले नाबालिगों पर केस आम अदालतों में और बालिगों के लिए कानून के मुताबिक ही चलेगा. आपको बता दें कि नाबालिग दोषी की रिहाई के खिलाफ प्रदर्शन की अगुवाई कर रहे निर्भया के माता-पिता सोमवार को कांग्रेस नेता गुलाम नबी आजाद से मिले थे, जिन्होंने उन्हें भरोसा दिया कि उनकी पार्टी इस बिल को समर्थन देगी.
नए प्रावधानों के मुताबिक संगीन अपराध में शामिल नाबालिगों को बालिग माना जाएगा. बता दें कि लोकसभा में यह बिल मई 2015 में पास कर दिया था. लेकिन, राज्यसभा में हंगामे की वजह से इसे पेश नहीं किया जा सका है. नए बिल में कहा गया है कि रेप, मर्डर और एसिड अटैक जैसे खतरनाक अपराधों में शामिल नाबालिगों को बालिग माना जाए. गंभीर अपराध करने वाले नाबालिगों पर केस आम अदालतों में और बालिगों के लिए कानून के मुताबिक ही चलेगा. हालांकि बिल पास होने का असर निर्भया केस पर नहीं पड़ेगा. लेकिन, आने वाले समय में ऐसे दूसरे अपराधी आसानी से नहीं छूट सकेंगे. मौजूदा कानून के मुताबिक अगर कोई नाबालिग संगीन अपराध में दोषी होता है तो उसे तीन साल तक बाल सुधार गृह में रखा जाता है और उसके बाद उसे रिहा कर दिया जाता है.
जुवेनाइल जस्टिस बिल के मुताबिक 16 से 18 साल की उम्र के नाबालिग अपराधियों को भी वयस्क माना जाएगा और उन्हें जेल में भी डाला जाएगा. जुवेनाइल जस्टिस बिल में कई अहम संशोधन किए गए हैं. जिन्हें संसद ने अपनी मंजूरी दी है. नए बिल के मुताबिक अगर जुर्म जघन्य हो यानी की आईपीसी की धारा में उसकी सजा सात साल या उससे ज्यादा हो तो 16 से 18 साल की उम्र के नाबालिग को भी वयस्क माना जाएगा. इसके अलावा नाबालिग़ को अदालत में पेश करने के एक महीने के अंदर ‘जुवेनाइल जस्टीस बोर्ड’ को ये जांच करना होगा कि उसे ‘बच्चा’ माना जाए या ‘वयस्क’. वयस्क माने जाने पर किशोर को मुक़दमे के दौरान भी सामान्य जेल में रखा जाएगा. सजा भी अधिकतम 10 साल ही हो सकती है. अगर नाबालिग को वयस्क मान भी लिया जाता है और मुकदमा बाल अदालत में चलता है और आईपीसी के तहत सजा होती भी है तो भी उसे उम्र कैद या मौत की सजा नहीं दी जा सकती है.
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