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नेपाल का नया संविधान : हिंसा-आंदोलन की चपेट में देश

काठमांडू। नेपाल में नया संविधान 20 सितंबर 2015 को लागू हुआ। संविधान सभा ने संविधान को 90 फीसदी मतों से मंजूरी दी थी जबकि तराई क्षेत्र के 69 सदस्यों ने संविधान बनाने की प्रक्रिया का बहिष्कार किया था। नए संविधान में 35 खंड, 308 अनुच्छेद और नौ अनुसूचियां हैं। रिपोर्ट के अनुसार, संविधान सभा की निर्णायक बैठक में सभा के अध्यक्ष सुबास चंद्र नेमबांग ने नए संविधान के अनुच्छेद 296 के तहत सभा को भंग करने की घोषणा की। सभा को भंग करने से पूर्व नेमबांग ने संविधान की विशेषताओं का जिक्र किया। साल 2008 में माओवादियों ने संविधान सभा का चुनाव जीतकर देश से राजशाही का खात्मा किया था। लेकिन संविधान सभा नया संविधान बनाने में नाकाम रही थी। इसके बाद से नया संविधान बनाने की प्रक्रिया शुरू हुई और काफी राजनीतिक जद्दोजहद के बाद नए संविधान का निर्माण किया गया। मधेसी समुदाय नए संविधान के तहत देश को सात प्रांतों में बांटे जाने का विरोध कर रहा है। साथ ही वह अपने अधिकारों की पर्याप्त सुरक्षा की मांग भी कर रहा है। इस समुदाय की तीन प्रमुख मांग यह है कि सीमा का पुनर्निधारण किया जाए, आनुपातिक प्रतिनिधित्व शामिल किया जाए और आबादी के आधार पर संसदीय सीटों का आवंटन किया जाए। नेपाल में मधेसियों की संख्या 52 फीसद है और अन्य लोग 48 फीसद। मधेसियों को संसद में मात्र 65 सीटें दी गई हैं और अन्य को 100 सीटें। मधेसी यह असमानता समाप्त करने की मांग कर रहे हैं। मधेसी नेताओं का कहना है कि नए संविधान संशोधन में चीन की सीमा से भारत की सीमा तक लंबे-लंबे प्रदेशों का सीमांकन ठीक नहीं है। मधेसियों की चिंता है कि भारत से जाने वाली बहुओं को 15 साल बाद वहां की नागरिकता मिलेगी और उनके बाल-बच्चों को किसी उच्च पद पर नहीं जाने दिया जाएगा। नेपाल को हिंसा से उबारने मधेसियों की चिंताओं को दूर करने के लिए नेपाल की प्रमुख राजनीतिक पार्टियों और मधेसी नेताओं के बीच कई दौर की वार्ता हो चुकी है लेकिन मौजूदा संकट को खत्म करने के लिए कोई एक आम सहमति अभी तक नहीं बन पाई है। दोनों पक्ष अपने रुख से पीछे हटने को तैयार नहीं दिख रहे हैं। नेपाल की जनसंख्या 2 करोड़ 60 लाख के करीब है। इसमें 52 लाख मधेशी हैं। सुगौली संधि के तहत गंगा मैदान के फैलाव में रहने वाली ये आबादी नेपाल का हिस्सा हैं। मधेसी सिर्फ नेपाल में है। भारत की सीमा के साथ होने के कारण मधेसियों का रहन सहन, उठना बैठना और शक्लोसूरत नेपाल से कम और उत्तर प्रदेश और बिहार के लोगों से ज्यादा मिलता जुलता है। नेपाल के मेची से महाकाली तक सुगौली संधि के बाद जो इलाके ईस्ट इंडिया कंपनी ने 1875 के विद्रोह में गुरखालियों को मदद दिए थे वो मधेस क्षेत्र है। मधेसियों का आरोप है कि उन्हें नेपाल ने कभी अपना माना ही नहीं। उनके हमेशा भारतीय बताकर पक्षपात किया गया. लेकिन नेपाल सरकार कहती है मधेशी उनके लिए पराए नहीं हैं। बरसों के राजनैतिक उथल-पुथल और हिंसक संघर्षों के बाद नेपाल में नया संविधान लागू तो हो गया। लेकिन इस संविधान ने भारत की चिंताएं बढ़ाने का काम भी किया है। भारत ने संविधान में मधेसियों की मांगों को शामिल न करने पर हो रही हिंसा पर अपनी चिंता जताई है। व्यापक आधार नहीं होने, या देश की दो तिहाई आबादी का प्रतिनिधित्व ना करने को लेकर भारत इस संविधान से असंतुष्ट है। नेपाल की दो तिहाई आबादी में मधेसी और जनजाती आदिवासी आते हैं। इन प्रदर्शनों में अब तक 40 लोगों की जान जा चुकी है। सीमा पर हिंसा से बॉर्डर पर अस्थिरता पैदा हो सकती है और इस वजह से दोनों पार के लोगों के जीवन पर संकट आ सकता है। भारत की चिंता इसलिए भी है क्योंकि मधेसी मूल रूप से बिहार के निवासी हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पिछले नवंबर में नेपाली नेताओं से कहा था कि संविधान ऐसा गुलदस्ता होना चाहिए, जिसमें हर क्षेत्र और समुदाय के फूल मौजूद रहें। लेकिन सूत्र बता रहे हैं कि वर्तमान संविधान ऐसा बिल्कुल नहीं है। भारत से आयात में बाधाओं और सीमा पर नाकेबंदी के कारण नेपाल में खाद्य सामग्रियों और ईंधन की गंभीर कमी हो गई है और आवश्यक सामग्रियों की कीमतें बढ गई हैं। संयुक्त राष्ट्र विश्व खाद्य कार्यक्रम (डब्ल्यूएफपी) ने भारत के साथ लगती नेपाल की दक्षिणी सीमा में आयात पर जारी बड़ी बाधाओं के कारण नेपाल में खाद्य एवं ईंधन की गंभीर कमी होने के संबंध में चेताया है और कहा है कि यदि बुनियादी खाद्य सामग्रियों के दाम इसी प्रकार बढते रहे तो नेपाल को गंभीर समस्या का सामना करना पड़ सकता है। एशिया एवं प्रशांत के लिए डब्ल्यूएफपी क्षेत्रीय निदेशक डेविड काटरड ने एक बयान में कहा कि यदि व्यापार बाधित रहा और खाद्य सामग्रियों की कीमत बढती रहीं तो एक गंभीर मानवीय संकट को टालना मुश्किल होगा। डब्ल्यूएफपी के अनुसार नेपाल के नए संविधान के विरोध में सितंबर में शुरू हुई सीमा पर नाकेबंदी ने पहले ही व्यापार धीमा कर दिया है जिससे पिछले तीन महीनों से खाद्य सामग्री एवं ईंधन की कमी पैदा हो गई है। काटरड ने कहा कि खाद्य सामग्रियों की कीमत इतनी बढ गई हैं कि लोगों के लिए उन्हें खरीदना मुश्किल हो गया है। ऐसे में लोग अपने परिवारों को भोजन मुहैया कराने के लिए संघर्ष कर रहे हैं। हालिया भूकंप के तत्काल बाद यह संकट लोगों की इससे निपटने की क्षमता की कड़ी परीक्षा ले सकता है और इससे कुपोषण बढ सकता है।’ नेपाल के तराई क्षेत्र में नए संविधान के विरोध को लेकर हुए आंदोलन से देश को भारी आर्थिक नुकसान पहुंचा है। काठमांडू पोस्ट की रिपोर्ट के मुताबिक, नेपाल के चेम्बर ऑफ कामर्स ने कहा है कि तराई क्षेत्र में 50 दिन तक बॉर्डर पर गुड्स की आवाजाही ठप्प होने से देश की अर्थव्यवस्था को एक अरब डॉलर (6317 करोड़ रुपए) का नुकसान हुआ है। नेपाल की अर्थव्यवस्था अभी 25 अप्रैल के भूकंप से हुई क्षति से उबरी भी नहीं थी कि उसे दूसरा झटका संविधान विरोधी आंदोलन से लगा है। उन्होंने कहा, "इससे देश को एक अरब डॉलर का नुकसान हुआ है। वहीं, इन्वेस्टर्स पर बुरा असर पड़ा है।" साथ ही कहा है कि इससे इन्वेस्टमेंट में कमी आएगी और देश की अर्थव्यवस्था और चरमरा जाएगी। नेपाल राष्ट्र बैंक के रिसर्च डिपार्टमेंट हेड नरबहादुर थापा ने कहा कि हड़ताल और सीमा पर अवरोध से इकोनॉमिक एक्टिविटीज पर बुरा असर पड़ा है। इससे देश की विकास दर घट सकती है।
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